सोलन:वर्तमान समय में जल संरक्षण समूचे विश्व के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता है. सूखे से निपटने, जलस्त्रोतों के विकास एवं जल संरक्षण की दिशा में केंद्र और प्रदेश स्तर पर काम किया जा रहा है. जल सभी के लिए अत्यंत आवश्यक है. खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए जल प्रबंधन बहुत जरूरी है.
इस दिशा में अत्यंत भूमिका निभा रही है जलागम परियोजना. राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) विगत लंबे समय से पूरे देश में जलागम विकास की दिशा में कार्यरत है. नाबार्ड वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में ब्यास, रावी और सतलुज नदियों के जल क्षेत्रों में जलागम विकास की दिशा में कार्य किया कर रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण एवं मृदा संरक्षण के लिए वर्षा के जल के बहाव की गति को कम कर वर्षा जल को संग्रहित कर जल एवं मृदा का संरक्षण सुनिश्चित बनाना है.
नाबार्ड के तहत प्रदेश के सोलन, सिरमौर, चंबा, शिमला, मंडी, बिलासपुर और कुल्लू जिलों में 27 वाटरशेड और स्प्रिंग्सशेड विकास परियोजनाओं को स्वीकृत किया गया है. इनमें से से 6 परियोजनाएं पूर्ण हो चूकी हैं और 21 वर्तमान में कार्यवान्वित की जा रही हैं. नाबार्ड ने सोलन जिला के कुनिहार विकास खंड की ग्राम पंचायत दसेरन में दसेरन वाटरशेड परियोजना जलागम विकास निधि के तहत वर्ष 2010 में कार्य आरंभ किया.
परियोजना का कार्यान्वयन अंबुजा सीमेंट फाउंडेशन के माध्यम से किया गया है. यह परियोजना कार्य पूर्ण होने के बाद से कुनिहार विकास खंड की 944 हेक्टेयर भूमि को लाभान्वित कर रही है. योजना से 739 परिवार लाभ प्राप्त कर रहे हैं.
- जल, वन एवं पर्यावरण सरंक्षण हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य के लिए अत्यंत आवश्यक
जल, वन एवं पर्यावरण संरक्षण हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य के लिए अत्यंत आवश्यक है. पहाड़ में इनका संरक्षण मैदानी क्षेत्रों को भी लाभ प्रदान करता है. इस कार्य में जन सहभागिता अनिवार्य है. जलागम कार्यक्रम सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से वर्षा को रोको वहां, जहां वह गिरती है सिद्धांत पर आधारित है. कार्यक्रम के तहत विभिन्न गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए रिज टू वैली दृष्टिकोण को अपनाया जाता है.
जलागम क्षेत्र में रिज से वैली तक जल को रोकने के लिए विभिन्न उपायों से क्षेत्र एवं जल निकासी संबंधी कार्य किए जाते हैं. इन कार्यों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए सामुदायिक विकास संगठन जैसे ग्राम जलग्रहण समिति और स्वयं सहायता समूह आदि का गठन भी किया जाता है. यह समिति और स्वयं सहायता समूह आपसी समन्वय से क्षेत्र में भौतिक सत्यापन कर कार्य के क्रियान्वयन को अंतिम रूप प्रदान करते हैं.
- वाटरशेड परियोजना से जल भंडारण क्षमता में हुई लगभग 22 लाख लीटर की वृद्धि