बिलासपुर:इस साल भी बिलासपुर के पौराणिक मंदिरों के जीर्णोद्धार की कवायद शुरू होने से पहले ही बंद हो गई. तीन से चार महीने के लिए पानी से बाहर निकले मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए सरकार हर साल प्लान तैयार करती है, लेकिन यह चार माह सिर्फ सरकार प्लानिंग में ही लगा देती है. इसके बाद चार माह के बाद यह मंदिर फिर से गोबिंदसागर झील के आगोश में समा जाते हैं. इस साल भी कुछ ऐसा ही हुआ है.
हालांकि, कोविड-19 की वजह से मंदिरों को शिफ्ट करने को लेकर कई अहम फैसले नहीं लिए गए, लेकिन हर साल इन मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए सरकार बैठकें कर कागजों में ही कवायद शुरु करती है. यहां पर 60 सालों से जमीनी स्तर पर इन मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए कोई भी सरकार सजग नजर नहीं आई.
गौरतलब है कि 60 सालों से पानी के आगोश में आए पुराने बिलासपुर शहर के डूबे मंदिरों का बसाव अभी तक भी अपनी राह ताक रहा है. हर साल मंदिर कभी पानी के आगोश में डूबे हुए नजर आते हैं, तो कभी बंजर पड़ी जमीन पर अपनी बदकिस्मती के दिन गिनते रहते हैं.
गौर हो कि भाखड़ा बांध बनने के बाद गोबिंद सागर झील में जलमग्न दशकों पुराने मंदिर रंगनाथ, खनमुखेश्वर, ठाकुरद्वारा, मुरली मनोहर मंदिर पानी में डूबे हुए हैं. राजा आनंद चंद के बनवाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर समेत कई देवालय आज भी अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं.