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कल्हेल पंचायत में लंबे समय से 'खामोश' पड़ी हैं स्ट्रीट लाइट, लोग परेशान - Electricity Department Chamba

कल्हेल पंचायत के कई गांवों में लाखों रुपये खर्च कर स्ट्रीट लाइट लगवाई गई थी, जोकि खराब हो चुकी हैं या फिर चोरी की जा चुकी हैं. इससे गांवों के चौराहों, मुख्य मार्गों व मोहल्लों में अंधेरा छाया रहता है, जिससे यहां से गुजरने वाले राहगीरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

Street light problem
खराब स्ट्रीट लाइट

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Published : Oct 12, 2020, 8:06 PM IST

चंबा:सरकार ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए कई योजनाएं बनाती हैं, लेकिन उन योजनाओं को जमीन पर उतारने के बाद रखरखाव न होने पर इनका लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पाता. ऐसा ही कुछ जिला चंबा की कल्हेल पंचायत में देखने को मिला है.

कल्हेल पंचायत के कई गांवों में लाखों रुपये खर्च कर स्ट्रीट लाइट लगवाई गई थी, जोकि खराब हो चुकी हैं या फिर चोरी की जा चुकी है. इससे गांवों के चौराहों, मुख्य मार्गों व मोहल्लों में अंधेरा छाया रहता है, जिससे छात्राओं समेत यहां से गुजरने वाले राहगीरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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खराब और चोरी की गई स्ट्रीट लाइटों की ओर पंचायती राज विभाग और पंचायत ने ध्यान नहीं दिया है. हैरानी की बात तो ये है कि इनके चोरी होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई. इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार के पंचायतों को दिए पैसे का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जाता है, जिससे परेशानी सिर्फ आम लोगों को उठानी पड़ती है.

पंचायत के खराब स्ट्रीट लाइटों की ओर ध्यान न देने पर ग्रामीणों में नाराजगी है. इस समस्या को लेकर ग्रामीणों ने कई बार मांग की, लेकिन कोई भी सुनने को तैयार नहीं है. कल्हेल पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांव देहरा, बोहली, नैला, ढांड, खण्डियारू, भलविं, सरौली, घुण्डेल सहित कई गांवों के लोगों ने मांग की है कि गांव में फिर से स्ट्रीट लाइटों का प्रावधान किया जाए, ताकि छात्रों समेत आम लोगों को भी दिक्कतों का सामना ना करना पड़े.

वहीं, दूसरी ओर बिजली विभाग चंबा के अधिशासी अभियंता पवन शर्मा का कहना है कि स्ट्रीट लाइटों का मामला बिजली विभाग के अंतर्गत नहीं आता है. यह काम नगर परिषद और पंचायतें देखती हैं, लेकिन नगर परिषद ने इनकी देखभाल और रखरखाव के लिए इसका ठेका निजी कंपनी को दिया है. उन्होंने कहा कि खराब लाइटों को लेकर नगर परिषद से पता चलने पर टीम भेजकर उन्हें ठीक करवा लिया जाता है.

लाखों रुपये खर्च करने पर भी इसका लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है. समस्या को सुलझाने की बजाय जिम्मेदारी की टोपी एक दूसरे के सिर पहनाई जाती है और आम आम लोग समस्या से जूझते रहते हैं.

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