शिमला: हिमाचल में चुनावी साल में सियासत दिन-प्रति-दिन नए रंग दिखा रही है. हिमाचल में क्षेत्रीय भावनाओं का उभार राजनीतिक हित के लिए किया जाने लगा है. विकास के वादे और दावे करने वाले नेता अब क्षेत्रवाद की बात करने लगे हैं और खुद को एक क्षेत्र विशेष का बताकर जनता की तालियां लूट रहे हैं. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शिमला के सुन्नी में एक जनसभा में खुद को ठेठ सिराजी (CM Jairam called himself Siraji) बताया. वे पहले शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के तहत सुन्नी इलाके के जलोग गांव में सभा को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने अपने करीब आधे घंटे के संबोधन में कई बार सिराज और सिराजी के बारे में बात की. लेकिन ये तो सिर्फ शुरुआत थी क्योंकि इसके बाद कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने भी खुद को एक क्षेत्र विशेष से जोड़ दिया. कहीं ऐसा ना हो कि चुनावी साल में जयराम ठाकुर बनाम विक्रमादित्य सिंह (jairam thakur vs vikramaditya singh) की इस जंग ने हिमाचल की सियासत में क्षेत्रवाद का नया मोड़ ना ला दे.
सिराजी बहुत आगे बढ़ गए:जयराम ठाकुर मंडी की सिराज सीट से चुनकार आते हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि कैसे सिराज को कभी पिछड़ेपन का पर्याय माना जाता था, लेकिन अब सिराजी बहुत आगे बढ़ गए हैं. उन्होंने कहा कि मसां मसां (बड़ी मुश्किल से) एक सिराजी मुख्यमंत्री बना है. अब हिमाचल में डबल इंजन की सरकार पांच साल नहीं इससे भी अधिक लंबी चलनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में बार-बार सिराजी शब्द का प्रयोग किया. उन्होंने जलोग में शिमला ग्रामीण विधानसभा की जनता का आह्वान किया कि सिराजी की बात सुन लेना इस बार. खास बात ये है कि वो शिमला ग्रामीण के उस इलाके में बोल रहे थे जहां से कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह विधायक हैं.
विक्रमादित्य सिंह ने खुद को ठेठ बुशहरी बताया:जयराम ठाकुर के बयान के बाद विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस के रामपुर में हुए आयोजन में खुद को ठेठ बुशहरी बता दिया. उन्होंने कहा कि वे ठेठ बुशहरी और उससे ऊपर ठेठ हिमाचली हैं. इस तरह हिमाचल में एक बार फिर क्षेत्रीय अस्मिता और क्षेत्रीय भावनाओं का ज्वार उठाया जाने लगा है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी नवनीत शर्मा के अनुसार ये सही है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना हमारी पहचान होती है, लेकिन उसे हमारी सीमा नहीं होना चाहिए.
कभी आलू-सेब तो कभी टोपियों का दौर:हिमाचल में पहले लोअर और अप्पर हिमाचल का नारा चलता था. कभी आलू और सेब पर बयानों की तलवारें खिंचती थी. हालांकि .बाद में समाज को ये अहसास हुआ कि जितना जरूरी आलू है, उतना ही जरूरी सेब भी और आम के साथ ही अन्य सिट्रिक फ्रूट. खैर, इनके बाद दौर आया टोपियों का हिमाचल की सियासत में टोपियों से पहचान होने लगी. कांग्रेस की सरकार के समय सभी के सिर पर हरी टोपी सज जाती थी और भाजपा की सरकार आने पर टोपी का रंग मैरून हो जाता था. आलम ये है कि एक बार एक आयोजन में कांग्रेस के सीनियर लीडर कौल सिंह ठाकुर ने कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता स्व. वीरभद्र सिंह को मैरून रंग की टोपी भेंट की तो वीरभद्र सिंह ने उसे झटक दिया था.