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खतरे में वजूद! शिमला में घट रहे पानी के नेचुरल सोर्स, ये है खास वजह

जंगलों की कटाई और बढ़ते निर्माण कार्य की वजह से पानी के प्राकृतिक स्रोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है. एक समय राजधानी शिमला में 200 से ज्यादा बावड़ियां (प्राकृतिक जलस्रोत) हुआ करती थी, लेकिन सही रख-रखाव नहीं होने की वजह से इनकी संख्या घटकर सिर्फ 41 रह गई हैं. इन बावड़ियों के पानी को सिर्फ कपड़े धोने और शौचालयों में इस्तेमाल किया जा रहा है.

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Published : Jul 30, 2021, 6:57 PM IST

शिमला:खूबसूरत वादियों के लिए दुनिया भर में मशहूर पहाड़ों की रानी शिमला कंक्रीट के जंगल में तब्दील होती जा रही है. कभी यहां चारो ओर सिर्फ देवदार के घने जंगल नजर आते थे. लेकिन जंगलों की अंधाधुन कटाई और रिहाइशी इलाकों के विस्तार की वजह से अब शहर में हरियाली सिमटती जा रही है. इसका असर शहर के लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल मुहैया कराने वाले प्राकृतिक स्रोतों पर भी पड़ता नजर आ रहा है.

एक समय में जहां शहर में 200 से ज्यादा प्राकृतिक जलस्रोत थे, जोकि शिमला में परियोजनाओं से पानी ना आने पर लोगों की पानी की जरुरतों को पूरा करते थे. लेकिन अब इन प्राकृतिक स्रोतों की संख्या घट कर महज 41 रह गई और इनका पानी पीने योग्य भी नहीं बचा.

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जल निगम ने प्राकृतिक जलस्रोतों को दूषित करार दिया है और पानी ना पीने की हिदायत दी है. माना जा रहा है कि भवनों के रसोई से निकलने वाले गंदे पानी ने इस बावड़ियों को दूषित कर दिया है. इसके अलावा जंगलों का क्षेत्र कम होने से पानी भी सूख गया है.

शिमला नगर निगम द्वारा 2015 में शहर में इन बावड़ियों के सर्वे करने के साथ ही इनके संरक्षण को लेकर योजना तैयार की गई थी. उस समय बावड़ियां की संख्या 65 के करीब थी. लेकिन सही तरीके से संरक्षण नहीं होने की वजह से इनका अस्तित्व खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है.

खत्म हो रहे बावड़ियों के वजूद को बचाने के लिए जल निगम शिमला ने प्रयास शुरू कर दिया है. शहर में बचीं 41 बावड़ियों का जीर्णोद्धार अमृत योजना के तहत किया जा रहा है. शहर में मौजूदा समय में 7 बावड़ियों के पानी को प्रयोग में लाया जा रहा है. इन बावड़ियों में कार्बन फिल्टर लगाकर शहर के शौचालयों में पानी की सप्लाई की जा रही है.

शिमला जल निगम के एसडीओ मेहबूब शेख बताते हैं कि निगम ने बावड़ियों को लेकर सर्वे किया था. जिसमें 41 बावड़िया शिमला शहर के अंदर मिली हैं, लेकिन इन बावड़ियों का पानी दूषित है. इसका इस्तेमाल सिर्फ शौचालयों और कपड़े धोने के अलावा अन्य कार्यों में किया जा सकता है. पहाड़ों पर हो रहे निर्माण कार्य की वजह से प्राकृतिक स्रोतों का पानी सूखने लगा है. घरों से निकलने वाला गंदा पानी भी इसे दूषित कर रहा है.

2018 में अश्वनी खड्ड का पानी दूषित हो जाने की वजह से राजधानी शिमला में पीलिया फैल गया था. इसकी चपेट में शहर के हजारों लोग आए थे और कई लोगों की मौत भी हो गई थी. बाद में नगर निगम ने सभी परियोजनाओं के पानी के सैंपल लिए थे. साथ ही, शहर के प्राकृतिक स्रोतों के भी सैंपल लिए थे. जिसमें से तकरीबन सभी स्रोंतो के सैंपल फेल पाए गए थे. इन स्रोतों के पानी को ना पीने की चेतावनी भी जल निगम ने जारी की थी.

राजधानी शिमला में हर साल, खासकर गर्मियों में पानी का संकट पैदा हो जाता है. परियोजनाओं में जलस्तर कम होने के चलते शहर में लोगों को पर्याप्त पानी की सप्लाई नहीं मिल पाती है. शिमला शहर की बात करें तो यहां रोज 47 एमएलडी (47 MLD) पानी की जरुरत पड़ती है. वहीं, गर्मियों में 25 से 30 एमएलडी पानी की सप्लाई हो पाती है. ऐसे में लोगों को पानी के लिए प्राकृतिक जल स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है. लोग शौचालय और कपड़े धोने के लिए इन प्राकृतिक स्रोत के पानी प्रयोग करते हैं.

शहर के अधिकतर क्षेत्रो में बावड़ियां थीं. जिसकी वजह से आसपास के लोगों को पानी के लिए तरसना नहीं पड़ता था, लेकिन पेड़ों को अंधाधुन कटाई और निर्माण कार्य की वजह से पानी के प्राकृतिक स्रोत सूखते जा रहे हैं. शहर के विकासनगर, न्यू शिमला रामनगर, टूटीकंडी कृष्णा नगर, मिडिल बाजार, जाखू, संजौली, लक्कड़ बाजार सहित अन्य क्षेत्रों में पानी की बावड़ियां थीं. सही देख रेख नहीं होने के चलती इनका अस्तित्व खतरे में है. इन बावड़ियों का पानी दूषित है और लेवल भी काफी नीचे पहुंच गया है.

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