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लोकसभा चुनाव 2019: कहां चूक रही है कांग्रेस, हिमाचल में क्यों 'मुट्ठी' नहीं बन पाया 'हाथ' - कांग्रेस

बीजेपी चार उम्मीदवारों के नाम फाइनल कर चुनावी मैदान में कूद गई है, लेकिन कांग्रेस अभी तक अपने चार प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई. सबकी नजरें इसी बात पर टिक्की हैं कि कांग्रेस के वो कौन चार प्रत्याशी होंगे जो बीजेपी को टक्कर देंगे.

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Published : Mar 28, 2019, 8:29 PM IST

Updated : Mar 28, 2019, 11:55 PM IST

शिमला: चार लोकसभा सीटों के साथ हिमाचल एक छोटा सा पहाड़ी राज्य है. चार लोकसभा सीटों पर ही कांग्रेस को उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं. कांग्रेस अभी तक कहीं भी पिक्चर में ही नजर नहीं आ रही है. कांग्रेस के सामने ये विकट परिस्थिति किस वजह से पैदा हुई है. आखिर में कांग्रेस से कहां चूक हुई है.

कप्तान का बदलना
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से पहले ही अपना अध्यक्ष बदल कर सबको हैरान कर दिया. नए अध्यक्ष कुलदीप राठौर को लोकसभा चुनाव की तैयारी का बहुत कम समय मिला. कुलदीप राठौर ने नई टीम बनाने की कोशिश की, लेकिन इतने कम समय में वह अपनी नई टीम नहीं बना पाए और ना ही संगठन में अपनी पकड़ बना पाए. राठौर के सामने बिखरी हुई कांग्रेस को एक साथ लाने की चुनौती थी, लेकिन राठौर दिल्ली और शिमला के बीच ही चक्कर काटते रहे.

रजनी पाटिल भी नहीं ढूंढ पाई तुरूप का इक्का
रजनी पाटिल कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी हैं. पार्टी की सारी गतिविधियों पर रजनी पाटिल नजर रख रहीं थी. रजनी पाटिल ने हर लोकसभा सीट और जिलों का दौरा किया, लेकिन इतने दौरे करने के बाद भी रजनी पाटिल किसी कार्यकर्ता में पोटेंशियल नहीं ढूंढ पाई जो चुनाव लड़ सके. रजनी पाटिल के सामने ही कई बार कांग्रेस खेमे आपस में भिड़ गए. वीरभद्र सिंह कई बार उनकी बैठकों में ही शामिल नहीं हुए. समर्थक बैठकों में अपने-अपने नेताओं के समर्थन में नारे लगाते रहे. संगठन की चिंता न होकर इन्हे अपने नेताओं की चिंता थी.

आपसी मनमुटाव
कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी आपसी कलह है. कुलदीप राठौर के अध्यक्ष पद ग्रहण करने के दौरान भी प्रदेश कार्यालय में कांग्रेस कार्यकर्ता आपस में लहुलूहान हो गए. सुक्खू वीरभद्र की तनातनी सबको मालूम है. कांगड़ा में जीएस बाली और सुधीर शर्मा की गांठे अब तक नहीं खुली है.

नई लीडरशिप न होना
कांग्रेस में अब तक बुजुर्ग नेता ही पार्टी की कमान संभाले हुए हैं. वीरभद्र सिंह, कौल सिंह, जीएस बाली सब एक ही पंक्ति के नेता हैं, लेकिन कांग्रेस ने इन सब नेताओं के पीछे अपनी जूनियर टीम तैयार ही नहीं की, ताकि इनकी रिटायरमेंट के बाद जूनियर लीडरशिप सीनियर लीडरशीप को टेकओवर कर सके. हिमाचल में कांग्रेस वीरभद्र इफेक्ट से ही बाहर नहीं निकल पाई. हालांकि सुक्खू ने कुछ कोशिश जरूर की थी. इसके बाद सुक्खू का हाल सबको मालूम है.

वरिष्ठ नेताओं की चुपी
2102 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बैकफुट पर थी. वीरभद्र सिंह ने केंद्र से वापसी करते हुए प्रदेश में डेरा डाला और पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली. बैकफुट में चल रही कांग्रेस में नई जान फूंक दी. परिणाम ये निकाला कि कांग्रेस ने प्रदेश में सरकार बना ली, लेकिन इस बार वीरभद्र मौन धारण किए हैं. अग्निहोत्री, जीएस बाली, सुधीर शर्मा सब खामोश हैं. हलांकिकौल सिंह मंडी में लंबे समय से मोर्चा खोले हुए हैं. वीरभद्र सिंह ने हमीरपुर से अभिषेक राणा और सुधीर शर्मा के नाम की पैरवी भी की थी, राजेंद्र राणा के बेटे अभिषेक राणा मैदान में कूदने के लिए भी तैयार थे, लेकिन अंत समय में कांग्रेस ने इनकार कर दिया वीरभद्र सिंह ने अपने पंसदीदा उम्मीदवार के लिए आवाज नहीं उठाई.

पैराशूट नेताओं को टिकट
कांग्रेस पार्टी के अंदर ही कैंडिडेट नहीं ढूंढ पा रही है. चुनाव के मौसम में पार्टी में शामिल हुए नेताओं को टिकट देने के बारे में सोच रही है जिन्हे बीजेपी ने टिकट देना सही नहीं समझा, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ये कह कर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी कि बाहर से आयत किए नेताओं को टिकट दिया तो वह उनके लिए काम नहीं करेंगे.

तैयारियों में कमी
चुनाव की घोषणा होते ही कांग्रेस टिकट फाइनल करने में ही उलझ गई है. किसी भी बड़े नेता ने बीजेपी पर जुबानी हमले नहीं किए. जबकि बीजेपी सत्ता में रहते ही राहुल गांधी समेत प्रदेश के कई नेताओं पर हमले बोल रही है.

Last Updated : Mar 28, 2019, 11:55 PM IST

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