एनआईटी हमीरपुर में तैयार होगा स्वदेशी नैनो फिनिशिंग सेटअप हमीरपुर:एनआईटी हमीरपुर में अब नैनो फिनिशिंग तकनीक पर शोध होगा. विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB), भारत सरकार ने इस शोध के लिए 28 लाख के ग्रांट जारी की है. नैनो फिनिशिंग के लिए स्वदेशी उपकरण तैयार होने से उद्योग, चिकित्सा, रक्षा, एयरोस्पेस के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव संभावित हैं. एनआईटी हमीरपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर दिलशाद अहमद खान यह स्वदेशी उपकरण तैयार करेंगे. डॉक्टर दिलशाद ने इस उपकरण को एक्सट्रूज़न प्रेशर पर आधारित मैग्नेटो रियोलॉजिकल फिनिशिंग टूल नाम दिया है.
भारत में नैनो फिनिशिंग तकनीक से अभी तक इस तरह का स्वदेशी उपकरण तैयार नहीं किया जा सका है. ऐसे में यह उपकरण तैयार होने से नैनो फिनिशिंग के एरिया में एक बड़ी सफलता होगी. दरअसल भारत में विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्तरीय इंजीनियरिंग कंपोनेंट्स की नैनो फिनिशिंग के लिए स्वदेशी उपकरण विकसित नहीं है. ऐसे में देश में इस तकनीक की जरूरत वाले सभी क्षेत्रों में या तो विदेशों से इंपोर्ट किया जा रहा है या फिर उपकरण की फिनिशिंग से समझौता कर बाजार में उतारा जा रहा है.
एनआईटी हमीरपुर के सहायक प्रोफेसर दिलशाद अहमद खान ने बाकायदा इस क्षेत्र में एक दो नहीं बल्कि कई पेटेंट करवाए हैं. इस विषय से जुड़े हुए सहायक प्रोफेसर दिलशाद अहमद खान के 7 पेटेंट है. विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB) से मिले इस प्रोजेक्ट को 3 साल के भीतर पूरा करना होगा. सहायक प्रोफेसर खान ने इसके लिए कार्य भी शुरू कर दिया है. प्रोजेक्ट मंजूर होने से पूर्व ही गत वर्ष इस तकनीक पर एक प्रोटोटाइप टूल तैयार किया गया है. अच्छे नतीजे सामने आने के बाद इस प्रोटोटाइप पर पेटेंट को भी मंजूरी मिल गई. पेटेंट मंजूर होने के बाद सहायक प्रोफेसर दिलशाद अहमद खान ने विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड को फंडिंग के लिए प्रपोजल भेजी थी जिसे मंजूरी मिलने के बाद अब स्वदेशी नैनो फिनिशिंग सेटअप विकसित करने की दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया है.
क्या है नैनो फिनिशिंग तकनीक, आखिर क्यों है इसकी जरुरत: ऑप्टिक्स, मोल्ड्स एवं डाई, एयरोस्पेस, रक्षा और जैव चिकित्सा उपकरणों आदि के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले उच्च स्तरीय इंजीनियरिंग कंपोनेंट्स का इस्तेमाल किया जाता है. इन उपकरणों की फिनिशिंग मैनुअल तरीके से करने पर नतीजे सटीक कर नहीं आते हैं. फिनिशिंग मतलब उपकरणों की सतह ग्लास अथवा मेटल को इस तरह से ढाला जाता है कि वह बिल्कुल सुरक्षित और पैरामीटर के दृष्टि से बिल्कुल सटीक हो. उदाहरण के तौर पर चिकित्सा के क्षेत्र में knee (घुटने) इम्प्लांट को इस तरह से नैनो तकनीक से तैयार किया जा सकता है कि उपकरण के मेटल की सतह से मरीज कोई परेशानी ना बने बल्कि इसका आकार और सतह की फिनिशिंग उच्च स्तर की हो. घुटने के ट्रांसप्लांट के दौरान कृत्रिम अंग जोकि मेटल का होता है उसकी सतह ऐसी होनी चाहिए जिससे मरीज को बाद में कोई परेशानी ना हो. लएयरोस्पेस और रक्षा मंत्रालय से जुड़े सेना के विभिन्न उपकरणों में उच्च स्तरीय नैनो फिनिशिंग तकनीक की जरूरत होती है.
ऑप्टिक सिस्टम में मेटल मिरर से समझें इसकी जरुरत और इस्तेमाल: इस तकनीक के जरिए मेटल के उपकरणों को एक मिरर के रूप में ढाला जा सकता है. सेना के ऑप्टिक सिस्टम में मेटल मिरर का इस्तेमाल बड़े स्तर पर किया जाता है. हाई पावर ऑप्टिक्स सिस्टम तथा सेटेलाइट और नेविगेशन में इनका व्यापक इस्तेमाल किया जाता है. रक्षा के साथ ही एयरोस्पेस के क्षेत्र में इस तकनीक की काफी जरूरत है. एयरोस्पेस के क्षेत्र में उपग्रहों के लॉन्च के दौरान अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले उपकरणों को संचालित करने के लिए ऊर्जा की जरूरत को सौर ऊर्जा से पूरा किया जाता है. इस दौरान भी ग्लास के मिरर के जरिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है यहां पर भी यदि मेटल ग्लास का इस्तेमाल होगा तो इन उपकरणों के टूटने की संभावना ना के बराबर होगी.
10 साल से मेटल फिनिशिंग के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं डॉ. दिलशाद: डॉ. दिलशाद अहमद खान ने 2018 में IIT दिल्ली से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. दिसंबर 2018 से NIT हमीरपुर में सहायक प्रोफेसर के रूप में सेवारत हैं. उनके पास मेटल फिनिशिंग का लगभग दस साल का अनुभव है. अपने शोध और नवाचार के लिए उन्होंने सात भारतीय पेटेंट भी दाखिल किए हैं. हाल ही में मैग्नेटिक फील्ड असिस्टेड फिनिशिंग पर उनकी पुस्तक CRC प्रैस टेलर एंड फ्रांसिस ग्रुप द्वारा प्रकाशित भी की गई थी. डॉ खान को यह अनुदान 3 वर्ष के लिए स्वदेशी फिनिशिंग सेट-अप विकसित करने और मैग्नेटो रियोलॉजिकल फिनिशिंग के क्षेत्र में आगे के शोध करने के लिए मिला है.
ये भी पढ़ें:हिमाचल की नगर निकायों में 1.84 हजार टन कचरा ,अब बनेगा रिफ्यूज डिराइव्ड फ्यूल , NGT की नजरें