शिमला:देश के पूर्व संचार मंत्री पंडित सुखराम (pandit sukh ram passes away ) अब देह में नहीं हैं. हिमाचल में छोटी सी राजनीतिक शुरुआत (political journey of pandit sukh ram) के बाद उनका सियासी सफर आकाश की ऊंचाइयों तक पहुंचा. वे बेशक हिमाचल के सीएम नहीं बन सके, लेकिन देश की राजनीति में खास मुकाम बनाया. सुखराम को तुंगल का शेर भी कहा जाता था. उनका जन्म मंडी जिला की तुंगल घाटी के कोटली गांव में हुआ था और इसी कारण उन्हें तुंगल का शेर कहा जाता था. पंडित सुखराम का जन्म 27 जुलाई 1927 को हुआ था. राजनीति में आने से पहले वे नौकरी करते थे.
निर्दलीय लड़ा था चुनाव:वर्ष 1962 में नगर परिषद मंडी के सचिव पद की नौकरी त्यागकर वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और कांग्रेसी दिग्गज एवं स्वतंत्रता सेनानी कृष्णानंद को हराकर राजनीति की धमाकेदार शुरुआत की. पंडित सुखराम साल 1983 तक हिमाचल में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे. राजनीति में किस्मत के सहारे वे वर्ष 1977 की जनता पार्टी लहर के बीच भी अपना किला बचाने में सफल रहे.
विवादों से जुड़ा नाता: सुखराम ने केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार में रक्षा राज्य मंत्री व स्वतंत्र प्रभार के साथ खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री रहे. बाद में वे नरसिम्हा राव की सरकार में स्वतंत्र प्रभार के साथ संचार मंत्री रहे और अपने काम से खूब नाम कमाया. हालांकि बाद में विवादों के साथ उनका नाता जुड़ा और वे भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे. सीबीआई ने उनके दिल्ली व मंडी स्थित ठिकानों पर छापामारी भी की और भारी कैश बरामद किया था.
पूर्व पीएम पी. वी. नरसिम्हा राव के साथ पंडित सुखराम(फाइल फोटो) ये भी पढ़ें: पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम का निधन, प्रदेश में शोक की लहर
रिकॉर्ड वोट से दर्ज की जीत:दूरसंचार घोटाले में विवादों में घिरने के बाद 1996 में उन्हें कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया. सुखराम ने साल 1997 में हिमाचल विकास कांग्रेस का गठन किया और 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचे. हिविकां को पांच सीटें मिली, जिनमें से चार मंडी जिला से थी. उन्होंने भाजपा से गठबंधन कर प्रेम कुमार धूमल की सरकार को अस्तित्व में लाया. पंडित सुखराम ने सरकार में अपने चार विधायकों को मंत्री बनवाया और खुद रोजागार सृजन समिति के अध्यक्ष बने. ये कैबिनेट रैंक वाली पोस्ट थी.
खुद की पार्टी का कांग्रेस में विलय: इतना ही नहीं, वह अपने बेटे अनिल को भी राज्यसभा भेजने में कामयाब रहे. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में सुखराम फिर से हिविंका के बैनर तले मंडी सदर सीट बचाने में कामयाब हुए. बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का साल 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में विलय कर दिया. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में सुखराम ने सक्रिय राजनीति से खुद को किनारे करते हुए अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी.
पंडित सुखराम के पुत्र अनिल शर्मा ने बीजेपी से जीता चुनाव :कांग्रेस विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहने वाले अनिल शर्मा ने पिछला चुनाव (2017) भाजपा से जीता और सरकार में मंत्री बने, लेकिन बेटे आश्रय के कांग्रेस टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद भाजपा में उनके रिश्ते बिगड़ गए और उन्हें मंत्री पद गंवाना पड़ा. वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव उनके पोते आश्रय ने कांग्रेस से लड़ा. यहां सुखराम के विवाद का जिक्र करना भी जरूरी है.
भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत तीन साल की सजा:दिल्ली में स्थानीय अदालत ने वर्ष 2002 में सुखराम को उपकरण सप्लाई में हैदराबाद स्थित एडवांस रेडियो कंपनी के प्रबंध निदेशक रामा राव को अपने पद का गल प्रयोग कर लाभ पहुंचाने और सरकार को हुए 1.66 करोड़ रुपए के नुकसान पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत तीन साल की सजा सुनाई थी. 19 दिसबर 2010 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा था. बाद में 5 जनवरी 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी थी.
आय से अधिक संपत्ति मामले में सुनवाई:सुखराम को आय से अधिक संपत्ति के मामले में सजा हो चुकी है. आय से अधिक संपत्ति के मामले में अदालत ने 20 फरवरी 2009 को सुखराम को दोषी करार दिया था. उन्हें तीन वर्ष की कैद के अलावा दो लाख रुपए जुर्माना भी लगाया गया था. सीबीआई की विशेष अदालत से उन्हें जमानत मिली थी और उन्होंने फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दी थी. भ्रष्टाचार के आरोप में केंद्रीय एजेंसी सीबीआई ने अगस्त 1996 में उनके ठिकानों पर छापेमारी की थी. सीबीआई ने तब उनकी संपत्ति का करोड़ों रुपए में आकलन कर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था. वर्ष 1997 में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत उनके खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर की गई थी.
जनसभा को संबोधित करते हुए पंडित सुखराम(फाइल फोटो) सुखराम का दीर्घकालीन राजनीतिक सफर कई पड़ावों से गुजरा. उनके मन में हिमाचल के सीएम बनने की इच्छा थी, लेकिन वीरभद्र सिंह के रहते हुए ये पूरी नहीं हुई. उनके और वीरभद्र सिंह के बीच रिश्ते खट्टे-मीठे रहे. अब देखना है कि सुखराम की राजनीतिक विरासत कौन संभालता और उसे कैसे आगे ले जाता है. उनके बेटे अनिल शर्मा अभी भाजपा के विधायक हैं और पोते आश्रय शर्मा कांग्रेस में हैं. हिमाचल में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं और ऐसे में सुखराम परिवार की आगामी रणनीति पर सबकी नजर रहेगी.
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