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अंगद के पांव की तरह हिमाचल में जम गई सेब की विदेशी किस्में, इटालियन रेड विलॉक्स की मची धूम - सेब के बगीचे

ढली मंडी में शुक्रवार को बिक्री के लिए आए इटालियन किस्म रेड विलॉक्स सेब की पेटी 3800 रुपये की दर से बिकी है. मंडी में आए गहरे लाल रंग के रेड विलॉक्स सेब को आढ़तियों ने हाथों-हाथ लिया.

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Published : Aug 2, 2019, 9:04 PM IST

शिमला: कभी सेब की परंपरागत रॉयल किस्म के लिए पहचान रखने वाले हिमाचल में अब विदेशी किस्मों की धूम मची है. सौ साल से भी लंबे सेब बागवानी के इतिहास में ये दशक विदेशी किस्मों की बादशाहत का साबित हो रहा है.

इटालियन रेड विलॉक्स किस्म का सेब

आलम ये है कि सेब की विदेशी किस्में हिमाचल में अंगद के पैर की तरह जम गई हैं. इसका प्रमाण है शिमला की ढली मंडी में शुक्रवार को बिक्री के लिए कुमारसैन के कचीनघाटी इलाके के बागवान सुभाष गुप्ता के बगीचे के आए इटालियन किस्म रेड विलॉक्स सेब की पेटी 3800 रुपये की दर से बिकी है. ढली मंडी में आए गहरे लाल रंग के रेड विलॉक्स सेब को आढ़तियों ने हाथों-हाथ लिया. इससे ये भी साबित हुआ कि डाउन मार्केट के बावजूद क्वालिटी एप्पल की मांग बरकरार बनी हुई है और रेट भी ऊंचा मिल रहा है. एक पेटी में 28 किलो सेब पैक होता है. इस तरह रेड विलॉक्स को 130 रुपये प्रति किलो से अधिक दाम मिला है. ये सेब सीधा देश के महानगरों में फाइव स्टार होटल्स में जाता है.

बागवान सुभाष गुप्ता

सुभाष गुप्ता का कहना है कि दाम के मामले में क्वालिटी एप्पल कभी भी मात नहीं खा सकता है. इटली की अन्य सेब किस्मों में मेमा मास्टर, किंग रोट, मोडी एप्पल आदि हैं. उन्होंने बताया कि हिमाचल में चार लाख बागवान परिवार हैं और इनमें से अधिकांश अब सेब की परंपरागत रॉयल किस्म का मोह छोडकर विदेशी किस्मों में हाथ आजमा रहे हैं.

सुभाष गुप्ता ने बताया कि विदेशी किस्म के पौधे कम समय में फल देना शुरू कर देते हैं, यही कारण है कि उनकी तरफ बागवानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है. उन्होंने बताया कि सुभाष गुप्ता चैरी उत्पादन में भी अग्रणी हैं और वे बगीचे में 13 किस्म की चैरी की पैदावार करते हैं.

बागवान सुभाष गुप्ता

बता दें कि इटली की सेब किस्म रेड विलॉक्स साल 2012 में हिमाचल में आई थी. कई बागवान इस किस्म को अपना रहे हैं. बागवानों को अपना उत्पाद बेचने के लिए देश की मंडियों में नहीं जाना पड़ रहा. वे शिमला की ढली मंडी सहित रोहड़ू, पराला मंडी में ही अपना सेब बेच रहे हैं. ऐसे में उन्हें अधिक लाभ और ट्रांसपोर्ट का खर्च नहीं उठाना पड़ रहा है. साथ ही सेब के खराब होने का डर भी नहीं है और बागवानों को अच्छे दाम मिल रहे हैं.

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