शिमला: रेबीज की रोकथाम का सबसे सस्ता उपाय खोजने वाले डॉ. ओमेश भारती के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ गई है. डब्ल्यूएचओ ने ओमेश भर्ती को एक और जिम्मेदारी (WHO gave new responsibility to Omesh Bharti) दी है. उन्हें रीजनल टेक्निकल एडवाइजर ग्रुप में सदस्य के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी गई है. यह नियुक्ति 3 साल के लिए की गई है.
रेबिज की रोकथाम के लिए आवश्यक:डॉ. उमेश भारती ने बताया कि रेबीज की रोकथाम के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा बनाए गए रीजनल टेक्निकल एडवाइजर ग्रुप की भूमिका बहुत है. यह ग्रुप डॉग बाइट के बाद पीड़ित व्यक्ति में रेबीज के लक्षणों का अध्ययन एक निश्चित समय अंतराल पर करेगा. जिसके बाद विशेषज्ञ डब्ल्यूएचओ को एडवाइज करेंगे ,ताकि विश्व से रेबीज को धीरे-धीरे खत्म किया जा सके. 2030 तक डॉग बाइट के बाद रेबीज से किसी भी व्यक्ति की मौत ना हो इस लक्षय को प्राप्त किया जा सके. रेबीज की रोकथाम के लिए क्षेत्र में चलाए जाने वाले सभी बड़े अभियानों और योजनाओं पर सलाह देने का काम भी यह विशेषज्ञ करेंगे ,ताकि योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके.
शोध में मदद मिलेगी:उल्लेखनीय है कि कुत्तों के काटने से रेबीज होता है. इसका कोई इलाज नहीं ,लेकिन कुत्ते के काटने के बाद यदि एंटी रेबीज इंजेक्शन समय पर लग जाए तो रेबीज की रोकथाम हो जाती है. पहले यह रोकथाम का उपाय बहुत महंगा था. एक इंजेक्शन 35 से 50 हजार रुपए तक की कीमत में मिलता था. अब डॉ. ओमेश भारती के इंट्रा डर्मल इंजेक्शन (Intra dermal injection procedure)प्रोसेस के कारण इसकी लागत घटकर सिर्फ 100 रुपए से भी कम रह गई है. हिमाचल में तो यह निशुल्क (rabies vaccine free in himachal) है. अब रेबीज को अधिसूचित रोगों की श्रेणी में डालने से इस क्षेत्र में शोध के लिए मदद मिलेगी. क्योंकि अब तक कई स्वास्थ्य संस्थान रेबीज के शिकार लोगों की जानकारी लापरवाही के कारण दर्ज नहीं करते थे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन को प्रोटोकॉल मंजूर करना पड़ा:डॉ. ओमेश भारती ने शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल (Shimla Indira Gandhi Medical College) कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद डीएचएम व आईसीएमआर से एमएई की डिग्री हासिल की है. वे 27 साल से हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य विभाग में विभिन्न पदों पर सेवाएं दे रहे हैं. रेबीज की रोकथाम के लिए खोजे गए सबसे सस्ते उपाय के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) को उनका प्रोटोकॉल मंजूर करना पड़ा. उनके नाम देश और विदेश में कई प्रतिष्ठित सम्मान दर्ज हैं.
शोध पत्र साउथ एशिया में बेस्ट:ब्रिटिश मेडिकल (british medical journal) जर्नल में उनका शोध पत्र साउथ एशिया में बेस्ट पाया गया. लो कोस्ट इंट्रा डर्मल एंटी रेबीज वैक्सीनेशन पर इंटरनेशन सेमीनार में उनकी प्रेजेंटेशन को वर्ष 2011 में 83 देशों के प्रतिभागियों ने सुना था. विश्व के कई देशों में उन्हें आमंत्रित किया गया. डॉ. भारती के कम कीमत वाले रेबीज प्रोटोकॉल से 35000 रुपए से 50 हजार रुपए का इलाज घटकर 100 रुपए से भी कम रह गया. यही नहीं रे बीज से होने वाली मौतें भी लगभग थम सी गई हैं. इस तकनीक का सबसे अधिक लाभ गरीबों को हुआ है. पहले गरीब लोग महंगा इंजेक्शन नहीं लगवा पाते थे और रेबीज से मौत का शिकार हो जाते थे.
सीधे घाव पर लगाने से असर:डॉ. ओमेश भारती ने अपने शोध से साबित किया था कि अगर रेबीज हीमोग्लोबिन नाम के (Rabies hemoglobin serum) सीरम को सीधे घाव या जख्म पर लगाया जाता है तो ये जल्द असर भी करता और दवाई की मात्रा भी कम प्रयोग होती है. हिमाचल में 2017 से इसी तकनीक से इलाज किया जा रहा है. डॉ. भारती ने 17 सालों के अपने शोध के दौरान कई मरीजों पर इस तकनीक का प्रयोग किया, लेकिन वर्ष 2013 के बाद डॉ .भारती ने 269 मरीजों पर इस सीरम का उपयोग किया जिसके बेहतर परिणाम सामने आए. इंट्राडर्मल तकनीक से इस इलाज के बाद हिमाचल में एक भी मामला रेबीज का नहीं आया और ना ही इस बीमारी से किसी की मौत हुई.