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सियाचिन में शहीद हुआ 14 जीटीसी सुबाथू का जवान बिलजंग गुरुंग, आज होगा अंतिम संस्कार

सियाचिन ग्लेशियर में देश की रक्षा के लिए तैनात हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के सुबाथू स्थिति 14 जीटीसी के जवान बिलजंग गुरुंग शहीद हो गए हैं. आज सैन्य सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया जाएगा.

14 gtc Gorkha soldiers martyred at Siachen glacier
बिलजंग गुरुंग

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Published : Dec 8, 2020, 7:25 AM IST

Updated : Dec 8, 2020, 7:33 AM IST

सोलन: शून्य से माइनस 50 डिग्री तापमान वाले सियाचिन ग्लेशियर में देश की रक्षा के लिए तैनात हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के सुबाथू स्थिति 14 जीटीसी के जवान बिलजंग गुरुंग शहीद हो गए हैं. उनकी शहादत से पूरी यूनिट में गम का माहौल है. आज सैन्य सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया जाएगा.

माइनस तापमान में ड्यूटी करना बड़ी चुनौती

बता दें कि सियाचिन में डयूटी करना अपने आप में ही एक बड़ी चुनौती रहती है. मौसम को ही सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है. हाल ही में भी खबरें आई थी कि चीन के सैनिक भारत सीमा पर कठिन भौगोलिक परिस्थितियों मे माइनस तापमान के बीच मात्र 24 घंटे ही तैनात रह पा रहे हैं, जबकि इसके विपरीत भारतीय जवान लंबी डयूटी करने में भी सक्षम हैं.

8 महीने की गर्भवती पत्नी नहीं कर पाएगी शहीद के अंतिम दर्शन

शहीद बिलजंग की धर्मपत्नी गर्भवती है और अगले महीने डिलीवरी होनी है. इस कारण वह सुबाथू छावनी नहीं आ पाई. भारत-चीन अंतर्राष्ट्रीय सीमा के बर्फीले क्षेत्र में पेट्रोलिंग के दौरान शहीद हुए 3/1 गोरखा राइफल्स के नायक बिलजंग गुरुंग का पार्थिव शरीर सोमवार को सुबाथू छावनी नहीं पहुंच पाया. लद्दाख से पार्थिव देह लेकर आ रहे हेलीकॉप्टर ने खराब मौसम के कारण देरी से उड़ान भरी. सोमवार शाम को शहीद का पार्थिव शरीर कसौली छावनी पहुंच पाया है, लेकिन देरी होने की वजह से सुबाथू नहीं लाया जा सका.

आज होगा शहीद का अंतिम संस्कार

शहीद के पिता लोकराज गुरुंग भी भारतीय सेना की 3/1 गोरखा राइफल्स से पेंशन आउट हुए हैं. शहीद के अंतिम संस्कार की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. परिजन, सैन्यकर्मी एवं छावनी निवासी सोमवार को दिनभर शहीद के पार्थिव शरीर का इंतजार करते रहे, लेकिन दोपहर तक नहीं पहुंच पाने के बाद यह तय किया गया कि शहीद का अंतिम संस्कार आज यानि मंगलवार को होगा.

एक योद्धा के रूप में होती है गोरखा जवानों की पहचान

14 जीटीसी (गोरखा ट्रेनिंग स्कूल) के जवानों को एक योद्धा के रूप में पहचाना जाता है. साल 1814 में मालोन किले को ब्रिटिश शासन से छुड़ाने के लिए मात्र 200 सैनिकों ने ब्रिटिश फौज के 2000 सैनिकों का सामना किया था. बंदूक व तोपों का जवाब खुखरी से दिया था.

Last Updated : Dec 8, 2020, 7:33 AM IST

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