शिमला: समूचा भारत देश ओलंपिक खत्म होने के बाद अभी तक भी नीरज चोपड़ा, मीरा बाई चानू, रवि दहिया, पीवी सिंधू, लोवलीना, बजरंग पूनिया सहित हॉकी टीम की सफलताओं के जश्न में डूबा है. हिमाचल को भी हॉकी खिलाड़ी वरुण कुमार और पैरालंपिक में रजत पदक विजेता निषाद कुमार ने गौरव के पल दिए हैं. इस समय देश के युवा सेवाएं एवं खेल मंत्री का पद भी हिमाचल के नेता अनुराग ठाकुर संभाल रहे हैं, लेकिन उन्हीं के गृह राज्य हिमाचल प्रदेश तीन साल से खेल नीति पर केवल बातें ही हो रही हैं.
तीन साल पहले यानी 20 जून 2018 को जयराम सरकार के तत्कालीन युवा सेवाएं एवं खेल मंत्री गोविंद ठाकुर ने एक आयोजन में कहा था कि राज्य सरकार नई खेल नीति तैयार करेगी. उस समय मंत्री ने कहा था कि हिमाचल की खेल नीति तैयार करने से पहले अन्य राज्यों की नीति का अध्ययन किया जाएगा. हिमाचल में मुख्यमंत्री खेल विकास योजना के लिए 6.80 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान है और हर विधानसभा क्षेत्र में 10 लाख रुपए की लागत से खेल मैदान तैयार करने की भी बात हुई है. अब तीन साल से भी अधिक समय के बाद राज्य सरकार के नए युवा सेवाएं एवं खेल मंत्री राकेश पठानिया ने कहा कि हिमाचल प्रदेश जल्द ही अपनी खेल नीति बनाएगा.
हिमाचल प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार करने के लिए कभी गंभीरता से प्रयास नहीं हुए. हिमाचल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिने-चुने खिलाड़ी ही याद आते हैं. हॉकी में चरणजीत सिंह, दीपक ठाकुर और अब वरुण कुमार के अलावा गोसाईं सिस्टर्स, ट्रैक एंड फील्ड में सुमन रावत और शूटिंग में विजय कुमार के नाम उल्लेखनीय हैं. हिमाचल में बेशक खेल को बढ़ावा देने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और उपयुक्त खेल नीति की तरफ बेशक किसी ने ध्यान ना दिया हो, लेकिन खेल पर राजनीतिक खेल जरूर हुए हैं. हिमाचल में अनुराग ठाकुर ने अपने निजी प्रयासों से क्रिकेट को जरूर बढ़ावा दिया है. यहां तक कि धर्मशाला में शानदार क्रिकेट मैदान और स्टेडियम के निर्माण के अलावा यहां अंतरराष्ट्रीय मैच भी करवाए गए.
अनुराग ठाकुर की अगुवाई वाली हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन यानी एचपीसीए विवादों का अखाड़ा बनकर रह गई. प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के समय खेल विधेयक लाया गया. भाजपा का आरोप था कि यह खेल विधेयक एचपीसीए और हिमाचल में क्रिकेट को घेरने के लिए लाया गया. इस खेल विधेयक को विधानसभा से तो आसानी से पास करवा लिया गया, लेकिन राजभवन ने इसे मंजूरी नहीं दी थी. विवाद इस कदर बढ़ा था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने तो एक बार तल्ख लहजे में कहा था कि यदि राजभवन ने खेल विधेयक को मंजूरी नहीं दी तो नए सिरे से विधेयक लाया जाएगा. हालांकि, खेल विधेयक और खेल नीति दोनों अलग-अलग विषय हैं, लेकिन खेलों को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर पर प्रयास करने के बजाय हिमाचल में इसपर राजनीति ही होती रही है.
मौजूदा सरकार भी तीन साल से खेल नीति पर काम ही कर रही है. अनुराग ठाकुर के केंद्र में प्रभावशाली पद संभालने और खेल के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गंभीरता से उम्मीद बंधी है कि हिमाचल में भी खेल ढांचा बढ़ेगा और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी तैयार होंगे. यदि हिमाचल में खेल विधेयक और खेल नीति के पूर्व में हो चुके खेल पर नजर डालें तो पूर्व कांग्रेस सरकार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 7 अप्रैल 2015 को खेल विधेयक पेश किया था. तब सरकार ने विधेयक पेश करने के अगले ही दिन इसे सदन में पारित करने के लिए लगा दिया. विपक्षी दल भाजपा ने तब आरोप लगाया था कि जब बिल की कॉपी ही उन्हें नहीं मिली है तो इस पर चर्चा कैसे हो सकती है. उस वक्त मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बिल को चर्चा के लिए पेश किया तो सदन में भाजपा के मुख्य सचेतक सुरेश भारद्वाज ने आपत्ति जताते हुए कहा कि विधेयक पहले भी सप्लीमेंट्री लिस्ट में था. कार्य सलाहकार समिति की बैठक में भी इस पर न तो चर्चा हुई, न ही चर्चा के लिए समय तय किया गया.
उल्लेखनीय है कि हिमाचल में खेल विधेयक पर राजनीति काफी लंबे समय से हो रही है. इससे पहले 2007 में वीरभद्र सिंह सरकार खेल विधेयक लाई थी. बाद में धूमल सरकार ने उसे टर्न डाउन कर दिया था. नए कार्यकाल में 2012 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार 2015 में फिर से बिल लाई थी. बाद में यह बिल एक साल तक राजभवन में मंजूरी के लिए लंबित पड़ा रहा था. वीरभद्र सरकार ने एक साल तक भी बिल मंजूर ना होने पर मॉनसून सेशन में नया बिल लाने की बात भी कही थी. उस समय भाजपा का विरोध था कि इस खेल विधेयक के जरिए कांग्रेस सरकार क्रिकेट को विधेयक की परिधि में लाकर एचपीसीए और क्रिकेट पर अंकुश लगाना चाहती है.