शिमला: नीति आयोग के सदस्य और दुनिया भर में विख्यात बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विनोद कुमार पॉल (Pediatrician Dr. Vinod Kumar Paul) ने मातृभूमि के प्रति अपना फर्ज निभाया है. चिकित्सा जगत के बड़े नाम डॉ. बीसी रॉय के नाम पर दिए जाने वाले सम्मान को हासिल कर चुके डॉ. पॉल के एक्शन प्लान से हिमाचल में बाल कुपोषण जड़ से खत्म करने में मदद मिलेगी. वैसे तो हिमाचल प्रदेश की स्थिति इस संदर्भ में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले कहीं बेहतर है, लेकिन कुछ जिलों में जो कुपोषण के मामले हैं, उन्हें भी पूरी तरह से मिटाने में यह एक्शन प्लान कारगर होगा.
राज्य सरकार ने इस बार बजट सत्र में इसी एक्शन प्लान पर आधारित मुख्यमंत्री बाल सुपोषण योजना शुरू की है. इस योजना में सात बिंदुओं पर काम किया जाएगा. चूंकि डॉ. विनोद पॉल जटिल से जटिल पोषण मामलों में काम कर चुके हैं, लिहाजा इस एक्शन प्लान का हिमाचल को भरपूर लाभ होगा. एक्शन प्लान के अनुसार कुपोषण की जड़ पर प्रहार किया जाएगा. पहले चरण में बच्चों की बढ़ोतरी में बाधा बनने वाली दो बीमारियों डायरिया व निमोनिया का बिल्कुल शुरुआती दौर में पता लगाया जाएगा.
दूसरे चरण में कम वजन वाले बच्चों की सेहत की नियमित समीक्षा की जाएगी. तीसरे चरण में बच्चों को पोषण युक्त आहार दिया जाएगा, जिसमें उपयुक्त प्रोटीन की मात्रा रहेगी. गर्भवती महिलाओं एनीमिया प्रबंधन को प्राथमिकता दी जाएगी. हाई ब्लड प्रेशर और एनिमिक महिलाओं को समय पर उपचार दिया जाएगा, साथ ही कुपोषित बच्चों की अलग से मॉनिटरिंग की जाएगी. हर जिले का डाटा तैयार कर इन सात चरणों को आगे बढ़ाया जाएगा. बजट में इसके लिए 65 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.
हिमाचल में कुपोषण पर चर्चा से (malnourished children in Himachal) पहले डॉ. वीके पॉल के बारे में जानना जरूरी है. डॉ. पॉल विश्वविख्यात बाल रोग विशेषज्ञ हैं. बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े कई मामलों में अपने शोध को लेकर पूरी दुनिया में चर्चित व सम्मानित हैं. डॉ. पॉल हिमाचल के कांगड़ा जिले के देहरा के रहने वाले हैं. वे एम्स दिल्ली में पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट के एचओडी रहे हैं. डॉ. पॉल को हेल्थ साइंस रिसर्च में देश के सबसे बड़े सम्मान डॉ. बीआर अंबेडकर सेंटेनरी अवॉर्ड मिल चुका है. उल्लेखनीय है कि इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च की तरफ से दिया जाने वाला ये सम्मान देश का सर्वोच्च रिसर्च सम्मान है. डॉ. पॉल को वर्ष 2009 के लिए ये सम्मान मिला था.
वर्ष 2009 के डॉ. बीआर अंबेडकर सेंटेनरी अवॉर्ड समारोह में बताया गया था कि डॉ. पॉल ने नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य समस्याओं और बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहद सराहनीय शोध कार्य किए हैं. समय से पूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए जीवनरक्षक दवाओं को विकसित करने के साथ-साथ उनके शोध ने बाल स्वास्थ्य में कई आयाम स्थापित किए हैं. डॉ. पॉल की सबसे बड़ी कामयाबी आज से दो दशक पहले बिना किसी बजट के नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों पर शोध के लिए नेशनल न्यूनेटल पेरिनेटल डेटाबेस नेटवर्क तैयार किया था. उन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च को न्यूबोर्न बेबी हेल्थ को लेकर ब्लू प्रिंट तैयार करने में सहयोग दिया है. उनके शोध के कारण ही भारत में न्यू बोर्न बेबी केयर का नया अध्याय शुरू हुआ.
पोषण और शिशु मृत्यु दर थामने में हिमाचल का रिकॉर्ड शानदार-छोटे पहाड़ी राज्य ने पोषण, नवजात शिशु मृत्यु दर को थामने में देश भर में बेहतर काम किया है. पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को कम करने में (Infant Mortality Rate in Himachal) भी हिमाचल ने शानदार काम किया है. राज्य सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. राजीव सैजल का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में पोषण से जुड़े कार्यक्रमों की नियमित अंतराल पर मॉनिटरिंग होती है. आंगनबाड़ी केंद्रों और मिड डे मील के अभियान भी सफलता से चल रहे हैं. इस मामले में बढ़िया कार्य के लिए केंद्र सरकार ने भी हिमाचल की इस उपलब्धि को सम्मान दिया है.
हिमाचल को पोषण अभियान (Himachal Poshan Abhiyaan) के तहत अगस्त 2019 में तीन नेशनल पुरस्कार भी मिले. यही नहीं, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में सफलता के नए मापदंड स्थापित कर हिमाचल देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बना है. इस सफलता के पीछे कई अन्य कारण भी हैं. संपन्न राज्य होने के कारण यहां अभाव अपेक्षाकृत कम हैं. प्रति व्यक्ति आय भी बेहतर है और स्वास्थ्य सुविधाओं का भी व्यापक प्रबंध है. डॉक्टर्स भी प्रति व्यक्ति हिमाचल में देश से सबसे अधिक है. इसका परोक्ष प्रभाव पोषण के मामले में सफलता से जुड़ा है. इस तरह भूख और कुपोषण के खिलाफ जंग में आधी लड़ाई तो इसी से जीत ली जाती है.
नवजात शिशु मृत्युदर को थामने में भी हिमाचल का रिकॉर्ड देश के अन्य राज्यों के मुकाबले अच्छा है. यहां कई योजनाएं धरातल पर कारगर साबित हुई हैं. हिमाचल प्रदेश में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को दूध पिलाने वाली माताओं के लिए प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना संजीवनी साबित हुई है. इस योजना में हिमाचल का प्रदर्शन देश भर में अव्वल रहा है. यहां लाभार्थी महिलाओं के खाते में 45 करोड़ रुपये से अधिक की राशि सीधी ट्रांसफर हुई है.
हिमाचल की एक लाख से अधिक महिलाओं को योजना का लाभ मिला है. हिमाचल में जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रसूता महिलाओं को 1100 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है. हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य के लिहाज से प्रति व्यक्ति 29 हजार रुपये खर्च कर रहा है. ये औसत देश में सर्वाधिक है. यही नहीं, हिमाचल में 2990 लोगों के लिए एक हेल्थ सब-सेंटर है. वहीं, नेशनल एवरेज 34641 लोगों की है. हिमाचल में एक कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर 80 हजार की औसत जनसंख्या को लाभ देता है.
देश में ये औसत 1.76 लाख व्यक्ति है. हिमाचल में बिलासपुर के कोठीपुरा में एम्स आरंभ हो रहा है. यहां ओपीडी शुरू हो गई है. हिमाचल प्रदेश में छह मेडिकल कॉलेज अस्पताल हैं. राज्य सरकार के स्वास्थ्य सचिव अमिताभ अवस्थी का कहना है कि राज्य में आंगनबाड़ी के तहत शिशुओं को पोषण से भरपूर आहार मिलता है. हिमाचल में अब फोर्टिफाइड आटा व दलिया भी दिया जाता है. अगला चरण मिड डे मील योजना का है. इस योजना में हिमाचल के 15 हजार 516 प्राइमरी व मिडल स्कूलों के 4,97,774 छात्र-छात्राओं को फोर्टिफाइड आटा, नमक, एडिबल ऑयल आदि से पोषण मिलता है. फिर स्कूल हेल्थ प्रोग्राम के तहत छात्रों की स्वास्थ्य जांच व इलाज की सुविधा है.
यदि हिमाचल में नवजात शिशु मृत्यु दर व पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर के संदर्भ में बात की जाए तो इस दर में गिरावट लाने वाला ये देश का अव्वल राज्य है. हिमाचल में नवजात शिशु मृत्यु दर में 15.8 फीसदी व पांच साल की आयु के बच्चों की मृत्युदर में 18.2 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है. रिकॉर्ड पर नजर डाली जाए तो हिमाचल प्रदेश में इस समय 18386 आंगनबाड़ी केंद्र व 539 मिनी आंगनबाड़ी केंद्र हैं. यहां चालीस हजार से अधिक आंगनबाड़ीकार्यकर्ता व सहायिकाएं बच्चों के पोषण का ख्याल रखती हैं. जिन जगहों पर समस्या है, वहां राज्य सरकार विशेष अभियान चलाती है.
राज्य के पिछड़े जिले में शुमार चंबा में मात्र तीन हजार बच्चे कुपोषण का शिकार पाए गए. वहां उनको विशेष केयर देकर स्थिति सुधारी जा रही है. हिमाचल से संबंध रखने वाले विश्वविख्यात बाल रोग विशेषज्ञ और नीति आयोग के सदस्य विनोद पॉल के अनुसार हिमाचल की स्थिति कई मामलों में बेहतर है. राज्य सरकार के बढ़िया स्वास्थ्य ढांचे के कारण कुपोषण व नवजात शिशु मृत्यु दर थामने में सहायता मिली है. देश की महिलाओं और बच्चों में कमजोरी की समस्या 20 प्रतिशत है और हिमाचल प्रदेश में यह 14 प्रतिशत है. हिमाचल के पांच जिलों शिमला, सोलन, ऊना, हमीरपुर और चंबा में कुपोषण अधिक है. यहां पर 45 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, लेकिन देश के मुकाबले ये स्थिति बहुत बेहतर है.
स्वास्थ्य मंत्री राजीव सैजल का कहना है कि मुख्यमंत्री बाल सुपोषण योजना (CM Bal Suposhan Yojana In HP) पर काम शुरू हो चुका है. राज्य सरकार इस बारे में तैयार एक्शन प्लान को लागू कर चुकी है. जहां तक पिछड़े जिला चंबा का सवाल है, उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए कार्यक्रम आकांक्षी जिला में जगह मिली है. उसके बाद से चंबा जिला ने स्वास्थ्य और पोषण में देश भर में दूसरा स्थान हासिल किया है. डॉ. वीके पॉल राष्ट्रीय स्तर पर पोषण अभियान से जुड़े हुए हैं. उन्होंने हिमाचल की स्थितियों का गहन अध्ययन करके यहां के लिए अलग से एक्शन प्लान तैयार करने में मदद की है.
हिमाचल प्रदेश में 18925 आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 लाख के करीब लाभार्थियों को पोषण ट्रैकर पर रजिस्टर किया गया है. वहीं, कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में (HEALTH SCHEMES IN HP) महिलाओं का ध्यान रखना पहली सीढ़ी है. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में 2 लाख के करीब लाभार्थियों का पंजीकरण किया गया है. पांच साल में उनपर 100 करोड़ रुपए के करीब खर्च हुआ है. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान करवाने वाली माताओं को पहले बच्चे के जन्म पर तीन किश्तों में पांच हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाती है. इस तरह बाल कुपोषण को थामने के लिए हर स्तर पर काम किया जा रहा है. जिला चंबा के उपायुक्त डीसी राणा का कहना है कि चंबा जिला में अब तीन हजार से भी कम बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. इन बच्चों की भी स्थिति में सुधार हुआ है.
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