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मुल्क के हुक्मरानों को अपना ही अन्नदाता अब दुश्मन क्यों नजर आ रहा: राजेन्द्र राणा

सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा ने केंद्र सरकार पर कई सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि पूरा विश्व आज यह देख रहा है कि देश के चंद औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार अपने ही देश के अन्नदाता को गुलाम बनाने और उसे राष्ट्र विरोधी करार देने पर तुल गई है.

राजेन्द्र राणा (फाइल)
राजेन्द्र राणा (फाइल)

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Published : Feb 3, 2021, 5:35 PM IST

सुजानपुर: राजधानी दिल्ली की सरहदों पर कांटेदार तारें और सड़कों में कीलें लगाए जाने को लेकर सुजानपुर के विधायक और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष राजेंद्र राणा ने कई सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि क्या देश के अन्नदाता को खेतों में पसीना बहाने और देशवासियों का पेट भरने की सजा दी जा रही है या फिर मुल्क के हुक्मरानों को इस देश का अन्नदाता अब अपने लिए खतरा नजर आने लगा है.

'अन्नदाता के रास्ते में बोए कांटे'

राजेंद्र राणा ने कहा कि कीलें सड़कों पर नहीं लगाई जा रही बल्कि देश के लोकतंत्र की आत्मा पर लगाई जा रही हैं, जिसके लिए इतिहास कभी मोदी सरकार को माफ नहीं करेगा.
उन्होंने कहा कि देश की सरहदों को महफूज रखने के लिए इस तरह की कांटेदार बाड़े और कीलें लगाया जाना तो समझ में आता है, लेकिन देश के अन्नदाता के रास्ते में कांटे बोने की सरकार की मंशा देशवासियों की समझ से परे है. आखिर सरकार को अपने ही देश का अन्नदाता अब अपने लिए खतरा क्यों नजर आने लगा है.

सरकार औद्योगिक घरानों को पहुंचा रही लाभ

राजेंद्र राणा ने कहा कि पूरा विश्व आज यह देख रहा है कि देश के चंद औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार अपने ही देश के अन्नदाता को गुलाम बनाने और उसे राष्ट्र विरोधी करार देने पर तुल गई है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि जो लोग यह दावा करते थे कि वह देश नहीं बिकने देंगे, आज उन्हीं के शासन में देश की परिसंपत्तियों बिक रही हैं और चंद औद्योगिक घरानों की मौज लगी है.

अन्नदाता के साथ बेगानों जैसा सुलूक

राजेंद्र राणा ने कहा ऐसा लगता है देश की सरकार जनहित की बजाए चंद पूंजीपतियों को खुश करने को प्राथमिकता दे रही है. लोकतंत्र में कोई भी सरकार जनता की सरकार होती है लेकिन ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि चंद पूंजीपतियों को मजबूत करने के लिए आम आदमी की आवाज और हितों को दबाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार को अन्नदाता की पीड़ा महसूस करनी चाहिए, न कि देश के अन्नदाता के साथ बेगानों जैसा सुलूक करना चाहिए.

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