शिमला: कारगिल युद्ध में भारतीय जवानों के अदम्य साहस की कहानी सदियों तक याद रखी जाएगी. कई रणबांकुरों ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान की. देश समेत वीरभूमि हिमाचल के जवानों ने बहादूरी की मिसाल पेश की. आज कै. विक्रम बत्रा का शहीदी दिवस है.
आज के ही दिन वीर योद्धा ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था. हिमाचल में जन्मे शहीद कै. विक्रम बत्रा के नाम से कौन वाकिफ नहीं है. कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल नगीनों में से एक हैं. 7 जुलाई 1999 को कै. बत्रा ने देश के लिए शहादत दी और उन्होंने आखिरी सांस तक देश की रक्षा करते हुए दुश्मनों को खदेड़कर बाहर किया.
हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को उनका जन्म हुआ था. बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ.
डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से हासिल की. साल1996 में वे मिलिट्री अकादमी देहरादून के लिए सिलेक्ट हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई.
हिमाचल के इस सपूत ने देश के लिए शहादत दी और इन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया. जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बत्रा भी मोर्चे पर पहुंचे. उनकी डैल्टा कंपनी को प्वाइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला. दुश्मन सेना को ध्वस्त करते हुए विक्रम बतरा और उनके साथियों ने प्वाइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. कै. विक्रम ने युद्ध के दौरान कई साहसिक फैसले लिए.
अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बत्रा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है. विक्रम बतरा का-ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था.
जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे. इसी दिन वे प्वाइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के सामने आने वाली सभी कठिनाइयों को दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया.