World Suicide Prevention Day: आत्महत्या के पीछे छुपे होते हैं कई कारण, व्यक्ति पहले दे देता है महत्वपूर्ण संकेत
आत्महत्या को रोकने के लिए हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (world suicide prevention day) के रूप में मनाया जाता है. यह क्षति परिवारों, दोस्तों और समुदायों को बहुत प्रभावित करती है. हमारे देश में हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं. आत्महत्याओं को रोकना पूरे विश्व के लिए चुनौती बनी हुई है. यही खतरा इन दिनों हिमाचल प्रदेश पर भी मंडरा रहा है. ऐसे में आइये जानते हैं इस बारे में मनोचिकित्सक/विशेषज्ञ की क्या राय है....
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस.
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Published : Sep 10, 2021, 6:01 AM IST
शिमला:दुनियाभर में आत्महत्या के खिलाफ प्रतिबद्धता और कार्रवाई के लिए 2003 से हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (world suicide prevention day ) मनाया जा रहा है. हमारे देश में हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं. हिमाचल प्रदेश में भी आत्महत्या के मामले थम नहीं रहे हैं. आये दिन कहीं न कहीं से आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं. कहते हैं खोया हुआ हर जीवन किसी न किसी का साथी, संतान, माता-पिता, दोस्त या सहकर्मी होता है. लगभग आत्महत्या के अधिकतर मामलों में लोग गहरे अवसाद में होते हैं. आखिर आत्महत्या की पीछे क्या कारण है, इसे जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने आईजीएमसी में मनोचिकित्सक डॉ. देवेश शर्मा (Psychiatrist at IGMC Dr Devesh Sharma) से विशेष बात की.
हिमाचल में आत्महत्या के काफी मामले सामने आए हैं. प्राय: इसे नौकरी का खोना या परिवारिक कलह माना जा रहा है, लेकिन आत्महत्या को लेकर आईजीएमसी में मनोचिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. देवेश शर्मा ने खुलासा किया है कि आत्महत्या के पीछे कई कारण छुपे होते हैं. देवेश शर्मा कहते हैं कि एक ही कारण से व्यक्ति आत्महत्या करे ऐसा कहना सही नहीं है. आत्महत्या करने वालों में 80 से 90 फीसदी मानसिक रोग से पीड़ित होते हैं. जैसे- डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, मूड डिसऑर्डर, नशे का दुरुपयोग इत्यादि शामिल है.
मनोचिकित्सक डॉ. देवेश शर्मा का कहना है कि आत्महत्या करने वाला पहले से ही महत्वपूर्ण संकेत दे देता है. जैसे- जिंदगी भारी लगना, जीने की इच्छा न रहना, अपने आप को नुकसान पहुंचाना, भूख न लगना, नींद न आना इत्यादि. उन्होंने कहा कि कई बार व्यक्ति गलती से भी आत्महत्या कर लेता है. ऐसा जो बच गए हैं वो अनुभव साझा करते हैं. उन्होंने कहा कि समय पर संकेतों को समझ कर किसी को आत्महत्या करने से बचाया जा सकता है.
25 अप्रैल 2021 को कोरोना महामारी के बीच हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में एक आत्महत्या का मामला सामने आया था. ओल्ड बस स्टैंड क्षेत्र (old bus stand area) में गेस्ट हाउस में बिलासपुर जिले के घुमारवीं के कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति ने फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी. पुलिस को कमरे से सुसाइड नोट भी मिला था. वहीं, 19 अगस्त को ऊना जिले के एक विवाहित प्रेमी जोड़े ने होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी. कमरे से पुलिस को सल्फास का पैकेट और शराब की खाली बोतल मिली थी. साथ ही दो सुसाइड नोट भी मिले थे. मृतक पेशे से अध्यापक था जबकि महिला गृहिणी थी.
अध्यापक ने अपने सुसाइड नोट में मौत का जिम्मेदार खुद को ठहराया था, जबकि महिला ने कई लोगों को जिम्मेदार ठहराया था. वहीं, छोटा शिमला के स्ट्रॉबरी हिल में एक युवक ने फंदा लगाकर जान दे दी थी. युवक घर में फंदे पर लटका हुआ मिला था. मृतक युवक की पहचान नरेंद्र कुमार के रूप में हुई थी. बताया जा रहा था कि युवक स्ट्रॉबरी हिल में किराए के कमरे में रह रहा था और काफी समय से बेरोजगार था. ऐसा माना जा रहा था कि मानसिक तनाव के चलते युवक ने यह कदम उठाया होगा. पुलिस को घटनास्थल से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था.
सीबीआई के पूर्व निदेशक अश्वनी कुमार (Former CBI Director Ashwani Kumar) की मौत के बाद से हिमाचल प्रदेश में आत्महत्या के मामले चर्चाओं में आ गए हैं. यहां साधनहीन ही नहीं बल्कि संपन्न व्यक्ति भी आत्महत्या कर रहे हैं. राज्य पुलिस ने इस ओर राज्य सरकार और संबंधित विभागों का ध्यान आकर्षित किया भी था, लेकिन न तो कोई विशेष हेल्पलाइन स्थापित की गई और न ही इसकी रोकथाम की दिशा में ठोस कदम उठाए गए. बहरहाल पुलिस अपने स्तर पर ऐसे मामलों की रोजाना निगरानी कर रही है.
कोरोनाकाल में यूं ही अधिकांश व्यक्ति अवसाद के शिकार हो रहे हैं. किसी का रोजगार छिन गया तो किसी कारोबार बंद हो गया. हालांकि अब हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं, लेकिन आत्महत्या के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. अश्विनी कुमार जैसी शख्सियत ने जिस तरीके से जीवन को गले लगा लिया, उससे सरकारी तंत्र की भी चिंताएं बढ़ गई हैं. हैरानी की बात ये है कि प्रदेश में आत्महत्या करने वालों में हर आयु वर्ग के लोग शामिल हैं. अभी तक 18 ये 55 साल के व्यक्ति जीवन समाप्त करने जैसा कठोर कदम उठा रहे थे. अब 70 वर्षीय पूर्व आईपीएस अधिकारी ने भी ऐसा ही कठोर कदम उठाकर हर वर्ग को स्तब्ध कर दिया है.
आत्हत्या के मामलों में सीआरपीसी की धारा 174 के तहत की गई पुलिस कारवाई से पता चला कि साढ़े छह साल में अलग-अलग आयु वर्ग के 2203 पुरुषों ने और 1057 महिलाओं ने आत्महत्याएं की हैं. फिलाहल 2021 में पुलिस आत्महत्या के मामले जारी नहीं किए हैं, लेकिन आत्महत्या के मामले आए दिन दर्ज हो रहे हैं. आइए एक नजर आंकड़ों पर डालते हैं.
2015 से 2020 तक खुदकुशी के आंकड़े
किसान
145
मजदूर
815
छात्र
365
हाउस वाइफ
720
सरकारी कर्मचारी
92
निजी कर्मचारी
313
बिजनेसमैन
140
अन्य
670
कुल
3260
आत्महत्या से जुड़ी भावनाएं
आत्महत्या से मरने वाले लोगों के रिश्तेदार और करीबी अधिक खतरे वाले समूह में आते हैं. इसके मुख्य कारण हैं किसी की आत्महत्या से पैदा हुआ मनोवैज्ञानिक आघात, किसी की आत्महत्या से प्रभावित होकर उसका अनुसरण करना, किसी करीबी की आत्महत्या का बोझ झेलना आदि.
आत्महत्या करने की कई सारी वजहें हो सकती हैं जिनमें आनुवंशिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारण हो सकते हैं.
इनके अलावा और भी कारण हो सकते हैं जैसे कि गहरा सदमा, तनाव, दुख, निराशा, आदि.
आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण तनाव रहा है. आत्महत्या से मरने वाले लोगों में अवसाद सबसे आम मनोरोग है.
प्रत्येक आत्महत्या के मामले में देखा गया है कि 25 लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं, 135 लोग आत्महत्या की वजह से प्रभावित होते हैं.
व्यक्ति में आत्महत्या के लक्षणों की पहचान कैसे करें?
अत्यधिक उदासी या लगातार मिजाज बदलना.
भविष्य के प्रति निराशाजनक विचार रखना.
नींद न आना, अचानक शांत हो जाना जैसे कि व्यक्ति ने हार मान ली है और अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय ले रहा है.
समाज से कटाव - अकेलापन, परिवार, दोस्तों आदि से दूरी बनाए रखना.
खतरनाक या स्वयं को नुकसान पहुंचाने वाला व्यवहार जैसे कि लापरवाह ड्राइविंग, ड्रग्स या शराब का सेवन करना.