बिलासपुर: एक समय था जब नलवाड़ी मेला लोगों से कम बल्कि पशुओं से ज्यादा भरा हुआ होता था. क्योंकि नलवाड़ी मेला पशुओं के क्रय-विक्रय के लिए मशहूर है. इस साल आज के समय में नलवाड़ी मेला नाम-मात्र अपनी औपचारिकताएं पूरी कर रहा है. बिलासपुर के बुद्विजीवी और बुजुर्गों की मानें तो मेला आधुनिकता की चकाचौंध में खो चुका है.
17 मार्च से बिलासपुर नगर के लुहनु मैदान में राज्यस्तरीय नलवाड़ी मेला शुरू होने जा रहा है. यह मेला 132 साल पूरा कर गया है. कहलूर रियासत के राजाओं के समय यह मेला शुरू किया गया था. पिछले साल कोविड के चलते यह मेला नहीं हो पाया था.
राजाओं के समय से चला रहा है नलवाड़ी मेला
करीब 132 वर्ष पूरे कर चुके नलवाड़ी मेले का स्वरूप अब बदल गया है. गोबिंद सागर झील में डूबे सांडू के मैदान में आयोजित होने वाले मेले ने नए शहर बिलासपुर के लुहणू मैदान तक का लंबा सफर तय किया है. नलवाड़ी का आकर्षण आम जनता के लिए तब भी था और आज भी है. पहले के समय में नलवाड़ी मेला सांडू मैदान में राजा के आदेशों के मुताबिक चलता था. उस समय भी यहां पर व्यापारी सामान लेकर पहुंचते थे. तब ऊंटों में सामान लेकर व्यापारी पंजाब के रोपड़ और नवांशहर से यहां पहुंचते थे. रोपड़, नालागढ़ और बिलासपुर के ग्रामीण क्षेत्रों से बैलों की मंडी नलवाड़ी मेले में लगती थी. हजारों की संख्या में पशुओं का क्रय-विक्रय होता था.
47 साल से लुहणू मैदान पर मनाया जा रहा है मेला
वहीं, समय के साथ नलवाड़ी मेला बिलासपुर के नए लुहणू मैदान में स्थानांतरित हो गया. पहले इस मेले का आयोजन नगर पालिका करती थी, लेकिन बाद में इसे राज्य स्तरीय मेला घोषित कर दिया गया. इसके बाद जिला प्रशासन और सरकार ने इसे चलाना शुरू कर दिया. पहले नलवाड़ी मेले में छिंज यानी कुश्ती मुख्य आकर्षण थी. वरिष्ठ साहित्यकार कुलदीप चंदेल बताते हैं कि करीब 47 वर्षों से इस मेले को लुहणू मैदान में आयोजित किया जा रहा है. नलवाड़ी मेले में पहले रात्रि कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे, जिसमें प्रसिद्ध लोक कलाकार लोक संस्कृति से ओतप्रोत कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे. उस समय स्वर्गीय गंभरी देवी, रोशनी देवी और संतराम चब्बा आदि प्रसिद्ध लोक कलाकार हुआ करते थे. इन्हें सुनने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों से लोग पहुंचते थे. किसी समय उत्तर भारत के प्रसिद्ध मेलों में बिलासपुर का नलवाड़ मेला अब अपना वास्तविक स्वरूप खो चुका है.
पूजन के लिए बाहर से मंगवाए जाते हैं बैल