शिमला: बर्फ हिमाचल के लिए आफत ही नहीं सौगात भी है. खेती-बागवानी का सेक्टर अच्छी बर्फबारी पर टिका है. बर्फबारी टूरिज्म सेक्टर के लिए (Snowfall in Himachal Pradesh) भी वरदान है. हिमाचल में कुल जीडीपी का 13. 62 फीसदी कृषि सेक्टर का है. इसके अलावा पांच हजार करोड़ रुपये सालाना का कारोबार सेब व स्टोन फ्रूट का है. इन सबको बर्फबारी का इंतजार रहता है. इस बार जनवरी के महीने में अच्छी बर्फबारी हो रही है. हिमाचल की नब्बे फीसदी आबादी खेती और बागवानी पर निर्भर है.
नौणी यूनिवर्सिटी (Nauni University Solan) में स्टोन फ्रूट डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर धर्मपाल शर्मा ने कहा कि साल की शुरुआत में हो रही बर्फबारी किसानों और बागवानों के लिए बहुत लाभदायक है. उनका कहना है कि इस बार ड्राई स्पेल कुछ लंबा हो गया था. जिससे कि पौधों को भविष्य में नुकसान हो सकता था, लेकिन बर्फबारी होने के कारण अब ड्राई स्पेल खत्म हो गया है और चिलिंग आवर्स की जो जरूरत पौधों को रहती है वह भी पूरी होने में सहायता मिलेगी.
हालांकि अभी भविष्य में और बर्फबारी की उम्मीद है, ताकि पौधों (Snowfall benefits apple crop) के चिलिंग आवर्स (chilling hours) पूरे हो सकें. प्रोफेसर धर्मपाल शर्मा ने बागवानों को प्रूनिंग और कटिंग के कार्य जल्द पूरा करने को कहा है उनका कहना है कि बर्फबारी होने के बाद अब बागवानों को पौधों की काट छांट (Apple pruning work in Himachal) का कार्य पूरा कर लेना चाहिए. वैसे धर्मपाल शर्मा ने बोडो मिक्चर कॉपी करने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि बागवान टीएसओ की स्प्रे भी कर सकते हैं.
उन्होंने उम्मीद जताई कि इस बार समय से बर्फबरी होने से पौधों में अच्छी फ्लावरिंग होगी. जहां तक चिलिंग आवर की बात है. इसकी आवश्यकता सभी पौधों में अलग-अलग होती है, लेकिन ऐसे सभी पौधे जिनके पत्ते झड़ते हैं उन्हें चिलिंग आवर्स की आवश्यकता रहती है. सेब (Apple crop in Himachal Pradesh) से शुरुआत करें तो प्रदेश में सालाना औसतन चार हजार करोड़ से अधिक सेब उत्पादन होता है.
सेब के पौधे में अच्छे फूल लगने के लिए 1200 से 1600 चिलिंग आवर्स जरूरी है. जनवरी में अच्छी बर्फबारी हो जाए तो यह चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं. दिसंबर से लेकर मार्च तक के चार महीनों में 1200 से 1600 चिलिंग आवर्स यानी इतने सर्द घंटे पूरे हों तो सेब के पौधों में नए प्राण आ जाते हैं. इन आवर्स पर ही हिमाचल के चार लाख बागवानों की उम्मीदें और चार हजार करोड़ का सेब कारोबार टिका है. इसके लिए दिसंबर और जनवरी में बारिश व बर्फबारी शुरू हो जाए तो आगामी समय में भी बर्फबारी के आसार के कारण चिलिंग आवर्स तय समय में पूरे हो जाते हैं. जिस तरह शरीर के लिए प्राण जरूरी है, वैसे ही सेब की सेहत के लिए चिलिंग आवर्स जरूरी है. सेब के पौधे में फल लगने के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान बेहद जरूरी है.
सेब के पौधे दिसंबर माह में सुप्त अवस्था में होते हैं. उन्हें इस अवस्था से बाहर आने के लिए सात डिग्री सेल्सियस का तापमान औसतन 1200 से 1600 घंटे तक चाहिए. ये सर्द घंटे चार माह में पूरे हो जाने चाहिए. यदि चार माह में जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब के पौधों में फल की सेटिंग बहुत अच्छी होती है और उत्पादन बंपर होता है. जब चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब की फ्लावरिंग (Apple Flowering In Himachal) बेहतर होगी और फल की क्वालिटी भी अच्छी होती है.
यदि मौसम दगा दे जाए और चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधों में कहीं फूल अधिक आ जाते हैं और कहीं कम. इससे फलों की सेटिंग प्रभावित हो जाती है. डालियों में फल भी नहीं लगता. हिमाचल प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. सबसे अधिक सेब (apple business in himachal) शिमला जिले में होता है. इसके अलावा कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर में भी सेब का उत्पादन होता है.
हिमाचल में सालाना चार से पांच करोड़ पेटी सेब होता है. एक सेब सीजन में चार हजार करोड़ से अधिक का कारोबार होता है. युवा बागवान मनोज चौहान के अनुसार जनवरी में इस बार मौसम के आसार अच्छे हैं. चिलिंग आवर्स पूरा होने से किसानों बागवानों को लाभ होगा. उनका कहना है कि जिस समय चिलिंग आवर्स पूरे हो जाते हैं, पौधों की सुप्त अवस्था पूरी हो जाती है. जिस समय पौधे सुप्त अवस्था यानी डोरमेंसी में होते हैं, पौधों में मौजूद पोषक तत्व जड़ों की तरफ चले जाते हैं. जब चिलिंग आवर्स पूरे होने पर पौधे की सुप्त अवस्था टूटती है और पोषक तत्व फिर से सारे पौधे में एक समान होकर फैल जाते हैं. यदि चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधे के पोषक तत्व एक समान नहीं फैलते. इससे पौधों में फूल अच्छे से नहीं आते और फल की सेटिंग भी ठीक नहीं होती.