शिमला: प्रवासी हिमाचली लोगों के खेत खलियान व जन्मभूमि हिमाचल की है. रोजगार के चलते लोग मजबूरी से हिमाचल से बाहरी राज्य में गए हैं, लेकिन प्रदेश सरकार प्रवासियों को हिमाचली मानने को तैयार नहीं है. अगर हिमाचल सरकार इन लोगों को हिमाचली मानने को तैयार होती तो बच्चों के लिए मेडिकल शिक्षा में 85 प्रतिशत कोटा को बहाल करती. यह बात शिमला में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान अखिल भारतीय प्रवासी हिमाचली (Pravasi Himachali United Front) संयुक्त मोर्चा के कोर प्रतिनिधि राजेंद्र ठाकुर ने कही.
उन्होंने कहा कि बाहरी राज्य में रह रहे हिमाचल के प्रवासी छात्र (Medical education to migrant Himachalis) मेडिकल शिक्षा में रोजगार पाने के लिए तरस रहे हैं. बच्चों ने 12वीं तक की पढ़ाई तो बाहरी राज्य से कर ली है, लेकिन हिमाचल में प्रवासी छात्र मेडिकल शिक्षा क्षेत्र एमबीबीएस, बीडीएस व आयुर्वेद में नीट की परीक्षा नहीं दे सकते.
सवाल यह है कि 2018 में भाजपा सरकार के आने पर प्रवासियों के लिए मेडिकल शिक्षा में 85 प्रतिशत कोटे पर प्रतिबंध (Restriction on quota in medical education) लगा दिया था, लेकिन अब इस कोटे को बहाल नहीं किया जा रहा है. ऐसे में अब प्रवासियों में सरकार के खिलाफ रोष पनप गया है. बाहरी राज्य में 14 लाख के करीब प्रवासी रोजगार कर रहे हैं. यहां तक मत का प्रयोग भी प्रवासी हिमाचल में करते हैं. ऐसे में उनके बच्चे अगर हिमाचल में नीट का एगजाम (Neet exam in himachal) देना चाहते है तो प्रवेश ही नहीं दिया जाता है.