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APPLE IN HP: मौसम की मार और ऑफ ईयर का दौर, हिमाचल में इस बार औंधे मुंह गिरेगा सेब उत्पादन - Summer season affect on apple production

देश की एप्पल स्टेट हिमाचल प्रदेश में इस सीजन में उत्पादन के गिरने की आशंका (Summer season affect on apple production) है. मार्च महीने में पौधों पर फूल निकलने के बाद फ्रूट सेटिंग के लिए उपयुक्त वातावरण नहीं बन पा रहा है. इस कारण सेब उत्पादन के औंधे मुंह गिरने की संभावना है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, आइए विस्तारपूर्वक जानते हैं...

APPLE IN HP
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Published : Mar 23, 2022, 10:16 PM IST

शिमला: फाइव स्टार होटलों में फ्रूट बास्केट की शान हिमाचल के लाल-लाल रसीले सेबों पर इस बार मौसम के कारण संकट के बादल छाने लगे हैं. देश की एप्पल स्टेट हिमाचल प्रदेश में इस सीजन में उत्पादन के गिरने की आशंका है. जिस तरह से मौसम का रुख है, उससे सेब बगीचों में फ्लॉवरिंग (apple flowering in Himachal) पर विपरीत असर पड़ रहा है.

मार्च महीने में पौधों पर फूल निकलने के बाद फ्रूट सेटिंग के लिए उपयुक्त वातावरण नहीं बन पा रहा है. इस कारण सेब उत्पादन के औंधे मुंह गिरने की आशंका है. इसके अलावा एक अन्य कारण भी बागवानों के लिए चिंता का विषय है. ये कारण एप्पल सीजन का ऑफ ईयर है.

सेब उत्पादन से जुड़े लोग और बागवान ऑफ ईयर व ऑन ईयर के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं. जिस साल सेब की बंपर क्रॉप होती है, उसे ऑन ईयर कहा जाता है. अकसर बंपर क्रॉप के बाद सेब उत्पादन का अगला सीजन (effect of weather on apple) ऑफ ईयर होता है. उसमें उत्पादन ऑन ईयर के मुकाबले कम होता है. यहां हम हिमाचल के वर्तमान सेब सीजन में बागवानों के लिए चिंता की बातों का जिक्र करेंगे.

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हिमाचल प्रदेश में सालाना ढाई से चार करोड़ पेटी सेब (APPLE IN HP) उत्पादन होता है. सिंचाई सुविधाओं की कमी और ओलावृष्टि की मार से सेब उत्पादन प्रभावित होता है. विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हिमाचल के बागवान बागीचों में जी-तोड़ मेहनत कर हर साल सेब उत्पादन का आंकड़ा शानदार करने का प्रयास करते हैं.

मौसम की मार का बागवानों के पास कोई तोड़ नहीं है. इस बार मौसम ने अचानक करवट बदली है. मार्च महीने में जहां तापमान 12 से 16 डिग्री सेल्सियस रहता था, अब दिन के समय 24 डिग्री को छू रहा है. इसका नुकसान ये हो रहा है कि सेब बागीचों में फ्रूट सेटिंग प्रभावित होने लगी है. फूल निकलने के बाद अच्छी फ्रूट सेटिंग के लिए मार्च महीने में तापमान इतना अधिक नहीं होना चाहिए.

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शिमला जिले की कोटखाई तहसील के बखोल गांव निवासी प्रगतिशील बागवान संजीव चौहान के अनुसार पिछले सीजन में सेब का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था. पिछला सीजन ऑन ईयर था. ऐसे में इस बार सेब उत्पादन ऑफ ईयर होने के कारण कम होना पहले से ही तय था, लेकिन मौसम की मार ने स्थितियों को और खराब कर दिया है. मार्च महीने में तापमान अधिक है.

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इस बार बागीचों में फ्लावरिंग कम: मौसम की मार की वजह से निचले व मध्यम ऊंचाई वाले बागीचों में फ्लावरिंग काफी कम है. सेब के पौधों में पत्तियां अधिक दिखाई दे रही हैं और फूल कम हैं. फूल कम होने से फल भी कम होंगे. फिर फ्रूट सेटिंग के लिए जिस तरह का तापमान मार्च महीने में होना चाहिए, वो नहीं मिल रहा है.

हिमाचल प्रदेश में सालाना 3000 करोड़ से 4500 करोड़ रुपये का सेब कारोबार (apple business in himachal) होता है. प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. सेब सीजन के दौरान ट्रांसपोर्ट सेक्टर और श्रमिक वर्ग को काम मिलता है. सेब सीजन हिमाचल की आर्थिकी की महत्वपूर्ण कड़ी है. क्वांटिटी एंड क्वालिटी प्रोडक्शन इस इकोनॉमी के लिए जरूरी है. और उसके लिए जरूरी है सेब सीजन के लिए चिलिंग आवर्स, गुड फ्लावरिंग और बेटर फ्रूट सेटिंग. ये सभी मौसम पर निर्भर करता है.

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बागवानों के लिए मौसम ही भगवान: सेब उत्पादन के कारण देश भर में चर्चित शिमला जिले के नवीन सोच वाले बागवान पीयूष दीवान का कहना है कि बागवानों के लिए मौसम ही ईश्वर है. दिसंबर व जनवरी में अच्छी बर्फबारी के कारण चिलिंग आवर्स समय पर पूरे हो जाएं तो अच्छे सेब सीजन की नींव पड़ती है. फिर उसके बाद फ्लावरिंग व फ्रूट सेटिंग के दौरान भी मौसम की मेहरबानी चाहिए. बाद में पौधों में फल लगने पर ओलावृष्टि से बचाव अंतिम पड़ाव है.

यदि ये सारे पड़ाव मौसम की कृपा से सफलता से पार हो जाते हैं तो सेब सीजन आराम से पांच हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर सकता है. हिमाचल प्रदेश में बागवानी के क्षेत्र में सक्रिय लोगों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उनमें से एक बड़ी परेशानी मौसम के रूप में है. मौसम कई बार खतरनाक खलनायक का काम करता है.

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हिमाचल की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण बागवानों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. पहाड़ का इलाका होने के कारण सिंचाई सुविधाएं पहुंचाने में बड़ी परेशानी आती है. बागवान सिंचाई के लिए आसमान पर निर्भर हैं. फिर ऐन सेब सीजन के पीक पर ओलावृष्टि बड़ी समस्या है. हालांकि बागवान एंटीहेल नेट का प्रयोग करते हैं, लेकिन भारी ओलावृष्टि में ये एंटीहेल नेट भी काम नहीं आते.

हिमाचल में सरकारी हेल गन एक भी नहीं:विदेश में एंटी हेल गन का प्रयोग कर ओलावृष्टि का खतरा कम किया जाता है. हिमाचल में सरकारी स्तर पर एक भी एंटीहेल गन स्थापित नहीं की गई है. हिमाचल में पांच स्थानों पर ये गन लगाई गई है और उन्हें बागवानों ने निजी स्तर पर या फिर सोसायटी बनाकर लगाया है. एक गन डेढ़ करोड़ रुपये कीमत तक की होती है. हिमाचल में कुल सेब उत्पादन का अस्सी फीसदी अकेले शिमला जिले में होता है. शिमला के अलावा कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर, लाहौल स्पीति व सिरमौर में सेब बागीचे हैं.

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बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसपी भारद्वाज का कहना है कि पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश (Apple production in Himachal Pradesh) ने सेब उत्पादन में काफी नाम कमाया है, लेकिन बागवान अभी भी मौसम की मार झेलने को मजबूर हैं. हिमाचल में बागवानी सेक्टर (Horticulture Sector in Himachal) के लिए सिंचाई सुविधाएं बढ़ाए जाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि इस बार मार्च महीने में मौसम अप्रत्याशित रूप से बदला है. तापमान बढ़ने से फ्रूट सेटिंग प्रभावित होगी. अच्छी सेटिंग न हो तो सेब उत्पादन अपने आप गिर जाता है. बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर, जो खुद भी एक बागवान के तौर पर पहचान रखते हैं, का कहना है कि राज्य सरकार इस सेक्टर की दिक्कतों को हल करने की दिशा में काम कर रही है.

उन्होंने कहा कि एचपी शिवा प्रोजेक्ट (HP Shiva Project) से बागवानों की दशा व दिशा बदलेगी. महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि उत्पादन कम होने अथवा मौसम की मार के कारण बागवानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए राज्य सरकार हरसंभव मदद करती है.

पिछले सीजन में साढ़े तीन करोड़ पेटी सेब उत्पादन:पिछले सीजन में सरकारी आंकड़ों के अनुसार साढ़े तीन करोड़ पेटी के करीब सेब उत्पादन हुआ था. वहीं, बागवानों के अनुसार ये उत्पादन चार करोड़ पेटी से अधिक रहा था. कई बार सरकारी सेक्टर में छोटे बागवानों का उत्पादन रिकार्ड करने से छूट जाता है. ऐसे में उत्पादन के तौर पर पचास लाख पेटी प्लस-माइनस मानकर चलते हैं.

किस साल में कितना उत्पादन:हिमाचल का रिकॉर्ड देखें तो वर्ष 2010 में अब तक का सबसे अधिक उत्पादन हुआ था. तब राज्य में सवा पांच करोड़ पेटी सेब पैदा हुआ था, लेकिन अगले ही साल ये उत्पादन सत्तर फीसदी के करीब गिर कर महज 1.38 करोड़ पेटी रह गया था. जाहिर है, तब ऑफ ईयर का कॉन्सेप्ट पूरी तरह से देखने को मिला था. उसके बाद भी मौसम की मार के कारण 2012 में सेब उत्पादन दो करोड़ पेटी तक भी नहीं पहुंच पाया था.

वर्ष 2018 में भी ओलावृष्टि के कारण सेब उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ था और सीजन महज 1.65 करोड़ पेटी तक सिमट गया था. इस बार भी ऑफ ईयर और मार्च में मौसम की टेढ़ी नजर के कारण सेब उत्पादन दो करोड़ पेटी या इससे कुछ ही अधिक तक रहने की आशंका बनी है.

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