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शिमला की वह खास लाइब्रेरी, जहां जूते-चप्पल के साथ नहीं मिलता प्रवेश - शिमला राज्य संग्रहालय

भारत में परंपरा है कि ज्ञान के मंदिर में नंगे पांव प्रवेश करना चाहिए. इस परंपरा का पालन राजधानी शिमला के एक पुस्तकालय में हो रहा है. यहां अध्ययन करने आने वालों को पुस्तकालय के बाहर ही जूते उतारने पड़ते हैं. इस पुस्तकालय में 15 हजार किताबों का संग्रहण किया गया है. खास बात यह है कि यहां बैठने के लिए कुर्सी मेज नहीं मिलेगा बल्कि जमीन पर ही बैठकर आपको अध्ययन करना होगा जो कि प्राचीन परंपरा और शिक्षा पद्धति का ही एक तरीका है.

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पुस्तकालय एवं संगोष्ठी कक्ष.

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Published : Aug 31, 2021, 4:58 PM IST

शिमला:भारतीय दर्शन में विद्यालयों और पुस्तकालयों को मंदिर के तुल्य माना गया है. परंपरा है कि ज्ञान के मंदिर में नंगे पांव प्रवेश करना चाहिए. इस परंपरा का पालन राजधानी शिमला के एक पुस्तकालय में हो रहा है. शिमला के चौड़ा मैदान में स्थित इस पुस्तकालय में प्राचीन गुरुकुल जैसा वातावरण है.

यहां अध्ययन करने आने वालों को पुस्तकालय के बाहर ही जूते उतारने पड़ते हैं. इस पुस्तकालय में 15 हजार किताबों का संग्रहण किया गया है. खास बात यह है कि यहां बैठने के लिए कुर्सी मेज नहीं मिलेगा बल्कि जमीन पर ही बैठकर आपको अध्ययन करना होगा जो कि प्राचीन परंपरा और शिक्षा पद्धति का ही एक तरीका है. इस पुस्तकालय को पूरी तरह से मठ के जैसे तैयार किया गया है. वहीं, जिस तरह से मठ में जैसे भिक्षु नंगे पांव जमीन पर बैठकर अपना ध्यान और पाठ करते हैं.

इसी तरह पुस्तकालय में भी छात्र अपने जूते पुस्तकालय के बाहर खोल देते है. यहां विशेष रूप से जूट की पुलें रखी गई है, जिन्हें पहनकर छात्र इस पुस्तकालय में प्रवेश करते हैं. पुस्तकालय में जमीन पर बैठकर ही छात्र अपना अध्ययन करते हैं. इस पुस्तकालय को पूरी तरह से लकड़ी के इस्तेमाल से तैयार किया गया है.

वीडियो.

प्रवेश द्वार पर जहां बौद्ध संस्कृति से जुड़े ड्रैगन और कमल का फूल, पत्तों की बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है. वहीं, अंदर बैठ कर अध्ययन करने के लिए जो चौखतान पर भी बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है. इस पुस्तकालय का निर्माण किन्नौर के कारीगरों के हाथों से ही किया गया है.

एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब कारीगरों ने इस पुस्तकालय का काम किया था, तो उस समय उन्होंने पूरी परंपराओं का निर्वहन किया था जिसमें दाढ़ी न बनाना और दूसरे कई नियम शामिल थे. इस राज्य संग्रहालय में भारतीय संविधान (Indian Constitution) की हस्तलिखित प्रति भी रखी गई है.

खास बात यह है कि जब भारतीय संविधान (Indian Constitution) को तैयार किया गया था, तब उसे हाथ से लिखा गया था. यह प्रति संविधान की मूल प्रति का ही सुलेख है. इसे मिलबॉर्न लोन कागज पर लिखा गया है. यह संविधान 500 पन्नों का है और साल 1954 में लिखकर पूरा किया गया था.

संविधान की मूल प्रति को शांति निकेतन से जुड़े मशहूर चित्रकार नंदलाल बोस ने 4 साल का समय लगा कर सजाया है. यह हिंदी भाषा में लिखा गया है. इसका कवर काले रंग का है जिस पर सुनहरे रंग की स्याही का इस्तेमाल कर भारत संविधान लिखा गया है.

इसके अंदर के पन्ने सफेद और चमकदार हैं. इसकी चमक आज भी बरकरार है. अंदर के पन्नों में भी सुनहरे रंग का बॉर्डर है जिसके अंदर संविधान की जानकारी को हाथों से लिखा गया है और संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षर भी हैं.

बता दें कि पुस्तकालय का निर्माण 2012 में शुरू हुआ था और 2014 में यह बनकर तैयार हो गया था. शिमला राज्य संग्रहालय (Shimla State Museum) के उच्च अधिकारी हरि सिंह चौहान ने कहा कि इस पुस्तकालय की खासियत है कि इसे जिस पैटर्न पर तैयार किया गया है. साथ ही इस पुस्तकालय में किताबों का ऐसा संग्रह है जो हिमाचल के किसी और पुस्तकालय में नहीं है.

पुस्तकालय में भारतीय कला के अलावा रशियन, ग्रीक, चाइनीज, जैपनीज आर्ट से जुड़ी किताबों का संग्रहण हैं, जो शोधकर्ताओं के लिए बेहद फायदेमंद है. राज्य संग्रहालय के इस पुस्तकालय के दरवाजे पर आठ बौध संस्कृति के प्रतिरूप में उकेरे गए हैं. वहीं, अंदर की सजावट भी बौद्ध मठों की तरह की गई है. दरवाजे पर जहां ड्रैगन बने हैं, वहीं फूल, पत्तों के साथ ही अन्य कई प्रतीक इस पर बनाए गए हैं.

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