हमीरपुर:लिवर ट्रांसप्लांट की सर्जरी के बाद बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है. लिवर डोनेट करने वाले को भी उतनी ही सावधानी बरतनी पड़ती है जितनी सावधानी जिस मरीज को यह डोनेट किया जा रहा है. मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब जरूरी अंगों के खराब होने के बावजूद इनका ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. हमीरपुर जिले में भी एक बेटी ने अपने पिता को लिवर का 612 ग्राम हिस्सा डोनेट कर जान बचाई. पेशे से स्टाफ नर्स प्रिया ने अपने पूर्व सैनिक पिता मोहिंद्र शर्मा की जान बचाई है.(Daughter donated liver to her father in Hamirpur)
लिवर की बीमारी से पीड़ित थे पिता- टौणीदेवी तहसील के कोहली गांव के रहने वाले मोहिंद्र शर्मा पूर्व सैनिक हैं. दिल्ली के एक निजी अस्पताल में जांच के दौरान उन्हें पता चला कि उनका लिवर खराब है. जिसके बाद डॉक्टर ने उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी. परिवार ने इस पर विचार-विमर्श किया और डॉक्टरी जांच में मोहिंद्र की बेटी प्रिया का लिवर पिता से मैच हो गया. जिसके बाद प्रिया ने अपने पिता को लिवर का हिस्सा देने का फैसला लिया. स्टाफ नर्स के रूप में कार्य करती हैं.
टिशु होने के बाद किया गया ट्रांसप्लांट-पिता के पेट दर्द की शिकायत पर बेटी ने ही अस्पताल में इलाज करवाया. जब डॉक्टरों ने लिवर ट्रांसप्लांट को ही एकमात्र उपाय बताया तो पिता की जान बचाने के लिए प्रिया ने डॉक्टरों की सलाह के बाद अपनी जांच कराई तो ट्रांसप्लांट के लिए उनका लिवर मैच हो गया. अब लिवर ट्रांसप्लांट के बाद पिता और पुत्री दोनों स्वस्थ बताए जा रहे हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि पिता-पुत्र मां बेटा जैसे रिश्तो में ट्रांसप्लांट के लिए टिशु मैचिंग की संभावना अधिक होती है.
लिवर का कितना हिस्सा किया जा सकता है डोनेट-लिवर ट्रांसप्लांट भी ठीक अन्य सर्जरी की भांति ही होता है. विशेषज्ञों के मुताबिक मरीज को लिवर के कितने हिस्से की जरूरत है यह हर केस पर अलग-अलग तरीके से निर्भर करता है. लिवर ट्रांसप्लांट की सर्जरी करने वाले डॉक्टर उतना ही रिस्क लेते हैं जितना रिस्क अन्य तरह की सर्जरी में लिया जाता है. हालांकि ट्रांसप्लांट के दौरान अधिक सावधानी बरती जाती है और डोनेट करने वाले की सेहत का भी ध्यान रखा जाता है. डोनेट करने वाले व्यक्ति की सटीक टेस्टिंग होती है और इसके बाद सर्जरी की जाती है.