शिमला: हिमाचल के किसानों के लिए ड्रिप सिस्टम वरदान साबित हो रहा है. किसानों का (Drip Irrigation System in Himachal) रुझान अब ड्रिप सिस्टम की ओर ज्यादा बढ़ रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि ड्रिप सिस्टम से एक तरफ पानी की बचत होती है, तो दूसरी तरफ किसान की लागत भी कम आती है.
ड्रिप सिंचाई योजना:माइक्रो सिंचाई योजना या ड्रिप सिंचाई योजना (PMKSY per drop more crop) एक विशेष सिंचाई विधि है, जिसके माध्यम से पानी को पौधों की जड़ों तक सीधे पहुंचाया जाता है. इसमें पानी को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कम अंतराल पर नालियों के माध्यम से पौधों की जड़ों तक सीधे पहुंचाया जाता है, जिससे पौधों को लगातार पानी मिलता रहता है और ज्यादा पानी भी खर्च नहीं होता. इस कार्य में पाइप, वाल्व, नालियां और एमीटर का प्रयोग किया जाता है.
साधारण सिंचाई में अधिकतर पानी जो कि पौधों को मिलना चाहिए वो भांप बनकर उड़ जाता है या जल रिसाव के द्वारा जमीन के अंदर चला जाता है, जिससे पानी का अधिक खर्च होता है. इस नई सिंचाई पद्धति से जल की बचत होती है और फसल को उपयुक्त पानी की आपूर्ति भी हो जाती है. इस पद्धति के माध्यम से कम दाब और नियंत्रण से सीधे पौधों के जड़ों तक पानी के साथ साथ उर्वरक की भी आपूर्ति होगी, जिससे पोषक तत्वों की लीचिंग व वाष्पीकरण के नुकसान से भी बचाव होगा.
हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में अधिकांश किसान वर्षा जल पर निर्भर हैं. ऐसे में 'पीएम कृषि सिंचाई योजना-प्रति बूंद अधिक उत्पादन' योजना लाभदायक सिद्ध हो रही है. इस योजना पर सरकार लघु एवं सीमांत किसानों-बागवानों को 80 प्रतिशत अनुदान दे रही है, जबकि बड़े किसानों को 45 प्रतिशत अनुदान भी दे रही है.
भू-जल में निरंतर आ रही कमी के मद्देनजर सरकार (PMKSY per drop more crop) ने किसानों व बागवानों के लिए ये योजना लागू की है. जिससे जल संरक्षण के साथ-साथ गैर सिंचित क्षेत्रों में भी कृषि उत्पादन में वृद्धि कर ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धता लाई जा सकेगी. इसके अलावा कृषि के लिए वर्षा जल पर निर्भरता वाले क्षेत्रों में जल संचय और जल सिंचन के माध्यम से वर्षा जल दोहन से जल संरक्षण और भूमिगत जल स्तर को भी बढ़ाया जा सकेगा.
कृषि मंत्री वीरेंद्र कंवर ने बताया कि प्रदेश सरकार इस योजना के माध्यम से प्रति बूंद अधिक फसल के (PMKSY per drop more crop ) लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर लोकप्रिय बनाने पर बल दे रही है, ताकि प्रदेश की भूगौलिक स्थिति में उबड़-खाबड़ भूमि पर फसलों के लिए उपयुक्त मात्रा में जलापूर्ति संभव बनाई जा सके. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसानों व बागवानों को सूक्ष्म सिंचाई-ड्रिप एवं स्प्रिंकलर प्रणाली स्थापित करने के लिए लघु एवं सीमांत किसानों-बागवानों को 80 प्रतिशत अनुदान सरकार दे रही है. जबकि बड़े किसानों को 45 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान किया गया है.
प्रति हेक्टेयर अधिक दूरी की फसल: 12 वर्गमीटर की दूरी पर ड्रिप सिंचाई स्थापित करने के लिए 27 हजार, 10 वर्गमीटर पर 28 हजार, 9 पर वर्गमीटर तक 30 हजार रुपये तक की लागत आती है. जैसे-जैसे फसल की प्रजाति के अनुसार दूरी कम होती जाएगी, इसकी लागत बढ़ती जाएगी. उन्होंने कहा कि न्यूनतम 1.2 बाई 0.6 वर्गमीटर पर 1.58 लाख रुपये तक लागत आती है, जिस पर सरकार अनुदान दे रही है.
इसके अतिरिक्त एक हेक्टेयर भूमि पर स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली, 5 वर्गमीटर की दूरी पर स्थापित करने पर 73.5 हजार तथा 3 वर्गमीटर पर 84 हजार रुपये की लागत आती है. मिनी स्थानांतरित स्प्रिंकलर प्रणाली की लागत 10 वर्गमीटर पर 1.06 लाख तथा 8 वर्गमीटर पर 1.17 लाख प्रति हेक्टेयर आती है. इस योजना के अन्तर्गत किसानों को प्रशिक्षित करने का भी प्रावधान किया गया है. जिसके लिए किसानों को राज्य के भीतर एक हजार रुपये प्रतिदिन देने का प्रावधान है.
किसानों के लिए वरदान: ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से (Drip Irrigation System in Himachal) पौधों को रोजाना पानी दिया जा सकता है. जिससे पानी जड़ के आस-पास सदैव पर्याप्त मात्रा में बना रहता है. इस विधि से जमीन में जल और वायु उचित मात्रा में बनी रहती है. जिससे पौधों की वृद्धि सही तरीके से और जल्दी होती है. असमतल यानि उबड़ खाबड़ भूमि जहां पानी को आसानी से नहीं पहुंचाया जा सकता ऐसी जगहों पर भी इस विधि से सिंचाई करके गुणवत्तायुक्त अधिक पैदावार करना संभव होगा. फसली बीमारियों व खरपतवार पर नियंत्रण के साथ-साथ 30 प्रतिशत तक खाद की बचत और 10 प्रतिशत तक मजदूरी की लागत में कमी होगी.
किसानों की आय में होगी बढ़ोतरी: कृषि विभाग के निदेशक एनके धीमान ने बताया कि किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार योजनाएं लागू की गई हैं. ड्रिप इरिगेशन के साथ-साथ प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान योजना (पीएम कुसुम) भी शुरू की गई है. ताकि किसानों के खेतों तक सिंचाई के लिए पानी पहुंचाया जा सके और ज्यादा से ज्यादा नकदी फसलों का उत्पादन कर किसान अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकें.
सरकार ने किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से विशेषकर दूर-दराज के ऐसे क्षेत्रों में जहां बिजली की उपलब्धता नहीं है, वहां सिंचाई के लिए 'पीएम कुसुम योजना आरम्भ' की है. इस योजना के अन्तर्गत प्रदेश में सौर पंपों का प्रयोग कर खेतों तक सिंचाई के लिए पानी पहुंचाने के लिए आवश्यक अधोसंरचना विकसित करना प्रस्तावित है. इसके अलावा प्रदेश में केन्द्र व राज्य सरकार ने किसानों की सुविधा के लिए विभिन्न प्रकार की सिंचाई योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रवाह सिंचाई योजना और सूक्ष्म सिंचाई योजना भी शुरू की है.
पीएम कुसुम योजना के तहत (PM Kusum Yojana in HP) सौर पम्पों से सिंचाई के लिए व्यक्तिगत व सामुदायिक स्तर पर सभी वर्गों के किसानों के लिए पपिंग मशीनरी लगाने के लिए 85 प्रतिशत की सहायता का प्रावधान है. योजना के लिए चालू वित्त वर्ष के लिए 12 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. इस वर्ष एक हजार सौर पंप लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसके लिए 50 प्रतिशत व्यय केन्द्र सरकार व 35 प्रतिशत व्यय प्रदेश सरकार द्वारा, जबकि शेष 15 प्रतिशत लाभार्थी द्वारा वहन किया जाना है.
इस योजना के तहत संबंधित क्षेत्रों में (PM Kusum Yojana in HP) किसान विकास संघ, कृषक विकास संघ व किसानों के पंजीकृत समूहों आदि को प्राथमिकता दी जाएगी. जो सोसाइटी अधिनियम-2006 के तहत पंजीकृत हों, छोटे व सीमान्त किसान तथा ऐसे किसान जो फसल उगाने के लिए वर्षा पर निर्भर हैं. उन्हें भी इस योजना में प्राथमिकता दी जाएगी. कृषि विभाग के निदेशक एनके धीमान ने बताया कि जिन किसानों के पास सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, जैसे कि ड्रिप/स्प्रिंकलर लगाने के लिए पानी के स्त्रोत उपलब्ध हैं वे भी सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा पंप लगाने के लिए पात्र होंगे.
ऐसे करें आवादेन:कृषि निदेशक ने बताया कि इस योजना के तहत सहायता प्राप्त करने के लिए किसान उप-मंडल भू-संरक्षण अधिकारी के कार्यालय में निर्धारित प्रपत्र के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं. आवदेन पत्र के साथ उन्हें भूमि संबंधित कागजात जैसे ततीमा व जमाबंदी, स्वयं सत्यापित किया हुआ राशन कार्ड, आधार कार्ड की प्रति, भूमि प्रमाण पत्र संलग्न करने होंगे और स्टांप पेपर पर कृषक शपथ पत्र भी देना होगा.
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