शिमला: सियासी गलियारों के किस्से पुराने भले हो जाएं, लेकिन ये किस्से जब भी सुनाए जाते हैं, तो किसी के चेहरे पर हैरत तो किसी के चेहरे पर मुस्कान छोड़ जाते हैं. हिमाचल की सियासत का एक किस्सा ज्यादा पुराना नहीं है, जिसमें कुछ-कुछ अंधविश्वास भी जुड़ा है. बात पिछले विधानसभा चुनाव की है, जब साल 2017 में बीजेपी ने हिमाचल में जीत का कमल तो खिला दिया लेकिन मुख्यमंत्री पद का चेहरा रहे प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. जिसके बाद दिल्ली से शिमला तक बैठकों का दौर चला.
जयराम ठाकुर और उनकी मूंछ-2017 में जयराम ठाकुर मंडी जिले की सिराज विधानसभा सीट से 5वीं बार विधानसभा पहुंचे थे. मुख्यमंत्री के दावेदारों में उनका नाम भी शामिल था. लेकिन कई बैठकों के बाद भी नाम फाइनल नहीं हुआ. इस पूरे प्रकरण में टोटके और अंधविश्वास की एंट्री हुई और बात जयराम ठाकुर की मूंछों पर आ गई. दरअसल टोटकों पर भरोसा करने वाले कुछ समर्थकों ने जयराम ठाकुर को सलाह दी कि वे अपनी मूंछें सफाचट कर लें, तो काम बन जाएगा. यानी ऐसा करने से वो मुख्यमंत्री बन जाएंगे, इसके पीछे हिमाचल का सियासी इतिहास था.
हिमाचल के बिना मूंछ वाले मुख्यमंत्री-दरअसल जयराम ठाकुर से पहले जो भी हिमाचल का मुख्यमंत्री बना वो मूंछ नहीं रखते थे. फिर चाहे हिमाचल निर्माता और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री यशवंत परमार हों या रामलाल ठाकुर, पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री शांता कुमार हों या फिर प्रेम कुमार धूमल, इसके अलावा 6 बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह भी मूंछ नहीं रखते थे. यही वजह थी कि टोटकों और अंधविश्वास पर विश्वास रखने वाले समर्थकों ने जयराम ठाकुर को मूंछ साफ करने की सलाह दे दी.