शिमला:भारतीय दर्शन में विद्यालयों और पुस्तकालयों को मंदिर के तुल्य माना गया है. परंपरा है कि ज्ञान के मंदिर में नंगे पांव प्रवेश करना चाहिए. इस परंपरा का पालन राजधानी शिमला के एक पुस्तकालय में हो रहा है. शिमला के चौड़ा मैदान में स्थित इस पुस्तकालय में प्राचीन गुरुकुल जैसा वातावरण है.
यहां अध्ययन करने आने वालों को पुस्तकालय के बाहर ही जूते उतारने पड़ते हैं. इस पुस्तकालय में 15 हजार किताबों का संग्रहण किया गया है. खास बात यह है कि यहां बैठने के लिए कुर्सी मेज नहीं मिलेगा बल्कि जमीन पर ही बैठकर आपको अध्ययन करना होगा जो कि प्राचीन परंपरा और शिक्षा पद्धति का ही एक तरीका है. इस पुस्तकालय को पूरी तरह से मठ के जैसे तैयार किया गया है. वहीं, जिस तरह से मठ में जैसे भिक्षु नंगे पांव जमीन पर बैठकर अपना ध्यान और पाठ करते हैं.
इसी तरह पुस्तकालय में भी छात्र अपने जूते पुस्तकालय के बाहर खोल देते है. यहां विशेष रूप से जूट की पुलें रखी गई है, जिन्हें पहनकर छात्र इस पुस्तकालय में प्रवेश करते हैं. पुस्तकालय में जमीन पर बैठकर ही छात्र अपना अध्ययन करते हैं. इस पुस्तकालय को पूरी तरह से लकड़ी के इस्तेमाल से तैयार किया गया है.
प्रवेश द्वार पर जहां बौद्ध संस्कृति से जुड़े ड्रैगन और कमल का फूल, पत्तों की बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है. वहीं, अंदर बैठ कर अध्ययन करने के लिए जो चौखतान पर भी बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है. इस पुस्तकालय का निर्माण किन्नौर के कारीगरों के हाथों से ही किया गया है.
एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब कारीगरों ने इस पुस्तकालय का काम किया था, तो उस समय उन्होंने पूरी परंपराओं का निर्वहन किया था जिसमें दाढ़ी न बनाना और दूसरे कई नियम शामिल थे. इस राज्य संग्रहालय में भारतीय संविधान (Indian Constitution) की हस्तलिखित प्रति भी रखी गई है.