शिमला: विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई ने पीएचडी में बिना प्रवेश परीक्षा के हुए दाखिलों को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उन दाखिलों को निरस्त करने की मांग उठाई. प्रेस वार्ता में कैंपस सचिव रॉकी ने विश्वविद्यालय में हुई हाल ही में पीएचडी में हुए दाखिलों पर आपत्ति जताते हुए इसे अध्यादेश और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अवहेलना बताया.
परिसर सचिव रॉकी का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन मात्र अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए इस तरह की धांधलियां पीएचडी के अंदर कर रहा है. विश्वविद्यालय में जो भी एडमिशन पीएचडी में हुई है, यूजीसी और विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस के नियमों को दरकिनार करते हुए कुलपति द्वारा अपने फायदे के लिए की गई है.
एसएफआई का कहना है यदि इस तरह की सुपरन्यूमैरेरी सीट आप रख रहे हैं तो, इसमें जितने भी प्राध्यापक कॉलेजों और विश्वविद्यालय के अंदर पढ़ाते हैं उन्हें समान अवसर का मौका मिलना चाहिए. जो कि प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही दिया जाना था. जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नहीं दिया गया, क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश की सरकार अपने चहेतों का दाखिला पीएचडी के अंदर करवाना चाहती हैं. इस विश्वविद्यालय को एक विशेष विचारधारा का अड्डा बनाना चाहती है.
एसएफआई ने सवाल उठाया की अगर एक छात्र पीएचडी में प्रवेश के लिए परीक्षा पास कर सकता है तो एक अध्यापक क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी भगवाकरण की इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए 21 अगस्त 2021 को एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में यह पारित किया की विश्वविद्यालय का प्राध्यापक व कर्मचारी वर्ग अपने बच्चों की एडमिशन पीएचडी के अंदर बिना किसी प्रवेश परीक्षा के करवा सकता है. सबसे पहले जिनके बच्चे इसके माध्यम से पीएचडी में दाखिला लेते हैं, वह विश्वविद्यालय का कुलपति, डीन ऑफ सोशल साइंसेज, डायरेक्टर हैं.