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NIT के एक विद्यार्थी ने इजाद की सेमी-ऑटोमेटेड ट्रॉली, जानें क्या है इसका काम

हिमाचल प्रदेश के छोटे से जिला हमीरपुर में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) के एक विद्यार्थी रजत अनंत ने ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों को बदलने और अस्पताल के भीतर इन्हें आसानी से लाने और ले जाने के लिए एक सेमी-ऑटोमेटेड ट्रॉली तैयार की है. आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है की कहावत को चरितार्थ करते हुए बनाई गई यह ट्रॉली आने वाले समय में बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है.

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Published : Jul 18, 2021, 6:44 PM IST

हमीरपुर: विपरीत परिस्थितियां और विकट समस्याएं अक्सर हमारी क्षमता, योग्यता और धैर्य की ही परीक्षा नहीं लेती हैं, बल्कि कुछ नया सोचने एवं करने और समस्याओं का समाधान निकालने के लिए भी प्रेरित करती हैं. पिछले डेढ़ वर्ष से अधिक समय से जारी कोरोना संकट ने भी जहां हमें कई सबक दिए हैं.

वहीं, इन परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए नवाचार यानि इनोवेशन को भी बढ़ावा दिया है. इसकी एक मिसाल हिमाचल प्रदेश के छोटे से जिला हमीरपुर में भी देखने को मिल रही है. हमीरपुर की जिलाधीश देबश्वेता बनिक (DC Debashweta Banik) की प्रेरणा और प्रोत्साहन से यहां के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) के एक विद्यार्थी रजत अनंत ने ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों को बदलने और अस्पताल के भीतर इन्हें आसानी से लाने और ले जाने के लिए एक सेमी-ऑटोमेटेड ट्रॉली तैयार की है.

आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है की कहावत को चरितार्थ करते हुए बनाई गई यह ट्रॉली आने वाले समय में बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है. विशेषकर, कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका के मद्देनजर एनआईटी के विद्यार्थी की इस इनोवेशन में कई संभावनाएं नजर आ रही हैं.

जिलाधीश देबश्वेता बनिक ने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों में मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही थी और ऑक्सीजन सिलेंडरों को बार-बार बदलने और इन्हें अस्पताल की एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक ले जाने में स्वास्थ्य कर्मचारियों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी.

एक सिलेंडर को बदलने में ही काफी ज्यादा वक्त लग रहा था और इस कार्य में 5-6 लोगों की सेवाएं लेनी पड़ रही थीं. अस्पताल प्रबंधन के लिए यह अपने आप में एक बड़ी समस्या थी. जिलाधीश देबश्वेता बनिक ने बताया कि बाजार में भी इस काम के लिए कोई सेमी-ऑटोमेटेड ट्रॉली उपलब्ध नहीं थी.

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ऐसी परिस्थितियों में उन्होंने एनआईटी के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष डॉ. आरके जरयाल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश कुमार के साथ उक्त समस्या के समाधान को लेकर चर्चा की और इंजीनियरिंग एक्सपर्टस की मदद से सेमी-ऑटोमेटेड ट्रॉली विकसित करने का आग्रह किया.

इसके बाद एनआईटी (NIT) के निदेशक डॉ. ललित अवस्थी की अनुमति से दोनों विभागों ने इस दिशा में तेजी से कार्य आरंभ किया. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के विद्यार्थी रजत अनंत ने इस प्रोजेक्ट पर कार्य आरंभ किया.

आखिर रजत अनंत की मेहनत रंग लाई और दो माह के भीतर ही उन्होंने अपने छोटे भाई मोहित अनंत की मदद से एक ऐसी सेमी-ऑटोमेटेड ट्रॉली का मॉडल तैयार करने में कामयाबी हासिल की, जिसके माध्यम से केवल एक व्यक्ति ही ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों को अस्पताल की एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक बड़ी आसानी से ले जा सकता है और खाली सिलेंडरों को बहुत ही कम समय में बदल सकता है.

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पिछले महीने ही अपनी बीटेक की डिग्री पूरी करने वाला रजत अनंत बहुत ही प्रतिभाशाली विद्यार्थी है. पिछले वर्ष भी उसने इलैक्ट्रिकली चार्जड वाहन से संबंधित एक प्रोटोटाइप तैयार किया था, जिसकी काफी सराहना हुई थी.

जिलाधीश ने बताया कि रजत अनंत के नए अविष्कार को मुख्यमंत्री स्टार्ट-अप योजना में शामिल करवाने के लिए भी उद्योग विभाग के माध्यम से आवेदन कर दिया गया है. एनआईटी प्रबंधन भी इसके पेटेंट से संबंधित सभी औपचारिकताएं पूरी कर रहा है. इस प्रोजेक्ट में एडीएम जितेंद्र सांजटा और डीएसपी रोहिन डोगरा ने भी रिसर्च टीम के साथ समन्वय स्थापित करके सराहनीय योगदान दिया.

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