शिमला:क्षेत्रीय सिनेमा (regional Cinema) की अपनी खासियत है जो किसी क्षेत्र विशेष की भाषा, संस्कृति और सामाजिक मुद्दों बेहद सटीक ढंग से प्रदर्शित करने में सफल होती है. राजधानी शिमला के गियेटी थियेटर (Gaiety Theater) में 26 से 28 नवंबर तक आयोजित होने वाले इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ शिमला (International Film Festival of Shimla) के सातवें संस्करण में बेहतरीन क्षेत्रीय फिल्मों की स्क्रीनिंग (Screening of regional film) होगी. हिमाचली भाषा में बनी फिल्में राष्ट्रीय परिदृश्य में अपना मुकाम हासिल करने में सफल हुई है.
इस बार इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ शिमला (International Film Festival of Shimla) में अहमदाबाद की निर्देशक प्रमाती आनंद (Director Pramati anand) की 'झटआई बसंत' की स्पेशल स्क्रीनिंग (Special Sreening) की जाएगी. हिमाचली एवं हिंदी भाषा में बनी फिल्म 'झटआई बसंत' की शूटिंग धर्मशाला के आसपास के गांव में हुई है. यह फिल्म दो ऐसी लड़कियों की कहानी है जो अलग-अलग पृष्ठभूमि से आती है, लेकिन उनमें पितृसत्ता का प्रभाव और उससे संघर्ष उन्हें एक ही कटघरे में खड़ा करता है. यह फिल्म महिलाओं पर पितृसत्ता के प्रभाव और उसकी स्वीकृति को भी दर्शाता है. जिसे पुरानी पीढ़ी की स्त्रियां सहर्ष स्वीकार करके अपनी अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करना अपना कर्तव्य मानती है.
आज की जागृत और पढ़ी-लिखी स्त्रियों से जब इसे कबूल करने के लिए कहा जाता है तो उस पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच संघर्ष एवं विवाद के स्वर तीखे हो जाते हैं. यह फिल्म महिलाओं को अवश्य देखनी चाहिए जो अपनी बेटियों का उज्जवल भविष्य देखना चाहती हैं, लेकिन सामाजिक एवं आंतरिक द्वंद उन्हें यह करने से रोकते हैं. यह फिल्म कई अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में कई पुरस्कारों से सम्मानित की जा चुकी है.
एक अन्य मराठी शॉर्ट फिल्म (Marathi short film) 'खिसा' हमारे समाज में व्याप्त धार्मिक कट्टरता को दर्शाती हैं, जो हमारे बच्चों की मासूमियत को रौंद कर चली जाती है. महाराष्ट्र के एक गांव के स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा अपनी कमीज की जेब में कंचे और पत्थरों में कई तरह की कल्पनाएं एवं अद्भुत संसार छुपा कर रखता है, लेकिन जब वह बच्चा अपनी फटी जेब को छिपाने के लिए किसी दूसरे धर्म के प्रतीक के स्टिकर को लगाता है तो उसके परिवार में उथल-पुथल हो जाती है. वह बच्चा धार्मिक प्रतीकों से अनभिज्ञ है. लेकिन सामाजिक एवं धार्मिक दबाव उसकी छोटी सी जेब के चिथड़े बना देते हैं और उन्हीं चिथड़ों में उसका बचपन और मासूमियत खो जाती है. राज मोरे द्वारा निर्देशित यह फिल्म भी देश विदेश के बड़े फिल्म फेस्टिवल में कई पुरस्कार जीत चुकी है।
निर्देशक सोहन लाल (Director Sohan lal) की मलयाली फिल्म 'इवा' ट्रैफिक पुलिस में कार्यरत एक ऐसी युवती की फिल्म है जो ड्यूटी के दौरान एक महिला को आने वाली चुनौतियों को उदृत करती है. बेटियों के लिए आगे बढ़ने और कार्य क्षेत्र में बेहतर माहौल बनाने के लिए उसके साथी पुरुषों को सहयोग करना होगा. तभी वह जीवन में आगे बढ़ पाएगी. महिलाओं ने घर से बाहर निकलकर शिक्षा और नौकरी करने की हिम्मत तो दिखा दी, लेकिन लड़कों को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी और लड़कियों को सहयोग करना होगा. केरल के निर्देशक सोहन लाल अपनी फिल्मों की स्क्रीनिंग के दौरान गेयटी थिएटर में दर्शकों से रूबरू भी होंगे और मलयाली सिनेमा पर चर्चा भी करेंगे.
फेस्टिवल में निर्देशक सोहन लाल की ही मलयाली फीचर फिल्म 'ट्रीज इन ड्रीम्स' भी प्रदर्शित की जाएगी. यह फिल्म एक ऐसे बच्चे की है जो अपने माता-पिता के अपने-अपने करियर में व्यस्त रहने के कारण अकेला महसूस करता है और मानसिक बीमारी से जूझ रहा है. जिसके कारण वह अपने स्कूल में होते हुए भी कल्पना संसार में अपने आप को जंगल में घूमते हुए पाता है. जहां उसे अलग-अलग तरह के लोग मिलते हैं. फिल्म में पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी अलग ढंग से दिया गया है. शॉर्ट फिल्म 'जीरो किलोमीटर' नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) के भाई शम्स नवाज सिद्दीकी द्वारा निर्देशित फिल्म है जो ईंट भट्टी में काम करने वाली एक युवती की कहानी है.
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