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स्वतंत्रता दिवस-2020: भुलाया नहीं जा सकता स्वतंत्रता सेनानी मोहन सिंह का योगदान

हिमाचल के हजारों लोगों ने स्वतंत्र भारत का सपना देखने के लिए शहादत का जाम पिया है. जिला चंबा के बनीखेत से सबंध रखने वाले मोहन सिंह भी इन्हीं में से एक हैं. आज भले ही वह इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी पत्नी उनकी बहादुरी के किस्से सुनकर गर्व महसूस करती हैं.

special story on  freedom fighter Mohan Singh
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Published : Aug 14, 2020, 10:12 PM IST

चंबा:पूरा देश 74 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. इस आजादी को पाने के लिए लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. आज अगर हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, तो उसका श्रेय उन सभी वीर सपूतों को जाता है, जिन्होंने इस मिट्टी के लिए अपना बलिदान दे दिया.

आजादी की लड़ाई में हिमाचल के हजारों लोगों ने स्वतंत्र भारत का सपना देखने के लिए शहादत का जाम पिया है. जिनमें से एक हैं जिला चंबा के बनीखेत से सबंध रखने वाले मोहन सिंह हैं. भले ही मोहन सिंह अब हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन इस देश के लिए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.

वीडियो रिपोर्ट.

मोहन सिंह ने आजाद हिन्द फौज मे शामिल होकर अंग्रेजों के खिलाफ खूब लड़ाई लड़ी. उनके शौर्य और बहादुरी के किस्से आज भी देश के नौजवानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. देश को स्वतंत्र करवाने के लिए उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. करीब दस साल पहले स्वतंत्रता सेनानी मोहन सिंह का बिमारी के चलते देह्नात हो गया था. उसके बाद उनकी पत्नी तारी देवी और उनकी दत्तक पुत्री अपने पति के साथ बनीखेत स्थित अपने घर में आजादी के उन पलों को याद कर गर्व महसूस करती है.

मोहन सिंह के देहांत के बाद उनकी भांजी शिवानी अपनी मामी तारो देवी का ख्याल रखती हैं, हालंकि तारों देवी अब काफी बूढ़ी हो चुकी हैं, उनकी उम्र करीब 85 साल है. उम्र के इस पढ़ाव पर पहुंचने के बाद उन्हें सुनने में भी परेशानी होती है, लेकिन जब उनके स्वतंत्रता सेनानी पति की कोई बात करता है तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़ते हैं.

तारो देवी की दत्तक पुत्री शिवानी का कहना है कि उन्हें इस बात का गर्व महसूस होता है कि वह देश को आजाद कराने वाले स्वतंत्रता सेनानी के परिवार से संबंध रखती हैं. उन्होंने सरकार से मोहन सिंह के नाम पर स्मारक बनाने की मांग की है.

स्वतंत्रता दिवस सिर्फ आजादी की खुशी मनाने का ही पर्व नहीं है, बल्कि यह दिन हर उस शहीद और स्वतंत्रता सेनानी को समर्पित है, जिन्होंने इस देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करवाने के लिए अपनी जान की आहुति दे दी.

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