चंबा: उत्तरी भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा के बड़े शाही स्नान के लिए डल झील की ओर निकलने वाले यात्री सदियों से चली आ रही परंपरा को निभा रहे हैं. पड़ोसी राज्य जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह, डोडा, किश्तवाड़, रामवन समेत अन्य हिस्सों से यात्रा पर आने वाले शिवभक्त डल झील की ओर रूख करने से पहले संचूई में शिव चेलों से अनुमति लेते हैं. अनुमति नहीं मिलने पर यात्री चौरासी मंदिर परिसर में मौजूद शिव मंदिर में माथा टेक घर की ओर लौट जाता है.
जम्मू-कश्मीर से आने वाले यात्रियों के अलावा स्थानीय लोग भी यात्रा पर जाने के लिए अनुमति लेना अनिवार्य मानते हैं. बहरहाल मणिमहेश यात्रा पर आने वाले यह यात्री सदियों से चली आ रही परंपरा को आज भी निभा रहे हैं.
शिव चेलों की अनुमति के बिना नहीं जाते डल झील बता दें कि जम्मू-कश्मीर के लोगों में भगवान भोले नाथ के प्रति गूढ़ आस्था है. हर साल हजारों की तादाद में यह लोग पवित्र मणिमहेश यात्रा पर मनोकामनाएं लेकर आते हैं. इन यात्रियों में मान्यता है कि डल झील तक की राह में किसी प्रकार की अनहोनी या विघ्न पड़ने का शिव चेलों को पहले ही आभास हो जाता है और वह यात्रियों को चौरासी से ही लौटने का सुझाव देते हैं.
पंडित ईश्वर दत्त शर्मा बताते हैं कि सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. पंडित ईश्वर दत्त शर्मा बताते हैं कि संचूई के शिव चेले सदियों से यह परंपरा निभा रहे हैं. वह कहते हैं कि जेएंडके से आने वाले यात्री शिव चेलों की अनुमति के बिना डल झील की ओर रूख नहीं करते है. वहीं यात्रियों की मनोकामना से जुड़ा बंधन शिव चेले उनकी कलाई पर बांधते हैं. बता दें कि शिव चेले सोमवार को चौरासी परिसर पहुंचे थे और बुधवार की सुबह वह डल झील तोड़ने की रस्म निभाने के लिए मणिमहेश की ओर रवाना होंगे.
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