शिमला:अश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को जीवित्पुत्रिका व्रत होता है. प्रदोष काल व्यापिनी अष्टमी को जीमूतवाहन की पूजा होती है. माताएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं. तीन दिनों तक चलने वाले पर्व के दूसरे दिन मां निर्जला उपवास रह कर भगवान लव-कुश की पूजा अर्चना कर मंगल कामना करती हैं.
तीन दिनों तक चलने वाले पर्व के पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन निर्जला व्रत और अंतिम दिन पारण यानी स्वादिष्ट भोजन के साथ इस पर्व का समापन होता है. सभी माताएं अपने पुत्रों की जीवन में सुख-समृद्धि के लिए मंगल कामना करती हैं. इस मौके पर भगवान का मंगल गीत गाकर इस पर्व की सफल कामना की जाती है. पुत्रों की लम्बी आयु, परिवार में सुख-समृद्धि और शांति के लिए देश भर की सभी मां निर्जला व्रत जिउतिया पर्व के रुप में करती हैं.
क्यों पड़ा जीवित्पुत्रिका व्रत...
जिउतिया व्रत के पीछे महाभारत की कहानी है. ऐसा कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो उठा. उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी. इसी के चलते उसने से बदला लेने की ठानी और पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला. वो सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं.
फिर अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली. अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया. ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया. इस तरह गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा. तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जिउतिया का व्रत किया जाने लगा.