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हिमालयी क्षेत्रों के लिए खतरे की घंटी बन रही नई कृत्रिम झीलें, ग्लेशियर पिघलने से बढ़ रहा आकार

क्लाइमेट चेंज की अध्यन रिपोर्ट के अनुसार सतलुज, चिनाब, रावी और ब्यास नदी के बेसिन पर 2 साल में 100 से ज्यादा नई झीलें बनी हैं. हर साल ग्लेशियर पिघलने से छोटी-छोटी प्राकृतिक झीलें बनने के साथ-साथ उनका आकार भी बढ़ने लगा है.

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Published : Jun 28, 2020, 7:36 PM IST

शिमला: हिमालयी क्षेत्रों में कृत्रिम झीलें भारी तबाही मचा सकती हैं. क्लाइमेट चेंज की अध्यन रिपोर्ट के मुताबिक दो साल में सतलुज, चिनाब, रावी और ब्यास नदी के बेसिन पर 100 से अधिक नई प्राकृतिक झीलें बनी हैं. हर साल ग्लेशियर पिघलने से छोटी-छोटी प्रकृति झीलें बन रही हैं और झीलों का आकार में भी बढ़ने लगा है.

रिपोर्ट के अनुसार सतलुज नदी के बेसिन पर 500, चिनाव नदी बेसिन पर 120, ब्यास नदी बेसिन पर 100 और रावी नदी बेसिन पर 50 झीलें बनी है. हालांकि 2014 में इन क्षेत्रों में काफी कम झीलें बनी थी, लेकिन पिछले तीन सालों से झील बनने का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है.

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2014 में सतलुज नदी के बेसिन पर 391 झीलें बनी थी, जो अब बढ़कर 500 हो गई. ठीक उसी तरह अन्य नदियों के बेसिन पर झीलों में बढ़ोतरी हुई है. विज्ञान प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के वैज्ञानिक परछु झील पर भी अपनी नजर बनाए हुए हैं. हालांकि 2019 में इस झील में पानी नहीं बड़ा था, लेकिन इस बार ज्यादा बर्फबारी और जलवायु परिवर्तन होने से इन झीलों में पानी की मात्रा बढ़ गई है, जिससे खतरा पैदा हो सकता है.

वैज्ञानिक एसएस रंधावा ने कहा कि सभी झीलों पर सेटेलाइट के जरिए नजर रखी जा रही है, जिससे कई नई झीलें नजर आई हैं. उन्होंने बताया कि बीते कुछ सालों से झीलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इन झीलों से अभी कोई खतरा नहीं है.

एसएस रंधावा ने कहा कि विज्ञान प्रौद्योगिकी और पर्यावरण विभाग 2014 से सतलुज नदी, चिनाव नदी, रावी नदी और पारछु झील के बेसिन पर झीलों की मॉनिटरिंग कर रहा है. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और चीन-तिब्बत के साथ हिमालय क्षेत्रों में झीलों के आकार भी बढ़ने लगे हैं.

वैज्ञानिक एसएस रंधावा ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के तापमान में निरंतर बढ़ोतरी होने से दुनिया भर में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. इनके पिघलने से नदियों के उद्गम स्थल पर पर झीलें बनती जा रही हैं. उन्होंने कहा कि साल 2005 में तिब्बत के साथ बनी पारछू झील ने प्रदेश में भारी तबाही मचाई थी, जिससे जानी नुकसान के अलावा 800 करोड़ से अधिक की क्षति हुई थी. ऐसे में नई बन रही झीलें भविष्य में भारी तबाही मचा सकती हैं.

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