हमीरपुर: केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के गृह जिले में एक नेशनल एथलीट आज जूठे बर्तन मांज कर गुजारा करने को मजबूर है. हिमाचल प्रदेश के लिए 20 बार नेशनल खेल चुके इस खिलाड़ी को छोटी सी दुकान में चने समोसे बेच कर अपने परिवार का पालन पोषण करना पड़ रहा है. तमाम प्रयासों के बावजूद खेल विभाग में नौकरी न मिलने से हताश हो चुके नेशनल एथलीट शिव कुमार ने लॉकडाउन में चने समोसे बेचने के लिए घर के समीप पट्टा में अपनी दुकान खोली है.
'20 नेशनल प्रतियोगिता में भाग ले चुके हैं शिव कुमार': हमीरपुर जिले के पट्टा निवासी नेशनल एथलीट शिव कुमार इस समय विकट परिस्थितियों से जूझ रहे हैं. बता दें कि शिव कुमार ने बिलासपुर में स्टेट हॉस्टल में रहते हुए कॉलेज की तरफ से ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी में कई दफा हिमाचल का प्रतिनिधित्व किया है. जूनियर वर्ग के साथ ही सीनियर वर्ग में भी लगभग 20 नेशनल प्रतियोगिता में शिव कुमार ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. वहीं, अब खिलाड़ी को यह मलाल है कि एनआईएस पटियाला से कोच का डिप्लोमा करने और अपनी जिंदगी खेलों के प्रति समर्पित करने के बावजूद भी सरकार इस ओर कोई गौर नहीं कर रही है.
'खेल विभाग की वजह से 2016 की भर्ती में नहीं ले सके हिस्सा': शिव कुमार ने दावा किया है कि महाराष्ट्र में सीनियर वर्ग में उन्होंने हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया और 12 किलोमीटर लंबी क्रॉस कंट्री में हिस्सा लिया, लेकिन 2012 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के बावजूद उन्हें इसका सर्टिफिकेट नहीं दिया गया. अपने हक की लंबी लड़ाई के बाद 2021 में खेल विभाग ने उन्हें सर्टिफिकेट जारी किया, लेकिन इसकी वजह से वह 2016 में कोच की भर्ती के लिए पात्र नहीं बन सके. नेशनल धावक शिव कुमार ने बताया कि 2016 के बाद हिमाचल में कोच की भर्ती नहीं हुई है. जिस वजह से खेल से जुड़े हुए खिलाड़ियों को नौकरी के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं.
'सीनियर नेशनल सर्टिफिकेट के लिए काटे दिल्ली के चक्कर':नेशनल एथलीट शिव कुमार का कहना है कि विभाग की लापरवाही के कारण उनके 3 सीनियर नेशनल पूरे नहीं हो पाए, जबकि उन्होंने साल 2012 में महाराष्ट्र में क्रॉस कंट्री की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था. खेल विभाग से लंबी लड़ाई के बाद उन्हें 2016 में इसका सर्टिफिकेट जारी किया गया. शिव कुमार ने दावा किया है कि विभाग की तरफ से यह तर्क दिया जा रहा था कि वह किसी और के नाम से टूर्नामेंट में जुड़े हैं. उन्होंने कहा कि यह कैसे संभव है कि जब वह दौड़ रहे थे तो नाम किसी और का चला गया. इस दौरान सर्टिफिकेट के लिए उन्होंने दिल्ली के कई चक्कर काटे, लेकिन कोई काम नहीं बना.