सोलन:शुक्रवार से तीन दिवसीय राज्यस्तरीय शूलिनी मेले का आगाज हो चुका है. कोरोना काल के चलते 2 सालों के बाद पूरे विधि-विधान व पारंपरिक पूजा अर्चना के साथ माता शूलिनी की शोभायात्रा शूलिनी मंदिर परिसर (MAA SHOOLINI FAIR START) से निकल शहर होते हुए गंज बाजार स्थित अपनी बहन के घर पहुंच चुकी है. शोभायात्रा मंदिर से निकल सबसे पहले पुरानी कचहरी चौक पहुंची, जहां सूबे के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल ने माता शूलिनी की शोभायात्रा के दर्शन कर प्रदेश के उज्जवल भविष्य की कामना की.
शोभायात्रा शहर के बाजार होते हुए, ओल्ड बस स्टैंड, ओल्ड डीसी आफिस होते हुए अपनी बहन के पास गंज बाजार पहुंची. साल 2019 के बाद ये ऐसा मौका था जिसमें पूरे विधि-विधान के साथ माता की पालकी निकाली गई. वहीं, इस शोभायात्रा यात्रा के दौरान हजारों लोगों का हुजूम भी देखने को मिला. स्वास्थ्य मंत्री के साथ इस दौरान सोलन विधायक कर्नल धनीराम शांडिल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व नाहन के विधायक डॉ. राजीव बिंदल और अन्य नेता मौजूद रहे.
दुल्हन की तरह सजा बाजार,जगह-जगह लगे भंडारे:2 साल बाद पूरे विधि विधान के साथ मनाए जा रहे माता शूलिनी मेले को लेकर (MAA SHOOLINI FAIR START) इस बार दुल्हन की तरह सोलन शहर सजा हुआ है. जगह-जगह दुकानें सजी हैं. वहीं, ठोडो ग्राउंड भी लोगों से खचाखच भरा हुआ है. सांस्कृतिक संध्या, मेले के दौरान मुख्य आकर्षण का केंद्र है. वहीं, मेले के पहले दिन से ही शहर में जगह-जगह विभिन्न संस्थाओं द्वारा भंडारों का आयोजन भी किया गया है.
1 साल बाद मिलती हैं दोनों बहनें, 2 दिन तक अपनी बहन के पास ठहरेगी माता शूलिनी:बता दें कि आषाढ़ मास के दूसरे रविवार को शूलिनी माता के मेले का आयोजन किया जाता है. पहले दिन मां शूलिनी पूरे शहर की परिक्रमा करके रात को गंज बाजार में स्थित दुर्गा माता मंदिर में अपनी बहन के पास रहती है. पूरे 2 दिन तक मां दुर्गा के मंदिर में अपनी बहन संग माता ठहरती है. मेले के अंतिम दिन शाम को दोनों बहने 1 वर्ष के लिए फिर से जुदा हो जाती हैं और मां शूलिनी अपने स्थान पर चली जाती हैं.
माता के नाम से ही हुआ है सोलन शहर का नामकरण:माता शूलिनी देवी के नाम से ही सोलन शहर का नामकरण हुआ था, जो कि मां शूलिनी की अपार कृपा से दिन प्रतिदिन समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहा है. सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करती थी. इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी. 12 घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था. इस रियासत के प्रारंभ में राजधानी जौनाजी और फिर बाद कोटि और बाद में सोलन बनी. बता दें कि देवभूमि हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले पारंपरिक और प्रसिद्ध मेले में माता शूलिनी मेला भी प्रमुख स्थान रखता है. बदलते परिवेश के साथ यह मेला अपनी प्राचीन परंपरा को संजोए हुए है.
राज्यस्तरीय शूलिनी मेले का आगाज बघाट रियासत से जुड़ा है मेले का इतिहास:मेले का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी बघाट रियासत के (History of Shoolini Fair) शासकों की कुलश्रेष्ठा देवी मानी जाती है. बता दें कि राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे. रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी देवी का मेला लगता आ रहा है. जनश्रुति के अनुसार बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन करते थे. वर्तमान में माता का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में विद्यमान है. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता की प्रतिमाएं भी मौजूद है. पौराणिक कथाओं के अनुसार माता शूलिनी सात बहनों में से एक है. अन्य बहने हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं. माता शूलिनी देवी के नाम से ही सोलन शहर का नामकरण हुआ है.
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