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चंबा की स्वर्णा का हुनर है कमाल, घोड़े के बालों से बना रहीं है चूड़ियां और अंगुठियां

चंबा जिले की स्वर्णा देवी घोड़े के बालों से चूड़ियां बनाने का काम करती हैं. स्वर्णा देवी ने यह काम अपनी मां से सीखा था. उनकी नानी भी यही काम करती थी. सालों पुरानी इस कला को बचाने के लिए स्वर्णा देवी ने सरकार से मदद की मांग की है. उनका कहना है कि उनकी मां के लिए सरकार की ओर से ट्रेनिंग सेंटर दिया गया था, लेकिन 2 साल बाद उसे बंद कर दिया गया. स्वर्णा देवी कहती हैं कि अगर उन्हें सरकार की ओर से मदद मिलती है तो वह लोगों को यह कला सिखा पाएंगी.

Method of making bangles
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Published : Mar 30, 2021, 6:24 PM IST

चंबा:हिमाचल प्रदेश अपनी लोक संस्कृति और पुरानी संस्कृति को सहेजने के लिए मशहूर है. यहां पर अलग-अलग तरह की संस्कृति और कला को संजोए हुए कई कलाकार पिछले कई दशकों से काम कर रहे हैं. चंबा की स्वर्णा देवी भी इन्हीं में से एक हैं.

घोड़े के बालों से चूड़ियां बनाती है स्वर्णा

प्रदेश के कुछ लोगों की बदौलत प्रदेश के अलग-अलग जिलों की कला और संस्कृति जिंदा है, लेकिन कई कलाएं ऐसी हैं जो सरकार की अनदेखी का शिकार हो रही हैं और धीरे-धीरे अब दम तोड़ने लगी हैं. चंबा जिले के चरपट मोहल्ला की स्वर्णा देवी हुनर की बेताज बादशाह हैं. वह घोड़े के बालों से चूड़ियां और अंगूठी-कंगन बनाने का काम करीब 30 सालों से कर रही हैं. यह काम स्वर्णा देवी ने अपनी मां से सीखा था जो 70 के दशक में बेहतरीन काम कर रही थीं. हालांकि सरकार की ओर से उनकी मां को 1985 में एक प्रशिक्षण संस्थान भी दिया गया था, लेकिन बाद में वह बंद हो गया और इसकी और किसी का ध्यान नहीं गया.

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कैसे बनती है घोड़े के बालों से चूड़ियां

चूड़ी बनाने के लिए घोड़े के डेढ़ से 2 फीट लंबे बाल होने चाहिए. इन बालों के साथ-साथ चूड़ी बनाने के लिए बांस की लकड़ी की जरुरत होती है. बांस की लकड़ी को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है. फिर इन्हें कंगन का आकार दिया जाता है. इसके बाद घोड़े के अलग-अलग रंगों के बालों को बांस के टुकड़ों पर बुना जाता है और इसी तरह चूड़ी बनकर तैयार हो जाती है. हालांकि अब घोड़ों के बाल की कमी होने से इस काम को करना टेढ़ी खीर जैसा साबित हो रहा है. बावजूद इसके स्वर्णा देवी जैसे तैसे करके कुछ बाल इकट्ठे करती हैं और आने वाली युवा पीढ़ी को इस कला के साथ जोड़ रही हैं.

चूड़ियां बनाने की विधि

स्वर्णा की सरकार से नाराजगी

वर्ष 1985 तक स्वर्णा देवी की मां को सरकार की ओर से कुछ आर्थिक मदद मिल रही थी, लेकिन 1985 में सरकार ने उनका प्रशिक्षण संस्थान भी बंद कर दिया था. इसके चलते यह कला आगे नहीं बढ़ सकी. हालांकि उस समय भी स्वर्णा देवी की मां ने स्वर्णा सहित अन्य युवतियों को इस काम को सिखाने की कोशिश की थी. अब स्वर्ण देवी एकमात्र महिला हैं जो इस कला को आज भी संजोए हुए हैं, लेकिन कहीं ना कहीं उन्हें इस बात का मलाल है कि अगर उनके पास संस्थान होता या सरकार उनकी सहायता करती तो आज चंबा जिले की अन्य युवतियों को भी इस घोड़े के बालों से बनने वाले आभूषणों के लिए प्रेरित किया जाता.

स्वर्णा को सरकार से सहायता की दरकार

स्वर्ण देवी की मानें तो आज भी इस कला को चलाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है रॉ मटेरियल है जो आज उनके पास उपलब्ध नहीं हैं. इस वजह से यह काम करना मुश्किल साबित होता है. उनकी मानें तो उनके पास इतने साधन नहीं है कि वह घोड़े के बाल कहीं से खरीद सकें, लेकिन सरकार चाहे तो उनकी सहायता कर सकती है.

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