शिमला: देवभूमि हिमाचल प्रदेश के कई स्थानों में साक्षात देवलोक का नजारा दिखता है. शिमला जिला के सराहन में मां भीमाकाली मंदिर परिसर में पहुंचकर ऐसा प्रतीत होता है, मानों किसी देवलोक में आ गए हों. हिमाचल के पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की कुलदेवी मां भीमाकाली मंदिर परिसर अपनी अद्भुत शैली और काष्ठकला के साथ-साथ दिव्य शांति के लिए विख्यात हैं.
मंदिर को लेकर बेशक कई दंतकथाएं प्रचलित हैं, लेकिन ये स्थान आस्थावान लोगों के लिए तीर्थ की तरह है. यहां साल भर सैलानियों का तांता तो लगा ही रहता है, नवरात्रि व अन्य धार्मिक अवसरों पर श्रद्धालुओं की भीड़ भी रहती है. ये मंदिर हिमाचल का सबसे विशाल मंदिर भी माना जाता है. काष्ठकला की अद्भुत कृतियां यहां मौजूद हैं. हिमाचल के वास्तुकला मर्मज्ञों द्वारा अपनी मेधा का इस्तेमाल कर यहां दर्शनीय मूर्तियां बनाई हैं. इस मंदिर के स्तंभ, द्वार, झरोखों पर की गई चित्रकारी विस्मित कर देती है. भीमाकाली मंदिर की सबसे ऊपरी मंजिल पर मां का श्रीविग्रह है.
मां भीमाकाली मंदिर में लगी दर्शनीय मुर्तियां. दंतकथाओं के अनुसार भीमा नामक महात्मा ने इस मंदिर की स्थापना की थी. खैर, मान्यताएं बेशक अलग-अलग हों, लेकिन लोगों की मां में आस्था एक सी है और अटूट है. ये बुशहर राजवंश की कुलदेवी के मंदिर के तौर पर भी विख्यात है. सराहन का भीमाकाली मंदिर समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर है. मंदिर के आसपास प्रकृति ने अपनी अद्भुत छटा बिखेरी है. सराहन को किन्नौर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. सतलुज नदी भी यहां बहती है. साथ ही दाहिनी तरफ श्रीखंड पर्वत शृंखला है.
बुशहर राजवंश के राजाओं ने यह निजी मंदिर महल में बनवाया और अब ये सार्वजनिक है. भीमाकाली मंदिर परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह और पाताल भैरव (लांकड़ा वीर) के अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं. लांकड़ा वीर को मां भगवती का गण माना जाता है.
मां भीमाकाली मंदिर परिसर में लगी मुर्तियां. बुशहर रियासत से जुड़ता है संबंध
मौजूदा समय में सराहन का विस्तार हो गया है. सराहन अब भीमाकाली मंदिर परिसर के लिए अधिक पहचान रखता है. देश-विदेश से सैलानी और आस्थावान लोग मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं. पहले सराहन गांव बुशहर रियासत की राजधानी था. इस रियासत की सीमाओं में प्राचीन किन्नर देश भी था. मान्यता है कि किन्नर देश ही वास्तव में कैलाश है. बुशहर राजवंश पहले कामरू से राज्य का संचालन करता था. राजधानी को स्थानांतरित करते हुए राजाओं ने शोणितपुर को नई राजधानी के रूप में चुना. प्राचीन समय का शोणितपुर ही मौजूदा समय में सराहन के नाम से विख्यात है. कहा जाता है कि बुशहर राजवंश के राजा राम सिंह ने रामपुर को राज्य की राजधानी बनाया.
ये कहती है पौराणिक कथा
पौराणिक गाथा के अनुसार शोणितपुर का सम्राट बाणासुर शिवभक्त था. ये राजा बलि के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था. बाणासुर की बेटी उषा को पार्वती से वरदान मिला था कि उसकी शादी भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से होगी. परंतु इससे पहले अचानक विवाह के प्रसंग को लेकर बाणासुर और श्रीकृष्ण में घमासान युद्ध हुआ. युद्ध में बाणासुर को कठिन समय का सामना करना पड़ा. बाद में मां पार्वती के वरदान की महिमा को ध्यान में रखते हुए असुर राज परिवार और श्रीकृष्ण में सहमति हुई. फिर पिता प्रद्युम्न और पुत्र अनिरुद्ध के वंशजों की राज परंपरा चली. महल में स्थापित भीमाकाली मंदिर के साथ अन्य पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हैं.
आदिकाल में इस मंदिर के स्वरूप का वर्णन करना कठिन है परंतु पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि वर्तमान भीमाकाली मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी के बीच बना है. मत्स्य पुराण में भीमा नाम की एक मूर्ति का जिक्र आता है. एक अन्य प्रसंग के मुताबिक मां पार्वती जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ में सती हो गई थीं तो भगवान शिव ने मां की पार्थिव देह कंधे पर उठा ली और भटकने लगे. विष्णु भगवान ने चक्र से मां के शरीर के टुकड़े-टुकड़े किए. विभिन्न स्थानों पर देवी के अलग-अलग अंग गिरे. देवी का कान शोणितपुर में गिरा और वहां भीमाकाली प्रकट हुई. कहा जाता है कि पुराणों में वर्णन है कि कालांतर में देवी ने भीम रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और भीमाकाली कहलाईं.
टेढ़ा हो गया था पुराना मंदिर
सराहन में एक ही स्थान पर भीमाकाली के दो मंदिर हैं. प्राचीन मंदिर किसी कारणवश टेढ़ा हो गया. फिर साथ ही एक नया मंदिर पुराने मंदिर की शैली पर बनाया गया. यहां 1962 में देवी मूर्ति की स्थापना हुई. इस मंदिर परिसर में तीन प्रांगण आरोही क्रम में बने हैं जहां शक्ति के अलग-अलग रूपों को मूर्ति के रूप में स्थापित किया गया है. देवी भीमा की अष्टधातु से बनी अष्टभुजा मूर्ति सबसे ऊपर के प्रांगण में है. लकड़ी व पत्थर की सहायता से बना भीमाकाली मंदिर हिंदू और बौद्ध शैली का मिश्रण है. पैगोडा आकार की छत वाले इस मंदिर में पहाड़ी शिल्पकारों की कारीगरी चमत्कृत करती है. द्वारों पर लकड़ी से देवी-देवताओं के कलात्मक चित्र बनाए गए हैं. मंदिर की ओर जाते हुए जिन बड़े-बड़े दरवाजों से गुजरना पड़ता है, उन पर चांदी के बने उभरे रूप में कला के सुंदर नमूने देखे जा सकते हैं. भारत के अन्य भागों की तरह सराहन में भी देवी पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है, विशेषकर चैत्र और आश्विन नवरात्रों में. यहां मकर संक्रांति, रामनवमी, जन्माष्टमी, दशहरा और शिवरात्रि आदि त्योहार भी मनाए जाते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि भीमाकाली की प्राचीन मूर्ति पुराने मंदिर में ही है. उस मूर्ति के दर्शन आम तौर पर नहीं हो सकते. राज्य सरकार के भाषा व संस्कृति विभाग के एक प्रकाशन के अनुसार बुशहर रियासत तो बहुत पुरानी है ही, यहां का शैल (स्लेट वाला पत्थर) भी अत्यंत पुराना है. भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार यह शैल एक अरब 80 करोड़ वर्ष का है और पृथ्वी के गर्भ में 20 किलोमीटर नीचे तक था.
ऐसे पहुंचे मां के मंदिर तक
शिमला से किन्नौर की ओर जाने वाले इंडो-तिब्बत राजमार्ग नंबर 22 पर रामपुर बुशहर एक विख्यात स्थल है. यहां से सराहन चालीस किलोमीटर से कुछ अधिक है. इसके अलावा ज्यूरी नामक स्थान से सराहन के लिए एक अलग रास्ता जाता है. ज्यूरी से भीमाकाली मंदिर की दूरी 17 किलोमीटर है. सड़क मार्ग बेहतर स्थिति में है. टैक्सियां भी उपलब्ध हैं. ठहरने के लिए यहां कई विकल्प हैं.