शिमला: भारत के पारंपरिक खेल में शामिल मलखंब को आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान मिल चुकी है. इस के माध्यम से खिलाड़ी लकड़ी के एक उर्ध्व खंभे या रस्सी के उपर तरह-तरह के करतब दिखाकर अपने लचीलेपन, कौशल और साहस का प्रदर्शन करते हैं. यह खेल, खिलाड़ी की शारीरिक ताकत, सहनशक्ति, गति, धैर्य और न्यूरोमस्कुलर समन्वय में सुधार करने में सहयोग करता है.
मलखंब खेल का प्रदर्शन करते बच्चे हिमाचल प्रदेश के किसी राज्य स्तरीय समारोह में पहली बार मलखंब का भी प्रदर्शन किया जाएगा. 15 अप्रैल को हिमाचल दिवस के अवसर पर शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में गुरुकुल कुरुक्षेत्र के लगभग 50 विद्यार्थी अपने जौहर का प्रदर्शन करेंगे.
गुरुकुल कुरुक्षेत्र, जिसके संरक्षक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत हैं. मलखंब खेल गतिविधियों का अहम हिस्सा है. यहां के विद्यार्थी राष्ट्रीय स्तर पर मलखंब के बेहतर प्रदर्शन के लिए विशेष पहचान बना चुके हैं. कभी स्कूल व गुरुकुलों में खेल गतिविधियों का हिस्सा रहा मलखंब आज स्कूल गतिविधियों से गायब हो गया है.
मलखंब खेल का प्रदर्शन करते बच्चे लेकिन, मध्यप्रदेश सरकार ने इसे राज्य खेल घोषित किया है और देश के करीब 20 अन्य राज्यों ने भी इस खेल को अपनाया है. सन 1958 में पहली बार नेशनल जिमनास्टिक चैंपियनशिप के तहत मलखंब को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में शामिल किया गया था.
इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वर्ष 1936 में बर्लिन ओलंपिक में यह प्रदर्शित खेल के रूप में शामिल किया गया था. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक महत्वपूर्ण अवसरों पर मलखंब खेल को शामिल किया गया है.
मलखंब खेल का प्रदर्शन करते बच्चे गुरुकुल कुरुक्षेत्र के विद्यार्थियों को मलखंब का प्रशिक्षण दे रहे प्रशिक्षक का कहना है कि इस खेल में शामिल बच्चे न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं बल्कि बौद्धिक तौर पर भी कुशाग्र होते हैं. ये बच्चे पढ़ाई में भी बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. वह इस खेल को योग से जोड़कर देखते हैं और कहते हैं कि इस खेल में शामिल बच्चों में उन्होंने व्यापक बदलाव देखा है. ऐसे बच्चों की एकाग्रता दूसरों से कहीं अधिक रहती है.
मलखंब को लेकर राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि विद्यार्थी गेम खेले या नहीं लेकिन मलखंब स्वस्थ शरीर के लिए भी अपने जीवन में शामिल करने से कई बीमारियां दूर रहती है. उन्होंने कहा कि आज देश का युवा नशे की गिरफ्त में आ रहा है, जो एक चिंता का कारण है. युवाओं की ऊर्जा को रचनात्मक दिशा देने में ऐसी खेल गतिविधियां कारगर सिद्ध होंगी.
मलखंब खेल का प्रदर्शन करते बच्चे उन्होंने कहा कि गुरुकुल कुरुक्षेत्र हमारी पारंपरिक व आधुनिक शिक्षा का समावेश है और मलखंब हमारी पारंपरिक खेल है. यह खेल भारतीय संस्कृति की पहचान है. मलखंब का प्रदर्शन ऐसे अवसरों पर होने से अन्य युवाओं को भी प्रेरणा मिलेगी और वह भी अपना कीमती समय इस खेल में देंगे.