हमीरपुर : नए संसद भवन में जिले के 2 ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थलों की मिट्टी का उपयोग भी किया (new parliament house in delhi) जाएगा. जानकारी के मुताबिक सुजानपुर दुर्ग एवं सुप्रसिद्ध मंदिर श्री बाबा बालक नाथ के परिसर की मिट्टी इन स्थलों के ऐतिहासिक विवरण के साथ भाषा एवं संस्कृति विभाग हमीरपुर ने शिमला स्थित निदेशालय भेजी गई है. जहां से पूरे राज्य के विभिन्न ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थलों की मिट्टी एक साथ केंद्र को भेजी जाएगी.
सुजानपुर दुर्ग से आधा किलो मिट्टी भेजी:जिला भाषा अधिकारी निक्कू राम ने बताया कि नए संसद भवन के निर्माण में संपूर्ण भारत के ऐतिहासिक एवं सासंकृतिक स्थलों से मिट्टी का उपयोग किया जा रहा, ताकि भारत के इस संसद भवन में प्रत्येक क्षेत्र का योगदान रहे. यह अभियान भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण बनाए रखने के उद्देश्य से चलाया जा रहा, जिसके अंतर्गत संपूर्ण देश से मिट्टी को एकत्रित किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि हमीरपुर के ऐतिहासिक सुजानपुर दुर्ग से आधा किलो मिट्टी भेजी गई है.
यह रहा सुजानपुर दर्ग का इतिहास:उन्होंने बताया कि सन् 1748 ई. में कटोच वंशीय त्रिगर्त नरेश श्री अभय चंद ( 1747 - 1750 )ने सुजानपुर की पहाड़ियों में दुर्ग और महल बनवाएं. प्रारंभिक काल में इस स्थान का नाम अभयगढ़ था कालांतर में इस स्थान का नाम टीहरा पड़ा. इसके बाद आगे चलकर कटोच वंश के 479वें राजा घमंड चन्द (1751-1774) हुए. इस प्रतापी राजा ने त्रिगर्त राज्य की सीमाओं के विस्तार के लिए हमीरपुर के समीप सुजानपुर टीहरा में एक विशाल सामरिक दृष्टि से सुरक्षित किले तथा सुजानपुर नगर की आधारशीला रखी. तत्पश्चात राजा घमंड चंद के प्रपौत्र महाराजा संसार चंद (1775-1823) ने मैदानी भाग में मंदिरों का तथा पहाड़ी भाग में दुर्ग का निर्माण कर इस स्थान का नाम सुजानपुर टीहरा रखा. महाराजा संसार चंद ने इस स्थान को त्रिगर्त राज्य की राजधानी बनाया.
बाबा बालकनाथ की मिट्टी भी भेजी:उन्होंने बताया इसके अतिरिक्त जिला के सुप्रसिद्ध मंदिर श्री बाबा बालकनाथ के परिसर से भी आधा किलो मिट्टी भेजी गई. उत्तर भारत का प्रसिद्ध सिद्धपीठ बाबा बालकनाथ की कर्मस्थली शाहतलाई है. जहां , बाबा ने घोर साधना कर लोक मानस में चमत्कारों से आस्था की जोत जगाई थी. नैसर्गिक साधना की सशक्त स्थली गुफा मंदिर बाबा बालक नाथ का मूल मंदिर है. यह मंदिर आधुनिक ढंग के निर्माण शिल्प के साथ शिखरनुमा शैली में बना है. इसका सुनहरी मुख्य द्वार भी नागर शैली के अनुरूप ही बना है. इस गुफा मंदिर में बाबा बालकनाथ की श्यामवर्णी संगमरमर की मूर्ति स्थापित है.