शिमला: सियासत और नारों का साथ उतना ही पुराना है, जितना भारत का लोकतंत्र. आजादी के बाद से ही सियासी नारों (political slogans in himachal Pradesh) की गूंज हर चुनाव में होती रही है. इधर, हिमाचल में एक नारा इन दिनों खूब चर्चा में है. वैसे ये नारा कर्मचारी आंदोलन के दौरान आकाश में गूंजा है, लेकिन चुनावी साल में इसकी सियासी एंट्री पक्की मानी जा रही है.
कारण ये है कि नारे को सीएम जयराम ठाकुर को संबोधित करके लगाया गया है और सदन में इस पर खूब तल्खी भी हुई है. ऐसे में ये जानना रोचक होगा कि सियासत में कब किस नारे ने धूम मचाई और जनता की जुबां पर चढ़ गया. उससे पहले निरंतर चर्चा बटोर रहे ताजातरीन नारे के बारे में जान लेते हैं.
दरअसल, न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ ने हिमाचल सरकार से ओल्ड पेंशन स्कीम (old pension scheme Demand in HP) को बहाल करने की मांग की थी. इसके लिए बाकायदा सीएम के गृह जिले मंडी से शिमला तक पदयात्रा की गई. विधानसभा के बाहर जोरदार प्रदर्शन के दौरान ठेठ सिरमौरी बोली में एक नारा गूंजने लगा. नारा था- जोइया मामा मनदा नईं, कर्मचारी को शुणदा नईं. जोइया मामा मन्नी जा, पुराणी पेंशन पाछू ला. कर्मचारी अब जाग गया, जोइया मामा भाग गया. ये नारे लगे तो सरकार को चुभ गए.
सदन में मुकेश अग्निहोत्री, हर्षवर्धन चौहान और अन्य ने इस नारे को डिफेंड किया और कहा कि ये कोई अपमानजनक नहीं है. वहीं, सरकार व संगठन के स्तर पर भाजपा ने जोरदार विरोध जताया. खुद सीएम जयराम ठाकुर ने सदन में कहा कि ऐसे नारे लगाए गए, जो उचित नहीं कहे जा सकते. सीएम ने तल्ख होकर कहा-व्हॉट इज दिस जोइया मामा?
वहीं, सिरमौर के लोक से संबंध रखने वाले लोगों का कहना है कि वहां प्रेम से जयराम नाम के व्यक्ति को जोइया, सहीराम नाम के व्यक्ति को सोइया कहकर पुकारते हैं. मामा एक आदरसूचक शब्द है, लेकिन सीएम जयराम ठाकुर व सत्ता पक्ष ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई है.
एक दिलचस्प बात ये है कि कर्मचारी आंदोलन का ये नारा ठेठ लोक से उपजा है. इससे पहले सारे नारे हिंदी भाषा में लगते रहे हैं. खैर, हिमाचल में चुनावी साल में ये नारा कांग्रेस भी भुनाएगी और भाजपा इसका प्रतिकार करेगी. ऐसे में कर्मचारी आंदोलन का ये नारा सियासी जरूर बनेगा.
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रोचक नारों को लोकतंत्र में खूब चटखारे लेकर लगाया जाता है. गगनभेदी नारों की बात करें तो पीएम नरेंद्र मोदी की सभाओं में मोदी-मोदी के नारे लगते हैं. यहां कुछ पुराने नारों की बात करते हैं. भारत की राजनीति में इंदिरा गांधी का कार्यकाल बेहद घटनापूर्ण रहा है. उनके सक्रिय होने के दौरान कई नारे खूब चर्चित हुए. शुरुआत में ये नारा बहुत गूंजता था-जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो, बीड़ी में तम्बाकू है, कांग्रेस पार्टी डाकू है.
ये नारा अलग-अलग शब्दों के प्रयोग के साथ लगाया जाता था. इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया नारा भी खूब चला था. एमरजेंसी के काल में कई नारे गूंजे थे. खैर, आजादी के तुरंत बाद एक नारा लगा था. खरा रुपय्या चांदी का, राज महात्मा गांधी का. हालांकि आजादी मिलने के कुछ समय बाद ही बापू की हत्या कर दी गई थी. पहले कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी था. तब तत्कालीन जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक-बाती था.
जनसंघ ने उस दौरान चुनावी नारा दिया-देखो दीपक का खेल, जली झोंपड़ी, भागे बैल. जवाब में कांग्रेस का नारा भी कम दिलचस्प नहीं था. कांग्रेस कार्यकर्ता प्रचार में नारा लगाते थे-इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं.नारों के लिहाज से इंदिरा गांधी का समय बहुत उर्वर था. कांग्रेस का सबसे चर्चित नारा रहा-कांग्रेस लाओ, गरीबी हटाओ. ये नारा हर चुनाव में लगता रहा.
विपक्ष ने इसकी काट में नारा दिया-इंदिरा हटाओ, देश बचाओ. फिर मरजेंसी के दौरान एक बड़ा क्रिएटिव नारा लगा, जो इस तरह था- जमीन गई चकबंदी में, मर्द गए नसबंदी में. एक नारा और था-नसबंदी के तीन दलाल, इंदिरा, संजय और बंसीलाल. बंसीलाल हरियाणा के कद्दावर कांग्रेस नेता थे. ये नारा भी खूब चला था. संजय की मम्मी बड़ी निक्कमी बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है.