सोलनः हिमाचल प्रदेश में सेब सीजन जोर पकड़ने वाला है. सीजन के साथ ही बागवानों को सेब में लगने वाली बीमारियों की चिंता भी सताने लगती है. सेब में खासतौर पर लगने वाली स्कैब बीमारी बागवानों को परेशान करती है.
मानसून के आने से वातावरण में नमी की अधिकता हो जाती है. इसके बाद पौधों में रोगों का प्रकोप भी दिखाई देने लगता है. गौरतलब है कि सेब में स्कैब की समस्या जो करीब समाप्त समझी जा रही थी. पिछले साल से हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में इसका प्रकोप दिखाई दिया है. इस साल स्कैब रोग की समस्या प्रदेश के कुल्लू, मंडी और शिमला के कुछ क्षेत्रों में आ रही है. इसलिए समय रहते रोग को फैलने से रोकने के लिए उपाय करना जरूरी है.
नौणी विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक डॉ. शालिनी शर्मा ने सेब बागवानों को इन रोगों से बचाव के लिए सलाह दी है. उन्होंने कहा कि नौणी विश्वविद्यालय ने बागवानों को सलाह दी है कि वे विश्वविद्यालय और बागवानी विभाग के अनुशंसित स्प्रे शेड्यूल का सख्ती से पालन करें और स्प्रे करते समय सभी एहतियात बरतें.
ऊंची एवं मध्य पहाड़ियों वाले क्षेत्र
इस रोग से सेब को बचाने के लिए प्रोपीनेब के स्प्रे में 0.3% (600 ग्राम / 200 लीटर पानी) या डोडिन में 0.075% (150 ग्राम / 200 लीटर पानी) या मेटिरम 55% + पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5% WG में 0.150% (300 ग्राम /200 लीटर पानी) या टेबुकोनाज़ोल 8% + कप्तान 32% SC में (500एमएल/ 200 लीटर पानी) सेब स्कैब की रोकथाम के लिए प्रयोग करें.
वहीं, मेटिरम 55% + पाइरक्लोस्ट्रॉबिन 5% WG में 0.150% (300 ग्राम / 200 लीटर पानी) या फलक्सापाइरोकसाड + पाइरक्लोस्ट्रोबिन SC में 0.01% (20एमएल / 200लीटर) का असामयिक पतझड़ व अल्टरनेरिया धब्बा रोग से बचाव के लिए इस्तेमाल करें.
निम्न ऊंचाई वाले क्षेत्र
स्कैब के प्रबंधन के लिए प्रोपीनेब में 0.3% (600 ग्राम/200 लीटर पानी) के स्प्रे की सलाह दी जाती है, जबकि समय से पहले पत्ती गिरने के प्रबंधन के लिए टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्राइफ्लोक्सिस्ट्रोबिन 25% WG में 0.04% (80 ग्राम/ 200 लीटर पानी) की सिफारिश की जाती है.