सोलन: एक जमाने में लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर घराट में आटा पिसवाने आते थे, लेकिन अब लोग पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे को भूलते जा रहे हैं. जिसके चलते घराटा चलाने वालों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए घराटों का पीसा हुआ आटा लोगों के घर-घर जाकर बेचना पड़ रहा है. जिला सोलन के कुनिहार क्षेत्र में आज से करीब 60 -70 साल पहले कई घराट थे, लेकिन सरकार और प्रशासन की अनदेखी के कारण एक-एक करके सब बंद होते चले गए.
पुराने समय में आटा पीसने के लिए मशीनें नहीं होती थीं, जिससे गांव के लोगों ने आटा पीसने की विशेष विधि की खोज की. ग्रामीण पानी के तेज बहाव से चलने वाली चक्की से आटे को पीसते थे. जिसको घराट कहा जाता है, लेकिन मौजूदा समय में प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों में अब कुछ ही घराट बचे हैं वह भी अपनी अंतिम सासें ले रहे हैं.
स्थानीय निवासी ओमप्रकाश ने बताया कि खड़ के पानी के बहाव को कूहल(छोटी सी नहर) के जरिए घराट की तरफ मोड़ा जाता है और घराट चक्की के नीचे पंखों पर डाला जाता है. जिससे पंखे तेजी से घूमने लगते हैं. जिस के कारण घराट की चक्की चलती है. उन्होंने बताया कि पानी के बहाव के अनुसार ही 80 से 100 किलो तक आटा पीसा जा सकता है, क्योंकि चक्की में दानें धीरे धीरे निकलते हैं. घराट का आटा पोष्टिक, लजीज और स्वास्थ्यवर्धक होता है. मशीनी युग मे आज भी लोग घराट में पीसा आटा खाना पसंद करते है.
देलग गावं में चार घराट करीब एक सदी से आज भी चल रहे हैं. देलग में घराट चलाने वाले ओमप्रकाश ने बताया कि पूरे दिन में करीब एक क्विंटल आटा पिसा जाता है.पहले कुनिहार, डुमेहर, रामशहर आदि क्षेत्रों के लोग इस क्षेत्र के घराटों से ही आटा ले जाते थे.
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