ऊना: कुछ लोग होते हैं जो अपनी जिंदगी पर नाज करते हैं और कुछ लोग होते हैं जिन पर जिंदगी नाज करती है. जिला कांगड़ा के स्वाणा गांव से संबंधित कैप्टन संजय पराशर ने समाज में ऐसी ही मिसाल दी है जिससे हर किसी को अपने देश और समाज के लिए कुछ बेहतर करने की प्रेरणा मिले.
संजय पराशर ने सामाजिक सरोकार निभाते हुए विदेशों में फंसे 600 से ज्यादा भारतीय नाविकों को सुरक्षित बाहर निकाला है. इतना ही नहीं उन्होंने इस काम में न तो सरकार से कोई वित्तीय मदद ली और ना ही फंसे नाविकों के परिजनों से रुपये लिए.
विदेशों में किसी भी कारण से फंसे हुए नाविकों के लिए संजय पराशर संजीवनी से कम नहीं हैं. अगर कोई भारतीय नाविक या समुद्री जहाज विदेश में फंस जाता है, तो उसके जहन में पहला नाम संजय पराशर का ही आता है और बड़ी बात यह भी है कि संजय भी किसी को निराश नहीं करते हैं.
संजय पराशर ने बताया कि इत्तेफाक से भगवान ने उन्हें ये काम सौंप दिया है तो वे भी नाविकों की मदद के लिए अपना शत-प्रतिशत दांव पर लगा देंगे. संजय वर्तमान में मुंबई में एक शिप कंपनी के मालिक हैं और वहीं से नाविकों की मदद करते हैं.
ऐसे हुई थी नाविकों को बचाने की शुरुआत
संजय पराशर के इस अभियान की शुरुआत पांच साल पहले हुई जब ईरान में फंसे एक परित्यक्त जहाज नाविक रंजीत सिंह के परिवार ने सहायता के लिए उनसे संपर्क किया. संजय पराशर ने तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से संपर्क किया और इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की. सुषमा स्वराज ने उन्हें सहायता का भरोसा दिलाया और इस मामले में पूरी मदद की.
इसके बाद संजय पराशर ईरान पहुंचे तो वहां पता चला कि ईरान में फंसा नाविक रंजीत सिंह की मौत हो चुकी है. ऐसे में संजय पराशर न सिर्फ रंजीत सिंह के शव को भारत लाए, बल्कि सारा खर्च भी उठाया.
संजय पराशर का कहना है कि इस दौरान उन्हें ये भी पता चला कि ऐसे दर्जनों मामले हैं जिनमें भारतीय नाविक किसी न किसी कारण से समुद्री जहाजों में फंसे हुए हैं या गैरकानूनी रूप से एजेंटों के झांसे में आकर बिना वेतन के अपनी सेवाएं दे रहे थे. उन्होंने कहा कि इसके बाद नाविकों को बचाने की मुहिम शुरू कर दी.