शिमला: मॉलरोड के नजदीक स्थित बैंटनी कैसल में अब एक टच से ही हिमाचल की पारंपरिक धरोहरों की जानकारी का खजाना उभरकर आंखों के सामने आ जाएगा. राजधानी शिमला में स्थित ऐतिहासिक बैंटनी कैसल (Historic Bantony Castle ) जहां वर्ष 1871 से पहले मेजर गोर्डन का कॉटेज था, फिर से प्रदेश वासियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनने वाला है. बैंटनी कैसल के एक हिस्से में डिजिटल म्यूजियम खोलने को लेकर रूपरेखा तैयार हो चुकी है. डिजिटल म्यूजियम बनने के बाद पर्यटक हिमाचली धरोहरों की इमेज (फोटो) को टच करके ही उसके इतिहास और खासियत जान सकेंगे.
सरकार द्वारा तैयार प्रारूप के अनुसार बैंटनी कैसल में बनने वाले डिजिटल म्यूजियम में हिमाचली कला, हैंडीक्राफ्ट, हैंडलूम सहित प्रदेश की संस्कृति से जुड़ी धरोहर को डिजिटल रूप से पेश किया जाएगा. इसके अलावा एक हिस्से में मल्टी पर्पज हॉल बनाया जाएगा. इस हॉल में समय-समय पर हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी. ताकि लोग हिमाचली पारंपरिक उत्पादों को देख सकें और खरीद भी सकें. साथ ही कुछ कमरों में हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम कारीगरों को उत्पाद निर्माण के लिए स्थान दिया जाएगा. इससे पर्यटक जान सकेंगे कि हिमाचली शिल्पकार किस प्रकार इन उत्पादों को तैयार करते हैं. इससे शिल्पकारों को भी कुछ आसानी होगी. बैंटनी कैसल में एक रेस्तरां भी बनाया जाएगा. जहां हिमाचली व्यंजन परोसे जाएंगे.
प्रदेश सरकार के भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा बैंटनी कैसल में डिजिटल म्यूजियम (Digital Museum at Bantony Castle) और अन्य चीजों को लेकर एक प्रोजेक्ट केंद्र सरकार को भेजा गया है, लेकिन केंद्रीय भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा कुछ सवाल लगाकर इसे वापस भेजा गया है. अब प्रदेश सरकार जल्द ही फिर से इसे केंद्र सरकार को भेजा जा रहा है. उम्मीद लगाई जा रही है कि केंद्र सरकार द्वारा प्रोजेक्ट को अप्रूवल मिल जाएगी. बैंटनी कैसल में जारी जीर्णोद्धार का कार्य भी आने वाले चार से पांच महीनों में पूरा हो जाएगा. उसके तुरंत बाद यहां डिजिटल म्यूजियम का कार्य शुरू कर दिया जाएगा.
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दरअसल, बैंटनी कैसल की इमारत (Bantony Castle building) और इससे सटी संपूर्ण जमीन को सरकार ने अधिग्रहित करने का निर्णय लिया है. समझौता समिति की सिफारिश पर जमीन के मालिक को 27.84 करोड़ रुपये की अदायगी करने को स्वीकृति दी गई है. तीन साल से भी अधिक समय से बैंटनी कैसल को अधिग्रहित करने की प्रक्रिया चली रही है. इस संपत्ति के हकदार इस बात पर अड़े थे कि इमारत के अतिरिक्त सरकार पूरी जमीन ले ले. जमीन की मार्केट वैल्यू के हिसाब से अदायगी हो. एक के बाद एक हकदार भी सामने आए और बात बनते-बनते सरकार ने संपूर्ण जमीन अधिग्रहित करने का निर्णय लिया है.