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1108 लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुका है ये शख्स, लॉकडाउन में नहीं कर पा रहा अस्थि विसर्जन - Shantun immersed 1108 unclaimed dead bodies in the Ganga

हमीरपुर में लावारिस 1108 लोगों की अस्थियों को गंगा में तर्पण कर मोक्ष दिला चुके शांतुन छह लोगों की अस्थियों को विसर्जित नहीं कर पा रहे. बसों के दूसरे राज्यों में नहीं जाने के कारण हरिद्वार नहीं जा पा रहे. सरकार से उन्होंने पास के लिए कई बार फरियाद की,लेकिन फरियाद सिर्फ फरियाद बनकर रह गई.

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हमीरपुर में लावारिस लाशों का 'मोक्षदाता

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Published : Jun 16, 2020, 10:54 PM IST

हमीरपुर : कोरोना महामारी के चलते लावारिस लाशों की अस्थियों का तर्पण नहीं हो पा रहा. बसों के बंद होने के कारण हरिद्वार जाने में समाजसेवी शांतुन कुमार को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इस समय छह लोगों की अस्थियां विसर्जित करने के लिए शांतुन को दिक्कत हो रही है. छह लावारिसों की अस्थियां श्मशान घाट के अस्थि गृह में पड़ी हुई हैं. जानकारी के मुताबिक शांतुन को प्रदेश सरकार इस काम के लिए सम्मानित कर चुकी है.

1108 को दिलाया मोक्ष

शांतुन के मुताबिक 30 सालों में वह 1108 लावारिस लाशों को मोक्ष दिला चुके हैं. कई लावरिसों का अंतिम संस्कार भी किया. जानकारी के मुताबिक शांतुन कपड़ों की दुकान चलाते हैं. इससे जितनी कमाई होती है उसकी एक चौथाई वह इस मिशन लावारिस के तहत लावारिस शवों का अंतिम संस्कार में लगाते हैं. पिंडदान से लेकर श्राद्ध तक वह हर कार्य को पूरा करते हैं, लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण उनका व्यवसाय भी प्रभावित हुआ. जिस वजह से अब 10 से 15 हजार खर्च कर हरिद्वार तक गाड़ी के माध्यम से जाना उनके लिए मुश्किल हो गया. बस के माध्यम से हर बार अस्थियों का विसर्जन करने के लिए जाते थे, लेकिन इस बार प्रदेश से बाहर बस सेवा बंद होने के कारण छह लगों की अस्थियों का गंगा में प्रवाहित करने में परेशानी हो रही है.

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सम्मानित किया,लेकिन पास नहीं दिया
शांतनु कुमार को नके इस काम के लिए प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया. राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उन्हें 25 पुरस्कार इस कार्य के लिए मिले, लेकिन आर्थिक तंगी की इस घड़ी में उनके इस नेक कार्य को प्रोत्साहन देने के लिए कोई भी आगे नहीं आया. वहां बस पास के लिए मांग उठा चुके हैं, ताकि हरिद्वार तक जाने में सुविधा हो, लेकिन सरकार की तरफ से उनकी इस मांग को भी अनसुना किया गया. वहीं, आर्थिक तंगी के दौर में अब उन्होंने हमीरपुर के ही पवित्र धार्मिक स्थल में अस्थियों के विसर्जित करने का मन बनाया है.

कोई मलाल नहीं, मांगना छोड़ दिया

शांतुन के मुताबिक पास नहीं मिला इस बात का कोई मलाल नही. अब मांगना छोड़ दिया. सम्मान के तौर पर जो राशि मिली उसका उपयोग भी लावारिसों की लाशों को गंगा में प्रवाहित करने के लिए किया. बस सरकार से यही आग्रह है कि अगर सरकार लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी आदि की व्यवस्था करती तो बेहतर रहेगा.

लावारिश लाश को जलते देख आया विचार

शांतुन के मुताबिक एक बार लावारिस लाश को जलाया जा रहा था. कुछ देर बाद सब लोग चले गए. बस मन को वह बात लग गई. उसके बाद मिशन लावारिस को शुरू किया गया. लावारिस लाशों का गंगा में विसर्जित करने से बहुत सुकून मिलता है. यह काम निरंतर जारी रहेगा.

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