शिमला: ओलावृष्टि की वजह से हर साल हिमाचल प्रदेश के किसानों व बागवानों को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है. सेब उत्पादकों को ओलावृष्टि से फसल खराब होने का डर हमेशा सताता रहता है. एक अनुमान के मुताबिक ओलावृष्टि (Damage due to hailstorm in Himachal) से हर साल करीब करीब 500 करोड़ का नुकसान होता है. इसी नुकसान को कम करने के लिए आईआईटी बॉम्बे और हिमाचल की डॉ. वाई एस परमार बागवानी विश्वविद्यालय नौणी के साझा प्रयासों से स्वदेशी एंटी हेल गन विकसित की जा रही है.
एंटी हेल गन क्या होती है- एंटी हेल गन (anti hail gun) एक ऐसी मशीन है, जो आघात तरंगें उत्पन्न कर आकाश में ओलावृष्टि में बाधा उत्पन्न करती हैं. लंबे, स्थिर ढांचे वाली यह मशीन कुछ मीटर ऊंचे उल्टे टावर के समान दिखाई देती है. इसमें एक शंक्वाकार लंबी और संकीर्ण नली लगी होती है, जिसका मुख आकाश की ओर होता है. इसके निचले कक्ष में एसिटिलीन गैस एवं वायु का विस्फोटक मिश्रण भरा होता है, जो दागे जाने पर आघात तरंगें पैदा करता है. ये तरंगें आकाश में उपस्थित जल की बूंदों को ओले में परिवर्तित होने से रोकती हैं.
कैसे करती है काम- विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग अध्यक्ष डॉ. एसके भारद्वाज ने बताया कि हवाई जहाज के गैस टरबाइन इंजन और मिसाइल के रॉकेट इंजन की तर्ज पर इस तकनीक में प्लस डेटोनेशन इंजन का इस्तेमाल किया गया है. इसमें एलपीजी और हवा के मिश्रण को हल्के विस्फोट के साथ दागा जाता है. इस हल्के विस्फोट से एक शॉक वेव तैयार होती है. यह शॉक वेव करीब 22 फुट लंबी एंटी हेल गन के माध्यम से वायुमंडल में जाती है और बादलों के अंदर का स्थानीय तापमान बढ़ा देती है.
एंटी हेल गन आरंभिक प्रयोगों से विस्फोट तरंग उत्पन्न 1100 मी/एस या 3960 किमी प्रति घंटे की गति से यात्रा करती है, जो एलपीजी-एयर मिश्रण के लिए 1200 मीटर/सेकंड के सी-जे (चैपमैन-जौगेट) वेग के करीब है. वैज्ञानिकों का कहना है कि हेल गन के प्रयोग में अभी 1 शॉट में 0.24kg गैस का उपयोग हो रहा है और अगर एक सिलेंडर की बात की जाए तो करीब 500 से 600 शॉट निकल रहे हैं.
महंगी होती है विदेशी एंटी हेल गन- वर्तमान में प्रदेश में जिस विदेशी एंटी हेल गन का प्रयोग किया जा रहा है, उसकी कीमत लगभग 2 से 3 करोड़ रुपये हैं. मौजूदा समय में शिमला जिले में करीब 20, कुल्लू और मंडी जिले के ऊपरी इलाकों में भी कृषि और बागवानी विभाग ने एंटी हेल गन स्थापित किया है. देश में तैयार की जा रही गन को ट्रायल आधार पर प्रदेश में 8 से 10 स्थानों पर स्थापित किया जाएगा. जिससे इसकी लागत में कमी आएगी.
सस्ती होगी स्वदेशी एंटी हेल गन- एंटी हेल गन विदेशों से खरीदने पर ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती थी, लेकिन इस गन को सस्ते दामों में देश में ही तैयार किया जा रहा है. यदि इस गन का ट्रायल सफल रहता है तो जिले के अन्य क्षेत्रों में भी इसे लगाने की योजना है. गन को लगाने समेत इस तकनीक का शुरुआती खर्च करीब 10 लाख होगा. इसके बाद बागवानों को सिर्फ एलपीजी गैस का ही खर्च उठाना पड़ेगा.