बिलासपुर: ब्रेवेस्ट ऑफ दी ब्रेव पुरस्कार से सम्मानित घुमारवीं के मसधान के जवान राजकुमार वशिष्ठ की करगिल की पहाड़ियों में लिखी बहादुरी की इबारत आज 21 साल बाद भी लोगों की जुबां पर तरोताजा है. करगिल में शहादत का जाम पीने वाले जवान राजकुमार को याद करके हर हिंदोस्तानी का सीना फक्र से चैड़ा हो जाता है.
सात नवंबर 1965 को जन्मे राजकुमार को बचपन से ही सेना में जाने का शौक था. उन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई मोरसिंघी स्कूल में की. उसके बाद उन्होंने घुमारवीं स्कूल में दाखिला लिया. पढ़ाई पूरी करने के बाद राजकुमार 1985 में सेना के 22 ग्रेनेडियर्स में भर्ती हुए थे. करगिल की लड़ाई के दौरान उनकी पोस्टिंग बटालिक सेक्टर में की गई थी.
11 जुलाई 1999 को सुबह शहीद हवलदार राजकुमार वशिष्ठ ने करगिल के बटालिक सेक्टर के घनासक क्षेत्र में दुश्मनों की भारी गोलाबारी और तोपखानों की बौछारों की बीच जान की परवाह न करते हुए अपने साथियों तक हथियार व गोले पहुंचाएं थे.
राजकुमार जानते थे कि साथियों तक अगर हथियार नहीं पहुंचाए गए तो जीत हासिल करना मुश्किल होगा. इस दौरान वह स्पलिंटर से बुरी तरह घायल स्पलिंटर होकर वीरगति को प्राप्त हो गए.