शिमला: हिमाचल की राजनीति देश के अन्य राज्यों से कई मायनों में अलग है. यहां सत्ता का उलटफेर करने में सरकारी कर्मचारियों की अहम भूमिका रहती है. हिमाचल में सरकारी कर्मचारी (government employees in himachal pradesh ) सबसे बड़ा वोट बैंक हैं. पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में दो लाख से अधिक सरकारी कर्मचारी हैं. इनमें नियमित नौकरी वाले कर्मचारियों के अलावा अनुबंध कर्मचारी और अन्य कई वर्ग हैं. यदि एक कर्मचारी पांच वोटों का प्रभाव रखता है तो पूरे प्रदेश के कर्मचारी मिलकर 10 लाख वोटों का बैंक बनाते हैं.
70 लाख की आबादी वाले छोटे पहाड़ी प्रदेश में 10 लाख वोट का आंकड़ा किसी भी राजनीतिक दल को सत्ता से बाहर कर सकता है और सत्ता में ला भी सकता है. चार उपचुनाव हारने के बाद भाजपा में मिशन रिपीट को लेकर मंथन का दौर शुरू हो गया है. भाजपा 2007 से लेकर मिशन रिपीट का नारा देती रही है. धूमल सरकार के समय भाजपा मिशन रिपीट के काफी करीब पहुंच भी चुकी थी, लेकिन कांगड़ा का किला दरक जाने के कारण भाजपा का यह सपना पूरा नहीं हो पाया. वर्तमान सरकार जयराम ठाकुर के नेतृत्व में सत्तासीन है.
विधानसभा चुनाव से पूर्व मंडी के जंजैहली में आयोजित रैली में अमित शाह ने ऐलान किया था कि यदि वोटर्स जयराम ठाकुर को बड़े मार्जिन से विजयी बनाते हैं तो उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी. यही नहीं अमित शाह ने कहा था कि हिमाचल में अब भाजपा पांच साल के लिए नहीं बल्कि कम से कम 15 साल के लिए सत्ता में रहने के लिए कदम आगे बढ़ाएगी. इधर चार उपचुनाव हारने के बाद अगले विधानसभा चुनाव के लिए मिशन रिपीट का सपना पूरा करने को लेकर खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कमान संभाल ली है.
हिमाचल में कर्मचारी वोट बैंक महत्वपूर्ण: मुख्यमंत्री सरकारी कर्मचारियों के वोट बैंक की महत्ता से भली भांति परिचित हैं. उन्होंने इसे साधने के लिए योजना का खाका तैयार कर लिया है. हिमाचल में शिक्षा विभाग में सबसे अधिक कर्मचारी हैं. विभिन्न वर्गों के 70 हजार के करीब शिक्षक और गैर शिक्षक कर्मचारी हैं. इस वर्ग की अलग-अलग मांगें हैं. मुख्यमंत्री ने इनकी मांगों पर सकारात्मक रुख अपनाने के संकेत दिए हैं. इन शिक्षकों के लिए अलग से जेसीसी यानी संयुक्त समन्वय समिति के गठन का प्रस्ताव है.
इसके अलावा हिमाचल में विभिन्न विभागों में 25 हजार के करीब आउटसोर्स कर्मचारी हैं. आउटसोर्स कर्मचारियों की मांग है कि उनके लिए कोई पॉलिसी बनाई जाए. हालांकि सरकार के लिए उक्त वर्ग को लेकर कोई पॉलिसी बनाना आसान नहीं है. यदि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए सरकार कोई पॉलिसी बनाती है तो पहले आरएंडपी रुल्ज पर भी काम करना पड़ेगा, लेकिन सरकार इन कर्मचारियों को किसी ना किसी रूप में राहत दे सकती है.
आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए सब कमेटी की गठन की तैयारी में सरकार: मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने संकेत दिए हैं कि आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए सरकार एक सब कमेटी का गठन कर सकती है. यह सब कमेटी आउटसोर्स कर्मचारियों की सारी जानकारी जुटाकर उन्हें राहत देने के उपायों पर कोई सर्वमान्य हल निकाल सकती है. यदि आउटसोर्स कर्मियों की सहानुभूति सरकार ने अर्जित कर ली तो वो एक बड़े वोट बैंक को साधने में कामयाब हो जाएगी.
हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों का प्रतिनिधि संगठन अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के रूप में हैं. अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ लंबे समय से कर्मचारियों की मांगों को लेकर जेसीसी यानी संयुक्त समन्वय समिति की बैठक बुलाने की मांग कर रही है. समिति की यह बैठक सरकार के साथ मिलकर कर्मचारियों की विभिन्न मांगों पर कोई सहमति बनाने पर राजी हो सकती है. सरकारी कर्मचारी इस समय ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग कर रहे हैं. हालांकि इस मांग को पूरा करना राज्य सरकार के लिए कठिन है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि सरकार कर्मचारियों की अन्य मांगों पर सकारात्मक रुख अपना सकती है.
हिमाचल पर 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज:हिमाचल प्रदेश में सरकारी बजट का अधिकांश हिस्सा कर्मचारियों की सैलरी और पेंशनरों की पेंशन पर खर्च होता है. सरकार को वेतन और पेंशन के लिए हर महीने करीब एक हजार करोड़ के बजट की जरूरत है. हिमाचल पर 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. विकास के लिए बजट में 100 रुपए में से केवल 43.94 रुपए बचते हैं. सरकारी कर्मचारी नए वेतन आयोग की मांग कर रहे हैं. यदि सरकार नए वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करती है तो उसे सालाना पांच हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त का इंतजाम करना पड़ेगा.