शिमला:भारत सरकार, हिमाचल प्रदेश सरकार और विश्व बैंक ने हिमाचल प्रदेश में चयनित ग्राम पंचायतों में पीने का पानी मुहैया करवाने और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए 80 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए.
हिमाचल प्रदेश में सोर्स सस्टेनेबिलिटी और क्लाइमेट रेजिलिएंट रेन-फेड एग्रीकल्चर के लिए इंटीग्रेटेड प्रोजेक्ट को 10 जिलों की 428 ग्राम पंचायतों में लागू किया जाएगा. इस प्रोजेक्ट के तहत छोटे किसान जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं, देहाती समुदाय सहित 4,00,000 से अधिक छोटे किसान लाभान्वित होंगे.
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव समीर कुमार खरे ने कहा, ''जैसा कि हम भारत में क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर प्रैक्टिस को बढ़ावा देते हैं, ऐसे में किसानों को जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता की आवश्यकता होगी. एक पहाड़ी राज्य के रूप में हिमाचल, जलवायु परिवर्तन और इससे संबंधित जोखिमों को लिए असुरक्षित है.''
समीर कुमार खरे ने कहा कि इस परियोजना के तहत सतत जल प्रबंधन अभ्यास किसानों की आय को दोगुना करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है. यह भारत सरकार का एक निर्धारित लक्ष्य है. इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि पानी का उपयोग करने के लिए सभी उपलब्ध तकनीकों और संसाधनों का उपयोग करें.
इस समझौते पर भारत सरकार की ओर से सचिव समीर कुमार खरे ने हस्ताक्षर किए. इस मौके पर हिमाचल सरकार की ओर से राम सुभाग सिंह अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन) और विश्व बैंक की ओर से भारत के कंट्री डायरेक्टर जुनैद अहमद मौजूद रहे.
विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर जुनैद अहमद ने कहा, ''जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है लेकिन, इसके प्रभाव को देखते हुए, स्थानीय स्तर पर निर्माण में लचीलापन लाने की जरूरत है.''
बता दें यह परियोजना जंगलों, चरागाहों और मैदानी इलाकों में अपस्ट्रीम जल स्रोतों में सुधार किया जाएगा. इसके अलावा प्रदेश सरकार ये सुनिश्चित करेगी कि प्रदेश के डाउनस्ट्रीम इलाकों में भी कृषि के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो सके.
परियोजना के तहत पानी की गुणवत्ता और उसकी मात्रा की निगरानी के लिए हाइड्रोलॉजिकल निगरानी स्टेशन स्थापित किए जाएंगे. यह निवेश भविष्य के पानी के बजट की नींव रखेगा, जो बेहतर भूमि उपयोग और कृषि निवेशों में मदद करेगा.
इस परियोजना से वनों, चरागाहों और घास के मैदानों में अपस्ट्रीम जल स्रोतों में सुधार होगा और यह सुनिश्चित होगा कि हिमाचल प्रदेश और डाउनस्ट्रीम दोनों राज्यों में स्थायी कृषि के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो.
डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में परियोजना के निवेश से उच्च दक्षता वाली सिंचाई के लिए छोटे किसानों की पहुंच बढ़ेगी और किसानों को कम मूल्य वाले अनाज के उत्पादन से जलवायु-लचीला फसल की किस्मों में स्थानांतरित करने में मदद मिलेगी, जिसमें उच्च मूल्य वाले फल और सब्जियां शामिल हैं.
यह परियोजना हिमाचल प्रदेश वन विभाग और ग्राम पंचायतों की जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करने की क्षमता का भी निर्माण करेगी और अन्य सरकारी कार्यक्रमों, विशेष रूप से कृषि, बागवानी और पशुपालन विभागों के साथ मिलकर काम करेगी.
कृषि अर्थशास्त्री और विश्व बैंक के टास्क टीम लीडर स्टिकलर ने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस परियोजना के तकनीकी और वित्तीय समर्थन के साथ क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर प्रैक्टिस को अपनाने के लिए और अधिक किसानों को सशक्त बनाया जाएगा और हिमाचल प्रदेश वन विभाग और ग्राम पंचायत में स्थायी भूमि और जल संसाधन प्रबंधन को संयुक्त रूप से योजना बनाने, लागू करने और निगरानी करने में बेहतर होगा.
उन्होंने बताया कि इस तरह के प्रयासों से राज्य के लिए कार्बन लाभ होने की भी उम्मीद है. परियोजना क्षेत्र के लिए प्रति हेक्टेयर शुद्ध ग्रीनहाउस गैस का लाभ 0.6 tco2 (कार्बन डाइऑक्साइड) प्रति हेक्टेयर होने का अनुमान है.
इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (IBRD) से 80 मिलियन डॉलर का यह ऋण 14.5 वर्षों की फाइनल मैच्योरिटी तक के लिए है, जो पांच साल की अवधि को कवर करता है.
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