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इस बार 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा करवाचौथ का त्योहार, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

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Published : Oct 10, 2022, 8:35 PM IST

हर सुहागिन महिला को करवा चौथ (Karwa Chauth 2022) व्रत का बेसब्री से इंतजार रहता है. हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है. इस साल करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है. जिसके कारण इस व्रत का महत्व और बढ़ रहा है. करवा चौथ व्रत निर्जला रखा जाता है. रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति को लंबी आयु होती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.

Karwa Chauth 2022
करवाचौथ का त्योहार

शिमला/करनाल: इस साल करवाचौथ (Karwa Chauth 2022) का व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा. करवाचौथ का व्रत हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. इस व्रत को सुहागन महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए (karva chauth fast) रखती हैं. करवाचौथ दो शब्दों से मिलकर बना है. पहला करवा यानी मिट्टी का बरतन और चौथ यानी चतुर्थी तिथि, इसलिए करवा चौथ पर मिट्टी के करवे का बड़ा महत्व बताया गया है. सभी सुहागन महिलाएं साल भर इस व्रत का इंतजार करती हैं. आइए जानते हैं करवाचौथ व्रत की पूजा विधि और मुहुर्त और कथा के बारे में.

करवा चौथ व्रत की पूजा विधि:करवाचौथ के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें. इसके बाद व्रत को पूरे विधि विधान के साथ करने का संकल्प लें. स्नान आदि के बाद इस दिन सबसे पहले शिव परिवार की पूजा करें और निर्जला व्रत रखें. साथ ही ध्यान रखें की सुहागन महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार जरुर करें. इसके बाद घर के उत्तर पूर्व दिशा में करवा माता की मूर्ति स्थापित करें या फिर कैलेंडर लाकर दीवार पर लगा दें. माता गौरी को लाल चुनरी और सुहाग का सामान भी अर्पित करें.

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साथ ही मां गौरी के सामने एक मिट्टी के कलश में पानी भरकर रख दें. इसके बाद पूरे विधि विधान के साथ शिव परिवार की विधिपूर्वक पूजा करें. इसके बाद अपनी सास को श्रृंगार का सामान कपड़े और कुछ दक्षिणा रखकर सामान भेंट करें. साथ में खाना और कुछ मीठा भी जरूर रखें. रात में चंद्रमा को देखकर ही सबसे पहले अर्घ दें और फिर छलनी से पहले चंद्रमा को देखें और फिर अपने पति को देखकर व्रत खोलें.

करवाचौथ व्रत का महत्व:पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं. करवा चौथ का व्रत में मां पार्वती की पूजा की जाती है और उनसे अखंड सौभाग्य की कामना की जाती है. इस व्रत में माता गौरी के साथ-साथ भगवान शिव और कार्तिकेय और भगवान गणेश की भी पूजा अर्चना की जाती है. इस व्रत में मिट्टे के करवे का बहुत महत्व है. इसे किसी ब्राह्मण या फर किसी सुहागन महिला को दान में दिया जाता है.

करवा चौथ पूजन मुहूर्त:13 अक्टूबर को चतुर्थी तिथि देर रात 1 बजकर 59 मिनट से शुरू होगी, जोकि 14 अक्टूबर को सुबह 3 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगी. करवाचौथ पूजा मुहूर्त (Karwa Chauth worship method) 5:54 शाम से 07:08 शाम तक रहेगा. पूजन की अवधि 1 घंटा 15 मिनट की है. करवा चौथ व्रत समय- 6:20 सुबह से 08:09 शाम तक रहेगा. जिसकी अवधि 13 घंटे 49 मिनट की है.

रोहिणी नक्षत्र का महत्व:इस साल करवा चौथ पर रोहिणी नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है. जिसके कारण इस व्रत का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है. करवा चौथ के दिन कृत्तिका नक्षत्र शाम 6 बजकर 41 मिनट तक रहेगी. इसके बाद रोहिणी नक्षत्र लग जाएगी,जोकि रात 1 बजकर 9 मिनट तक रहेगा.इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि और सूर्य कन्या राशि में विराजमान रहेंगे. 27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र है पुष्य. सभी नक्षत्रों में इस नक्षत्र को सबसे अच्छा माना जाता है. रोहिणी नक्षत्र चंद्रमा का पसंदीदा नक्षत्र है क्योंकि यह सबसे लंबे समय तक रहता है. करवा चौथ के दिन रोहिणी नक्षत्र में चंद्रदेव को अर्घ्य देने से जीवन में संपन्नता और खुशहाली आने की मान्यता है.

जानिए कौन थी मां करवा: पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक करवा नाम की पतिव्रत स्त्री थी. उनका पति काफी उम्रदराज था. एक दिन वह नदी में स्नान करने गया. तो नहाते समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और निगलने के लिए खींचने लगा. उसने चिल्लाकर अपनी पत्नी करवा को बुलाया और सहायता के लिए कहने लगा. करवा बहुत पतिव्रता था, जिससे उसकी सतीत्व में काफी बल था. करवा नदी के तट पर अपने पति के पास पहुंचकर सूती साड़ी से धागा निकालकर अपने तपोबल के माध्यम से उस मगरमच्छ को अपने तपोबल के माध्यम से बांध दिया. सूत के धागे से बांधकर करवा मगरमच्छ को लेकर यमराज के पास पहुंची.

यमराज ने करवा से पूछा कि हे देवी आप यहां क्या कर रही हैं और आप चाहती क्या हैं. करवा ने यमराज से कहा कि इस मगर ने मेरे पति के पैर को पकड़ लिया था. इसलिए आप अपनी शक्ति से इसको मृत्युदंड दें और उसको नरक में ले जाएं. यमराज ने करवा से कहा कि अभी इस मगर की आयु शेष है, इसलिए वह समय से पहले मगर को मृत्यु नहीं दे सकते. इस पर करवा ने कहा कि अगर आप मगर को मारकर मेरे पति को चिरायु का वरदान नहीं देंगे तो मैं अपने तपोबल के माध्यम से आपको ही नष्ट कर दूंगी.

करवा की बात सुनकर यमराज के पास खड़े चित्रगुप्त सोच में पड़ गए, क्योंकि करवा के सतीत्व के कारण ना तो वह उसको शाप दे सकते थे और ना ही उसके वचन को अनदेखा कर सकते थे. तब उन्होंने मगर को यमलोक भेज दिया और उसके पति को चिरायु का आशीर्वाद दे दिया. साथ ही चित्रगुप्त ने करवा को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा जीवन सुख-समृद्धि से भरपूर होगा. चित्रगुप्त ने कहा कि जिस तरह तुमने अपने तपोबल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की है, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूं. मैं वरदान देता हूं कि आज की तिथि के दिन जो भी महिला पूर्ण विश्वास के साथ तुम्हारा व्रत और पूजन करेगी, उसके सौभाग्य की रक्षा मैं करूंगा. उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी होने के कारण करवा और चौथ मिलने से इसका नाम करवाचौथ पड़ा. इस तरह मां करवा पहली महिला हैं, जिन्होंने सुहाग की रक्षा के लिए न केवल व्रत किया बल्कि करवाचौथ की शुरुआत भी की.

इन्होंने किया था सबसे पहला व्रत: भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने भी इस व्रत को किया था, जिसका उल्लेख वारह पुराण में मिलता है. करवा चौथ के व्रत को करने के बाद शाम को पूजा करते समय माता करवाचौथ कथा पढ़ना चाहिए. साथ ही माता करवा से विनती करनी चाहिए कि हे मां, जिस प्रकार आपने अपने सुहाग और सौभाग्य की रक्षा की उसी तरह हमारे सुहाग की आप रक्षा करें. साथ ही यमराज और चित्रगुप्त से विनती करें कि वह अपना व्रत निभाते हुए हमारे व्रत को स्वीकार करें और हमारे सौभाग्य की रक्षा करें.

करवा चौथ व्रत कथा:करवाचौथ व्रत के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं. लेकिन अधिकांश कथाओं में यह पाया जाता है कि यह व्रत ब्रह्माजी के कहने पर शुरू किया गया था. देवताओं के राजा इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने यह व्रत रखा था. कहा जाता है कि एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था. देवताओं ने सोचा कि वह राक्षसों से पराजित हो जाएंगे. ऐसे में देवता ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे राक्षसों पर विजय पाने का उपाय पूछा.

तब ब्रह्माजी ने देवताओं को उपाय समझाते हुए बताया कि करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को है. ऐसे में यदि सभी देवताओं की पत्नियां करवाचौथ का व्रत रखें तो उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगा. ब्रह्माजी के कहने पर सभी देवताओं की पत्नियों ने उपवास किया. परिणामस्वरूप, देवताओं ने राक्षसों पर विजय प्राप्त की. वहीं यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने स्वप्न में शिव भगवान की अकाल मृत्यु देखी उसके बाद ब्रह्माजी के कहने पर उन्होंने व्रत रखा था. ताकि शिव भगवान की लंबी आयु हो.

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