बिलासपुरः बिलासपुर की जीवनदायिनी नदी सतलुज शहर की सीवरेज की गंदगी के कारण दूषित हो रही है. गोविंद सागर झील में सीवरेज की गंदगी बिना ट्रीटमेंट के डाली जा रही है. जिससे जलजनित रोगों के फैलने के साथ-साथ जलचरों के अस्तित्व को भी खतरा पैदा हो गया है.
नगर के डियारा सैक्टर में व्यास गुफा के पास स्थित नाले और मीट मार्केट के नाले से निकलने वाली गंदगी को सीधे झील में बहाया जा रहा है. बिलासपुर के लुहणू खेल परिसर के क्रिकेट मैदान में अभी हाल ही में हुए जल भराव का कारण भी पानी की पाईपों को छोटा करना रहा है. बीते दिनों हुई भारी बरसात से सारा गंदा पानी क्रिकेट मैदान में घुस गया था जिससे क्रिकेट संघ बिलासपुर को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.
मैदान में सीवरेज पाइप लाइन ब्लॉक होने से सीवरेज के गंदे पानी को खुले में विकल्प के तौर पर एक नाली खोद कर झील में बहाया जा रहा है. सिंथैटिक ट्रैक को बचाने के लिए सीवरेज की सारी गंदगी एक अस्थायी नाली के जरिए सतलुज नदी में बहाई जा रही है. इसके अलावा शहर के विभिन्न जगहों से करीब 6 नालों से निकलने वाली गंदगी बिना किसी ट्रीटमेंट के झील में जा रही है. जिससे झील की जैव विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया है. इससे जल जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है, जिस कारण मत्स्य उत्पादन पर भी साल दर साल कम होता जा रहा है.
ब्रीडिंग ग्राऊंड हो रहे खत्म, मछली उत्पादन भी कम
मछली उत्पादन के आंकड़ों पर नजर डालें तो ये हर वर्ष कम हो रहा है. वर्ष 2013-14 में गोविंद सागर झील में 1492 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हुआ था जबकि 2014-15 में 1061 मीट्रिक टनए 2015-16 में 858 मीट्रिक टन व 2016-17 में महज 753 मीट्रिक टन मत्स्य का उत्पादन हुआ था. विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार दूषित होते पानी व अवैध डंपिंग से ब्रीडिंग ग्राऊंड खत्म हो रहे हैं जिससे मछली उत्पादन कम हो रहा है.
सीवरेज व्यवस्था को दुरुस्त करने की घोषणाएं आश्वासन तक सिमटी
सीवरेज व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए वर्ष 2012 में योजना तैयार की गई थी. करोड़ों रुपए की लागत से आईपीएच विभाग द्वारा 2 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाने हैं. जिनमें से एक लखनपुर व दूसरा लुहणू खैरियां में बनना है, लेकिन यह योजना लंबे समय से फाइलों में ही अटकी हुई है. जिस कारण हर रोज सीवरेज की गंदगी सीधे झील में मिल रही है, वहीं झील को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की कवायदें कागजों और राजनीतिक मंचों तक ही सीमित हैं. गौर हो कि वर्तमान में शहर के 11 वार्डों में पुरानी सीवरेज प्रणाली ही चल रही है. शहर में 12 सेप्टिक टैंक बनाए गए हैं. इनकी अधिकतम क्षमता सिर्फ 500 लोगों की है. यदि ट्रीटमेंट प्लांट बनकर तैयार हो जाते हैं तो क्षमता बढ़कर 40 हजार हो जाएगी.
पूर्व प्रशाशनिक अधिकारी व वरिष्ठ साहित्यकार सुशील पुण्डीर का कहना है कि सफाई यहां पर बिल्कुल नही है. सीवरेज की गंदगी यहां पर निरंतर मिल रही है. सारी गंदगी झील में फेंकी जाती है. जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.