शिमला: हिमाचल की राजनीति के शिखर पुरुष वीरभद्र सिंह छह बार इस पहाड़ी प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वीरभद्र सिंह जब सक्रिय राजनीति में आए थे, तो हिमाचल ने विकास के पथ पर धीरे-धीरे कदम बढ़ाना शुरू किया था. वीरभद्र सिंह ने हिमाचल को अपनी आंखों के सामने बनते और बढ़ते देखा है.
ऐसे में जाहिर है, वे असंख्य घटनाओं के सूत्रधार भी हैं. यहां हम वीरभद्र सिंह की स्मृति में उनसे जुड़ी कुछ ऐसी कहानियां सांझा कर रहे हैं, जो लगभग अनसुनी सी हैं. प्रदेश के अधिसंख्य लोगों ने ऐसी कहानियां नहीं सुनी हैं. इसी कड़ी में ईटीवी भारत एक और कहानी यहां दर्ज कर रहा है. ये कहानी हमें प्रदेश के वरिष्ठ मीडिया कर्मी संजीव शर्मा से साभार मिली है.
संजीव शर्मा ने एक ऐसा किस्सा सांझा किया है, जिससे पता चलता है कि वीरभद्र सिंह को मानवीय स्वभाव की कितनी समझ थी. वीरभद्र सिंह मौके के अनुसार प्रतिक्रिया देते थे. कोई भी फैसला लेने से पहले वे उस निर्णय का भविष्य में होने वाला इंपैक्ट को भी ध्यान में रखते थे. यही कारण है कि वो दूरदर्शी नेता कहलाते थे.
तो किस्सा कुछ यूं है. वर्ष 2003 में जब वीरभद्र सिंह सत्ता में आए तो वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री तब सीपीएस यानी मुख्य संसदीय सचिव थे. राजनीति में आने से पहले मुकेश अग्निहोत्री भी पत्रकारिता में सक्रिय थे. संजीव शर्मा बताते हैं कि 2003 में सत्ता में आने के बाद वीरभद्र सिंह जब पहली बार हरोली पहुंचे तो इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधि के तौर पर संजीव शर्मा भी वहां मौजूद थे. बल्कि संजीव शर्मा शिमला से ही वीरभद्र सिंह के काफिले के साथ थे.
हरोली विधानसभा क्षेत्र के कांगड़ में हैलीकॉप्टर लैंड किया. परंपरा के अनुसार पुलिस गार्द की सलामी होनी थी. सलामी में बिगुल फूंका जाता है. बिगुल बजाने वाले कर्मी ने जैसे ही फूंक मारी तो बिगुल से कोई स्वर नहीं आया. घबराए बिगुल वाले ने फिर जोर से फूंका तो भी धुन नहीं निकली. अब सभी की नजरें बिचारे उस बिगुल वाले पर टिक गईं. मौके पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी मौजूद थे. ऐसे में बिगुल वाला और भी घबरा गया. बुरी तरह से हड़बड़ाए बिगुल वाले ने आखिरी कोशिश में पूरा जोर लगाया.
संजीव शर्मा याद करते हैं-तब बिगुल से भांअआं की आवाज आई और बीड़ी का बंडल बिगुल से लहराता हुआ बाहर जमीन पर गिर गया. ये देख कर मौके पर मौजूद सभी लोगों की हंसी निकल गई. हैरत की बात यह रही कि खुद सीएम वीरभद्र सिंह ने भी ये देखकर जोर से ठहाका लगाया. खैर, थोड़ी देर में ही बाकायदा बिगुल के साथ सलामी हुई.
सलामी के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह चौकी से उतरकर सीधे बिगुल वाले के पास गए. वहां पड़ा बीड़ी का बंडल उठाया और उसकी जेब में ठूंस दिया. बहुत स्नेह भरे लहजे में वीरभद्र सिंह ने बिगुल वाले से कहा-बीड़ी पीना अच्छी बात नहीं है. सर्दी का मौसम था, लेकिन मुख्यमंत्री के सामने कांप रहे बिगुल वाले के माथे पर पसीना निकल रहा था. उधर, महकमे की किरकिरी पर एसपी ऊना बिगुल वाले को खा जाने वाली नजरों से देख रहे थे.
एसपी साहिब का गुस्सा सातवें आसमान पर था, परंतु सीएम के सामने वे चुपचाप खड़े थे. खैर, मुख्यमंत्री का काफिला वहां से आगे बढ़ा. अभी गाड़ियां कुछ ही दूर गई थीं कि वीरभद्र सिंह ने काफिले को रुकवा दिया. वीरभद्र सिंह गाड़ी से उतरे और एसपी ऊना को बुलाया. साथ ही बिगुल वाले पुलिस बैंड के कर्मचारी को भी. फिर सभी ने वीरभद्र सिंह का वो चेहरा देखा, जिसने उन्हें प्रदेश की जनता के दिलों का राजा बनाया है. वीरभद्र सिंह ने कड़क आवाज में एसपी को निर्देश दिया-खबरदार, इस बिगुल वाले पर कोई एक्शन लिया तो. यह कहने के बाद वीरभद्र सिंह के चेहरे के भाव फिर बदल गए.
अब वहां एसपी ऊना के लिए कडक़ आवाज की जगह नरम स्वर था. नरम स्वर में मुस्कुराते हुए वीरभद्र सिंह ने कहा.... अरे भई, बाजे वालों को आदत होती है बीड़ियों को बाजे में छिपाने की, ताकि कोई और मांग न ले या चुपके से पी न ले. अगर वीरभद्र सिंह के पास मानवीय संवेदनाओं वाला चेहरा न होता तो एसपी ऊना के साथ बिगुल वाले का क्या हाल होता, ये समझा जा सकता है.
अब कहानी का क्लाइमैक्स...कुछ साल बाद वीरभद्र सिंह फिर से ऊना दौरे पर थे. बिगुल वाला फिर मिला. पता चला कि उसने उसी दिन से बीड़ी पीना छोड़ दी थी. संजीव शर्मा उस समय को याद करते हुए बताते हैं कि जब वीरभद्र सिंह को सारी बात पता चली तो उन्होंने कहा, अगर उस समय सजा दी होती तो ऐसा सुधार शायद ही होता. वीरभद्र सिंह को मानवीय स्वभाव की गहरी समझ थी और ये उनके लंबे राजनीतिक व सार्वजनिक जीवन में लक्षित भी होती रही.
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